विशेष

औज़ार बनाने की इस तकनीक के आगे मशीनें भी फेल, किताबों या फिर हिमाचल में जिंदा है कारीगरी

By: Sep 15th, 2022 4:52 pm

उदय भारद्वाज—शिलाई

शिलाई। सिरमौर जिले के गिरिपार पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों ने हथियार और औजार बनाने के प्राचीन तरीकों को आज ही संजो कर रखा है। मशीनी युग में पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी स्थानीय लोहार मशक यानी बकरे के खाल से बनी धौंकनी ( भस्त्रिका) विधि से शोले जगा कर, हथोड़े से लोहा पीट पीट के ओजार और दरांत, तलवार और परशु जैसे हथियार बनाते हैं। यह पुरातन तकनीकी की एसी तस्वीरें हैं, जिनके बारे में अब सिर्फ किताबों में ही जिक्र मिलता है।

यह तस्वीरें लौहार की धौंकनी की हैं। इसे मशक या भस्त्रिका भी कहा जाता है। धौंकनी और इससे आग के शोले भडक़ा कर लोहा गर्म करने की तकनीकी की तसवीरें या तो किताबों में मिलती हैं या सिरमौर जिले के बेहद दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में मिलती हैं। इन क्षेत्रों में आज भी लोहे के औजार और हथियार बनाने के लिए इसी पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। अत्याधुनिक मशीनों के इस दौर में पहाड़ी क्षेत्रों के लोग हथियार और औजार बनाने की प्राचीन तकनीक संजोकर रखे हुए हैं। हालांकि यहां लोग मशीनों से बने औजार खरीदने में सक्षम हैं, मगर लोगों का कहना है कि इस तकनीक से बने औजारों से खेती करके बरकत होती है।

यही कारण है कि आज भी लोग पहाड़ी क्षेत्रों में लोहार की मशक वाली भट्टी में लोहता पाकर औजार बनाते हैं और अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं। बरसात के दिनों में हर साल लोहार का आरण लगाया जाता है और गांव के लोग बारी बारी से अपने औजार बनाने के लिए आते हैं। जिले के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में सदियों पुरानी परंपरा आज भी कायम है।

नौजवानों से कह गए हैं बुजुर्ग…
लोगों का कहना है कि हथियार और और औजार बनाने की प्राचीन तकनीक उनकी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है। लौहार की भट्टी में हाथ से बनाए औजारों से खेती में बरकत आती है और यह औजार या हथियार बाजार के औजारों से कहीं बेहतर होते हैं। क्षेत्र के युवाओं का कहना है कि उनके बुजुर्गों ने यह सीख देकर गए हैं की खेती जोतने और खेती संबंधित कार्यों के लिए लोहार से बनाएं औजार ही इस्तेमाल करें।

इसलिए दुनिया में अलग स्थान रखता है गिरिपार
गिरिपार क्षेत्र प्राचीन तकनीकों और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए देशभर में अलग स्थान रखता है। यहां औजार बनाने की प्राचीन परंपराओं को भी संजो कर रखने की आवश्यकता है, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में भी अब आधुनिकता का रंग देखने को मिल रहा है और प्राचीन परंपराओं के निर्वहन में कमी आ रही है। ऐसे में सरकारी और सामाजिक स्तर पर और अधिक प्रयासों की दरकार है ताकि परंपराएं बरकरार रहे और अगली पीढिय़ों को हस्तांतरित हो सके।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App