सशक्त महिला यानी सशक्त समाज

मिसाइलमैन डा. अब्दुल कलाम की प्रमुख शिष्या रहीं डा. थॉमस को भी इस परीक्षण के बाद ‘मिसाइल वुमन’ अथवा ‘अग्नि-पुत्री’ नामों से संबोधित किया जाने लगा है। मिसाइल कार्यक्रम का संपूर्ण नेतृत्व संभालने वाली वे देश की पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं। वर्तमान में भी महिलाएं कई उच्च पदों पर आसीन हो देश की प्रगति के लिए कार्यशील हैं। देश के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों में भी महिलाएं विभिन्न पदों पर आसीन हैं। आज महिलाओं के मुद्दों और सरोकारों पर कहीं अधिक संवेदनशील होने और परिपक्वता दिखाने की आवश्यकता है। बालिका के जन्म से लेकर उसके युवा होने और युवा से बुजुर्ग होने तक उन्हें हर वाजिब हक की पैरवी हमें करनी होगी…

हर वर्ष 8 मार्च को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसे सबसे पहली बार अमेरिका के न्यूयार्क शहर में मनाया गया था। इसका आयोजन अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने किया था। रूस में 1917 में महिलाओं ने हक और सम्मान के लिए हड़ताल आयोजित की थी। इसके बाद से दुनियाभर में महिला दिवस मनाया जाने लगा। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता वर्ष 1975 में उस वक्त मिली जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाना शुरू किया । इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सम्मान और अधिकारों के प्रति लोगों को जागरूक करना है। इस वर्ष का थीम ‘वूमेन इन लीडरशिप अचिविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वल्र्ड’ यानी ‘महिला नेतृत्व : कोरोना काल में बराबर भविष्य प्राप्त करना’ है। देश तभी सशक्त बन सकता है जब उसका हर नागरिक सशक्त हो। इसमें भी महिलाओं की भूमिका ही सबसे आगे है। परिवार में एक मां के रूप में वह अपनी यह भूमिका अपनी मेहनत से अदा करती है।

राष्ट्र निर्माण में उसके इस योगदान का लंबा इतिहास रहा है। विद्वानों का मानना है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था। अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’ अर्थात भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं। ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतीय जनजीवन की मूल धुरी नारी है। यदि यह कहा जाए कि संस्कृति, परम्परा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हो रही है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब-जब समाज में जड़ता आई है, नारी शक्ति ने ही उसे जगाने के लिए, उससे जूझने के लिए अपनी संतति को तैयार करके, आगे बढऩे का संकल्प दिया है। हमारे देश के विकास में महिलाओं को सहभागी बनाने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं। भारतीय संविधान द्वारा कानूनों के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा और सामान्य जीवन में उनकी समान भागीदारी के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। महिला साक्षरता दर भी 2011 के आंकड़ों के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत बढ़ी है और वे देश में शीर्ष पदों पर कार्य कर रही हैं। देश के चहुंमुखी विकास तथा समाज में अपनी भागीदारी को महिलाओं ने सशक्त ढंग से पूरा किया है। 73वें संवैधानिक संशोधन के बाद देश की पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया है जिससे आज कई महिलाएं ऊर्जावान नेतृत्व से अपने स्थानीय परिवेश में परिवर्तन ला रही हैं।

शक्त महिला सशक्त समाज की आधारशिला है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया था। रानी लक्ष्मीबाई, सरोजनी नायडू, मादाम भिखाजी कामा, अरुणा आसफ अली, एनी.बेसेन्ट, भगिनी निवेदिता, सुचेता कृपलानी, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, दुर्गा भाभी एवं क्रांतिकारियों को सहयोग देने वाली अनेक महिलाएं भारत में अवतरित हुईं जिन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। राजनीतिक और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उदाहरण के तौर पर विजयलक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया औऱ संयुक्त राष्ट्र महासभा की सदस्य भी रहीं। मैत्रेयी, गार्गी आदि विदुषी स्त्रियां शिक्षा के क्षेत्र में अपने बहुमूल्य योगदान के लिए आज भी पूजनीय हैं। आधुनिक काल में महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, अमृता प्रीतम आदि स्त्रियों ने साहित्य तथा राष्ट्र की प्रगति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कला के क्षेत्र में लता मंगेश्कर, देविका रानी, वैजयन्ती माला आदि का योगदान प्रशंसनीय है। वर्तमान में महिलाएं समाज सेवा, राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र उत्थान के अनेक कार्यों में लगी हैं। भारतीय महिलाएं विधि, अकादमिक, साहित्य, संगीत, नृत्य, खेल, मीडिया, उद्योग, आईटी सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। अग्नि-5 के सफल परीक्षण के बाद महिला वैज्ञानिक टेसी थॉमस की मुख्य भूमिका उभरकर सामने आई है।

मिसाइलमैन डा. अब्दुल कलाम की प्रमुख शिष्या रहीं डा. थॉमस को भी इस परीक्षण के बाद ‘मिसाइल वुमन’ अथवा ‘अग्नि-पुत्री’ नामों से संबोधित किया जाने लगा है। मिसाइल कार्यक्रम का संपूर्ण नेतृत्व संभालने वाली वे देश की पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं। वर्तमान में भी महिलाएं कई उच्च पदों पर आसीन हो देश की प्रगति के लिए कार्यशील हैं। देश के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों में भी महिलाएं विभिन्न पदों पर आसीन हैं। आज महिलाओं के मुद्दों और सरोकारों पर कहीं अधिक संवेदनशील होने और परिपक्वता दिखाने की आवश्यकता है। बालिका के जन्म से लेकर उसके युवा होने और युवा से बुजुर्ग होने तक उन्हें हर वाजिब हक की पैरवी हमें करनी होगी। यदि हर माता-पिता लडक़ी और लडक़े का भेद अपने मन से हटा दें तो आंकड़ों का यह अंतर अपने आप ही मिट जाएगा। इस सामाजिक मानसिकता को बदलने का जिम्मा देश की वर्तमान युवा पीढ़ी को ही उठाना होगा। किसी भी समाज का स्वरूप वहां की नारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ एवं सम्मानजनक होगी, तभी समाज भी सुदृढ़ एवं मजबूत होगा। महिला दिवस पर नारी शक्ति को नमन है।

प्रत्यूष शर्मा

स्वतंत्र लेखक


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