हिमाचल में रचित साहित्यः इंद्रधनुषी विविधता का भंडार

By: Feb 13th, 2022 12:10 am

डा. सुशील कुमार फुल्ल, मो.-9418080088

साहित्य की निगाह और पनाह में परिवेश की व्याख्या सदा हुई, फिर भी लेखन की उर्वरता को किसी भूखंड तक सीमित नहीं किया जा सकता। पर्वतीय राज्य हिमाचल की लेखन परंपराओं ने ऐसे संदर्भ पुष्ट किए हैं, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, निर्मल वर्मा या रस्किन बांड सरीखे साहित्यकारों ने साहित्य के कैनवास को बड़ा किया है, तो राहुल सांकृत्यायन ने सांस्कृतिक लेखन की पगडंडियों पर चलते हुए प्रदेश को राष्ट्र की विशालता से जोड़ दिया। हिमाचल में रचित या हिमाचल के लिए रचित साहित्य की खुशबू, तड़प और ऊर्जा को छूने की एक कोशिश वर्तमान शृंाखला में कर रहे हैं। उम्मीद है पूर्व की तरह यह सीरीज भी छात्रों-शोधार्थियों के लिए लाभकारी होगी…

अतिथि संपादक,  डा. सुशील कुमार फुल्ल

हिमाचल रचित साहित्य – 1

विमर्श के बिंदु

  1. साहित्य सृजन की पृष्ठभूमि में हिमाचल
  2. ब्रिटिश काल में शिमला ने पैदा किया साहित्य
  3. रस्किन बांड के संदर्भों में कसौली ने लिखा
  4. लेखक गृहों में रचा गया साहित्य
  5. हिमाचल की यादों में रचे-बसे लेखक-साहित्यकार
  6. हिमाचल पहुंचे लेखक यात्री
  7. अतीत के पन्नों में हिमाचल का उल्लेख
  8. हिमाचल से जुड़े नामी साहित्यकार
  9. यशपाल के साहित्य में हिमाचल के रिश्ते
  10. लालटीन की छत से निर्मल वर्मा की यादें
  11. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की विरासत में

ऑस्कर वाइल्ड का कथन है कि सभी कलाएं व्यर्थ हैं, परंतु यह भी सच है कि कलाओं के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। कला अथवा साहित्य की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती क्योंकि साहित्य में व्याप्त भावनाएं सार्वभौमिक होती हैं। सन् 1976 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में कौशल्या अश्क की एक कहानी ‘किन्नी’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी, जिसमें मां-बाप विहीन लड़की की मामा के घर में प्रताड़ना तथा कन्या के एकांत रुदन का मार्मिक चित्रण था। मैंने अपनी प्रतिक्रिया लेखिका को भेेजी कि आपकी कहानी ने मुझे रुला दिया। प्रत्युत्तर में उपेंद्रनाथ अश्क ने लिखा, ‘आपके पत्र के लिए धन्यवाद। कहानी आपको रुला गई, यही कहानी की सफलता है। परंतु कुछ पाठकों ने यह कह कर इस कहानी की आलोचना की है कि इसकी विषयवस्तु घिसी-पिटी है, लेकिन मैं मानता हूं कि जो कुछ आजकल लिखा जा रहा है, उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है, जो किसी न किसी रूप में पहले न लिखा गया हो। जिसे हम मानते हैं कि हम ने कुछ नया, मौलिक या अद्भुत लिखा है, वह वास्तव में पहले ही कोई न कोई लिख चुका होता है। हम केवल अपने शब्दों में उसकी पुनरावृत्ति करते हैं।’ अश्क जी के कथन में कुछ न कुछ सच्चाई तो है, परंतु फिर भी साहित्य की शाश्वत सत्यता को स्वीकार करना सृजनात्मकता को नमन करना है। और सृजन की प्रक्रिया निरंतर प्रवहमान रहती है।

हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है, जो अपनी प्राकृतिक संपदा एवं सांस्कृतिक थाती के लिए विख्यात है, परंतु जहां तक साहित्य संरचना की बात है, यह समृद्ध होता हुआ भी प्रायः उपेक्षित रहा है। इसकी भौगोलिक सीमाएं स्थिर होने में भी समय लगा, यह भी एक कारण हो सकता है, परंतु जो अब वर्तमान हिमाचल है, उसमें अंग्रेजों के समय में और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अनेक भाषाओं में निरंतर साहित्य सृजन हुआ है, जो इतिहास के पन्नों में से प्रखरता से झांक रहा है और वर्तमान के लेखकों, विद्वानों से यह अपेक्षा भी रखता है कि कोई श्रमपूर्वक इसका आकलन करे। इसकी परिधि व्यापक है और इसका महत्त्व ऐतिहासिक एवं समकालीन संदर्भों में एकदम प्रासंगिक है।

सन् 1992 के आसपास हिमाचल प्रदेश में सरकार ने उपेंद्रनाथ अश्क को प्रदेश में आमंत्रित किया था। वे अपने बावन चहेते साहित्यकारों को साथ लेकर प्रदेश में पधारे और साहित्य में बड़ी गहमागहमी रही। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में भी साहित्यकारों का हुजूम दो दिन तक साहित्यिक आयोजनों में व्यस्त रहा। किसी ने टिप्पणी की कि अमुक हिमाचली लेखक ने प्रोफैसरों की करनी-धरनी पर ‘हारे हुए लोग’ शीर्षक से बखिए उधेड़ता उपन्यास लिखा है। वनस्पति विज्ञान के प्रसिद्ध प्रोफेसर डा. ओम प्रकाश शर्मा ने कहा- तो कौनसा कद्दू में तीर मार लिया? शायद जब लेखक समाज में व्याप्त विसंगतियों को उघाड़ रहा होता है, तो वह कद्दू में तीर ही मार रहा होता है। अपनी-अपनी प्रतिक्रिया हो सकती है, परंतु साहित्य की समाज में प्रासंगिकता अक्षुण्ण है, सर्वमान्य है। तभी तो आज व्यंग्य की मांग बढ़ती जा रही है।

