एचआईवी एड्स और संबंधित चुनौतियां

कई लोग सोचते हैं कि एड्स रोगी के साथ उठने-बैठने से यह रोग फैलता है जो सही नहीं है। यह बीमारी छुआछूत की नहीं है। इस बीमारी को लेकर समाज में कई भ्रम हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है। एड्स का फैलाव छूने, हाथ से हाथ का स्पर्श, साथ-साथ खाने, उठने और बैठने, एक-दूसरे का कपड़ा इस्तेमाल करने से नहीं होता है…

प्रतिवर्ष 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व एड्स दिवस की शुरुआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका मकसद एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था। माना जाता है कि एचआईवी संक्रमण की उत्पत्ति कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में वर्ष 1920 के आसपास हुई थी। वर्ष 1959 में एचआईवी के पहले मामले की पुष्टि एक ऐसे व्यक्ति में की गई, जिसकी मृत्यु कांगो में हुई थी। अनुसंधानों से पता चला कि अमेरिका में यह वायरस सर्वप्रथम वर्ष 1968 में पहुंचा था। ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) एक प्रकार का रेट्रोवायरस है जिसका सही ढंग से इलाज न किए जाने पर यह एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम या एड्स का रूप धारण कर सकता है। एचआईवी दो प्रकार के होते हैं : एचआईवी-1 औऱ एचआईवी-2. एचआईवी-1 को विश्व भर में अधिकांश संक्रमणों का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रमुख प्रकार माना जाता है, जबकि एचआईवी-2 कम क्षेत्रों में पाया जाता है और यह विशेषकर पश्चिम एवं मध्य अफ्रीकी क्षेत्रों में ही केंद्रित है। एचआईवी के इलाज में उपयोग की जाने वाली दवाओं को एंटीरेट्रोवाइरल थैरेपी कहा जाता है। यह रोग रक्त, वीर्य, योनि स्राव, गुदा तरल पदार्थ, असुरक्षित यौन संबंध और मां के दूध सहित शारीरिक तरल पदार्थ के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।

एड्स को एचआईवी संक्रमण का सबसे गंभीर चरण माना जाता है। एचआईवी का वायरस शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सीडी 4 नामक श्वेत रक्त कोशिका (टी-सेल्स) पर हमला करता है। ये वे कोशिकाएं होती हैं जो शरीर की अन्य कोशिकाओं में संक्रमण का पता लगाती हैं। शरीर में प्रवेश करने के बाद एचआईवी की संख्या बढ़ती जाती है और कुछ ही समय में वह सीडी-4 कोशिकाओं को नष्ट कर देता है एवं मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति की सीडी-4 कोशिकाओं में काफी कमी आ जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इन कोशिकाओं की संख्या 500-1600 के बीच होती है, परंतु एचआईवी से संक्रमित लोगों में सीडी-4 कोशिकाओं की संख्या 200 से भी नीचे जा सकती है। कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली व्यक्ति को कई गंभीर रोगों जैसे कैंसर आदि के प्रति संवेदनशील बना देती है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के लिए मामूली चोट या बीमारी से भी उबरना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2021 के अंत तक वैश्विक स्तर पर लगभग 38.4 मिलियन लोग एचआईवी से प्रभावित थे। इसके कारण अब तक दुनिया भर में लगभग 40 मिलियन लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 2022 में हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बैठक में कहा गया है कि विश्व को, एड्स का ख़ात्मा करने, कोविड-19 का मुक़ाबला करने और भविष्य की महामारियों को होने से पहले ही रोकने के लिए, जीवनरक्षक स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों की सर्वसुलभता सुनिश्चित करनी होगी। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एड्स, हर सप्ताह 13 हज़ार लोगों की मौत के लिए जि़म्मेदार बना हुआ है। एचआईवी-एड्स के संदर्भ में भारत की स्थिति काफी सकारात्मक है, फिर भी देश में निरंतर सतर्कता की जरूरत है। भारत में एचआईवी का पहला मामला वर्ष 1986 में सामने आया था। इसके बाद यह वायरस पूरे देश में तेज़ी से फैला। एचआईवी आकलन रिपोर्ट 2021 के अनुसार हमारे देश में लगभग 24.01 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं और वर्ष 2010 के बाद से भारत में नए एचआईवी संक्रमण में 46 फीसदी की वार्षिक गिरावट आई है । रोगियों की संख्या सबसे अधिक महाराष्ट्र में है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक क्रमश: दूसरे औऱ तीसरे स्थान पर हैं। 15-49 वर्ष के युवाओं में संक्रमण की दर मिज़ोरम में सबसे अधिक है। इसके बाद नागालैंड और मणिपुर का स्थान आता है । वर्ष 1986 में भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की स्थापना की जो अब स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एड्स विभाग बन गया है। एचआईवी-एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम ने एक विशेष लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अनुसार वर्ष 2030 तक यह सुनिश्चित किया जाना है कि 95 प्रतिशत लोग अपनी एचआईवी स्थिति जान सकें, पॉजिटिव एचआईवी वाले 95 प्रतिशत लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंच सकें और इलाज तक पहुंच प्राप्त 95 प्रतिशत लोगों में से वायरस के दबाव को कम किया जा सके। इन लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए दुनिया को उप-सहारा अफ्रीका में आधे मिलियन से अधिक एचआईवी से संबंधित मौतों के सबसे खराब स्थिति से बचने के प्रयासों को दोगुना करने की आवश्यकता होगी। 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों में भी वर्ष 2030 तक एड्स, तपेदिक और मलेरिया महामारियों को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

संसद द्वारा एचआईवी एवं एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 2017 को सितंबर 2018 से लागू किया गया। इसके माध्यम से एचआईवी-एड्स से पीडि़त लोगों को मेडिकल इलाज़, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश तथा नौकरियों के संबंध में समान अधिकार दिलाने की बात कही गई है। भारतीय समाज में एचआईवी एवं एड्स से जुड़ी मानसिकता को बदलना शायद नीति निर्माताओं के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है और इससे जल्द से जल्द निपटाया जाना भी आवश्यक है। कई लोग सोचते हैं कि एड्स रोगी के साथ उठने-बैठने से यह रोग फैलता है जो सही नहीं है। यह बीमारी छुआछूत की नहीं है। इस बीमारी को लेकर समाज में कई भ्रम हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है। एड्स का फैलाव छूने, हाथ से हाथ का स्पर्श, साथ-साथ खाने, उठने और बैठने, एक-दूसरे का कपड़ा इस्तेमाल करने से नहीं होता है। एड्स पीडि़त व्यक्ति के साथ नम्र व्यवहार जरूरी है ताकि वह अपना जीवन एक आम आदमी की तरह जी सके। संक्रमण के रोकथाम और नियंत्रण के साथ-साथ संक्रमित व्यक्ति की देखभाल करने पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए। एड्स को अब खत्म करने का समय आ गया है।

प्रत्यूष शर्मा

लेखक हमीरपुर से हैं


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