सजने लगा मां शूलिनी का दरबार
मंदिर में रंग रोगन का काम शुरू, 24 से 26 जून तक धूमधाम से मनाया जाएगा राज्य स्तरीय मेला
निजी संवाददाता-सोलन
सोलन की अधिष्ठात्री मां शूलिनी के राज्य स्तरीय मेले का दो साल के बाद भव्य रूप देखने को मिलेगा साथ ही पारंपरिक व धार्मिक रिवाजों का स्वरूप भी पहले जैसा होगा। इस बीच मां शूलिनी के मंदिर को सजाने व रंग-रोगन का कार्य आरंभ हो गया है। देवभूमि के पारंपरिक एवं प्रसिद्ध मेलों में मां शूलिनी मेले का अपना एक अलग ही स्थान है। यह मेला प्रतिवर्ष जून माह के तीसरे सप्ताह के शुक्रवार से शुरू होता है और रविवार को संपन्न हो जाता है।
परंपरा के अनुसार मां शूलिनी अपने स्थान से पालकी में शहर की परिक्रमा करने के बाद अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती हैं और तीन दिनों तक लोगों के दर्शनार्थ वहीं विराजमान रहती हैं। मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार बघाट के शासक अपनी कुलदेवी की प्रसन्नता के लिए प्रतिवर्ष मेले का आयोजन करते थे। लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता है, बल्कि खुशहाली आती है और मेले की यह परंपरा आज भी कायम है। मां शूलिनी की अपार कृपा के कारण ही शहर दिन-प्रतिदिन सुख व समृद्धि की ओर अग्रसर है। पहले यह मेला केवल एक दिन ही मनाया जाता था, लेकिन सोलन जिला के अस्तित्व में आने के पश्चात इसका सांस्कृतिक महत्त्व बनाए रखना, आकर्षक बनाने व पर्यटन दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए इसे राज्य स्तरीय मेले का दर्जा प्रदान किया गया। अब यह मेला तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस वर्ष यह मेला 24 से 26 जून तक प्रस्तावित है। मेले को देखते हुए शूलिनी मंदिर में रंग-रोगन का कार्य शुरू कर दिया गया है और मां के दरबार को सजाया जा रहा है।
स्थानीय लोगों को देना पड़ता है मां शूलिनी को कर
मां शूलिनी मंदिर बघाट रियासत के समय का है। यह बघाट क्षेत्र के लोगों की कुल देवी भी है। मां ने स्थानीय लोगों पर कर लगाया है। इस कर के अनुसार स्थानीय लोग हर छह माह बाद अपनी तैयार नई फसल को सबसे पहले मां शूलिनी को कर के रूप में देते हैं। इस जून माह में भी स्थानीय लोग मां को तैयार गेहूं की फसल चढ़ाएंगे।
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