जो बात हम अभिधात्मक ढंग से सुनना नहीं चाहते, वही बात हम वक्र दृष्टि से परोसे जाने पर सहज ही स्वीकार कर लेते हैं। अधजगा और अध सोया हिमाचल अब पूरी तरह से जागृत है और अपने इतिहास में झांकने और अपनी साहित्यिक संपदा को आंकने एवं सहेेजने के लिए तत्पर भी है। प्रमुखतः अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, पंजाबी, उर्दू, हिमाचली आदि भाषाओं मंे रचित साहित्य की खोज खबर, उसके आकलन और मूल्यांकन का प्रयत्न इस श्रंृखला में रहेगा। शिमला, कसौली तथा अन्य स्थानों पर अंग्रेजी में रचित साहित्य एवं साहित्यकारों पर सामग्री जुटाना और उसकी परख करना भी लेखकों का ध्येय रहेगा।

यशपाल, चंद्रधर शर्मा गुलेरी के अवदान के अतिरिक्त अन्य लेखकों के योगदान को रेखांकित करते हुए हिमाचल के दिवंगत लेखकों, सहित्यकारों पर भी विशेष सामग्री की प्रस्तुति के लिए मेरे सहयोगी लेखक पहले ही कार्यरत हैं। वास्तव में आज से पहले कभी इतने व्यापक स्तर पर हिमाचल प्रदेश के विविधरंगी अनेकभाषी साहित्य का नोटिस ही नहीं लिया गया। यह भी सच है कि प्रशासनिक अधिकारियों ने समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों से संबद्ध सांस्कृतिक एवं कलात्मक अवदान के बारे में बहुत सी पुस्तकें लिखीं, विशेषकर लाहुल-स्पीति, किन्नौर, चंबा के भरमौर-पांगी आदि क्षेत्रों के विषय में। डा. महेंद्र सिंह रंधावा ने तो हिमाचल के कला वैभव के विषय में न केवल विस्तार से लिखा, बल्कि कला कृतियों के संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण काम किया। उनकी पंजाबी में लिखित ‘कांगड़ा’ शीर्षक की वृहद पुस्तक अपनी सामग्री एवं प्रस्तुति में आकर्षक उपयोगी पुस्तक है।

डा. मनोहर सिंह गिल की लाहुल-स्पीति पर पुस्तक भी महत्त्वपूर्ण है, जिसमें किंवदंतियों का भी चित्रण है। महाराज कृष्ण काव, श्रीनिवास जोशी, नरेश कुमार लट्ठ, केआर भारती आदि बहुत से प्रशासनिक अधिकारियों ने हिमाचल के विभिन्न पक्षों पर साहित्य सृजन किया है। हिमाचल पर्यटकों का भी आकर्षण रहा है। परिणामतः बहुत से यात्री, लेखक यहां पधारते रहे हैं। रामकृष्ण कौशल, एसआर हरनोट, किशोरी लाल वैद्य, विपिन पब्बी, मियां गोवर्धन सिंह, एचके मट्टू, सुदर्शन वशिष्ठ आदि ने पर्यटकों के लिए उपयोगी पुस्तकें लिखी हैं। दूसरे हिमाचल में जो बड़े साहित्यिक आयोजन होते रहे हैं, उनमें भी लेखकों की भागीदारी ने साहित्य पर बहस को चार चांद लगाए हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन का शिमला में हुुआ आयोजन, जिसमें निराला जी ने भी भाग लिया था, उसे कौन भुला सकता है। इस दृष्टि से शिमला, कसौली, मंडी, कुल्लू, डलहौजी, धर्मशाला, पालमपुर आदि स्थान ज्यादा सक्रिय रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीज़ शिमला में भी अनेक लेखक आते-जाते रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के हिंदी एवं अंग्रेजी विभागों में दिग्गज लेखकों एवं विद्वानों की उपस्थिति ने साहित्य सृजन एवं आलोचना में निरंतर गति प्रदान की है। कुछ लेखक पहाड़ की कंदराओं या लेखक गृहों में बैठ कर लिखने के लिए भी आते रहे हैं। यशपाल, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, निर्मल वर्मा, मोहन राकेश प्रभृति अन्य अनेक लेखक भी हिमाचल से जुड़े रहे हैं।

खुशवंत सिंह के कसौली आगमन पर पूरा हिमाचल गुलजार हो जाता था। अब भी कसौली में प्रति वर्ष लिट फेस्ट का आयोजन होता है। अभिप्राय यह कि बहुत कुछ ऐसा है, जिसके आकलन, खोज खबर की आवश्यकता है। ब्रिटिश काल में रचित अंगे्रजी साहित्य भी विचार-विमर्श का एक बिंदु रहेगा। रडयार्ड किपलिंग, रस्किन बांड, मोहन राकेश आदि के प्रसंग भी ढंूढे जाएंगे। इसके अतिरिक्त भूले-बिसरे दिवंगत साहित्यकारों की खोज खबर लेने का प्रयत्न भी इस श्रृंखला का ध्येय रहेगा। क्योंकि विमर्श के बिंदु व्यापक हैं, संभव है और विषय भी निकल आएं।


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