आपदा से पहले कहां थी प्रदेश की तैयारी

डैम के गेट खोलने की कवायद के लिए गाइडलाइंस रिव्यू कर उसे सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए। बिपरजोय तूफान के प्रबंधन से सबक लेना चाहिए था, लेकिन हिमाचल सरकार पुख्ता चेतावनी के बाद भी सोई रही, पूर्व योजना के अभाव में आपदा में जान-माल का नुकसान ज्यादा हुआ। आपदा के बाद सक्रियता फोटोशूट व छवि प्रबंधन की अधिक रही और उसके बाद केंद्र सरकार से मिली 400 करोड़ की राहत राशि का शुक्रिया करने से भी सरकार कतराती रही। हद तो तब हुई जब चहेतों को एक लाख रुपए नकद राहत राशि राहत मैन्युअल के खिलाफ बांटी गई…

आठ जुलाई 2023 लगभग 2 बज कर 18 मिनट हर हिमाचल वासी के मोबाइल में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का एक मैसेज आता है जिसका सार अग्रलिखित है : ‘अगले 24 से 48 घंटों के दौरान हिमाचल प्रदेश में बिलासपुर, चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू और मंडी जिलों में अलग-अलग स्थानों पर अत्यधिक भारी बारिश के साथ भारी से बहुत भारी वर्षा होने की संभावना है। किसी भी सहायता के लिए कृपया हेल्पलाइन नंबर 1070/1077 पर संपर्क करें।’ उसके अगले दिन हिमाचल में भयंकर आपदा आती है। विपाशा का रौद्र रूप, शामती (सोलन) की आपदा, पहाड़ों के दरकने के साथ रास्तों का गायब हो जाना, हिमाचल ने चन्द्रताल व कुल्लू में फंसे पर्यटक भी देखे। आपदा के बाद सरकार को धीरे-धीरे ही सही, पर सक्रिय होते हिमाचल ने देखा। मैं तो बस यही कहूंगा हज़ूर आते आते बहुत देर कर दी। 2013 में उत्तराखंड में आपदा क्यों आई थी, क्योंकि पश्चिमी विक्षोभ और मानसून दोनों ने एक साथ दस्तक उत्तराखंड में एक साथ दी थी। वहीं इस बार हमें स्पष्ट दिख रहा था कि दक्षिणी पश्चिमी मानसून, दक्षिणी पूर्वी मानसून और पश्चिमी विक्षोभ एक साथ सक्रिय होते हुए 8, 9 और 10 जुलाई को हिमाचल में दस्तक देंगे।

कराची में 6 व 7 जुलाई की भारी, बहुत भारी बारिश पश्चिमी विक्षोभ के कारण थी जो शिवालिक की पहाडिय़ों से बढ़ते हुए धौलाधार और पीर पंजाल तक जा रही थी। इसीलिए चेतावनी भी समय रहते आम जन को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने दे दी थी। परंतु हमें चेतावनी मिलने के बाद भी सरकारी व सामाजिक स्तर पर कहां कमी रह गयी। आखिर बांधों के गेट पहले क्यों नहीं खोले गए। आखिर नदी किनारे जाने से रोकने की चेतावनी क्यों नही दी गयी। आखिर खनन की बात आपदा के 10-15 दिन तक ही क्यों होती है। नदी के प्रवाह की मैपिंग से छेड़छाड़ क्यों होने दी गयी। पहाड़ों में सडक़ निकालने के लिये पहाड़ काटने को ही क्यों सोचा गया, उससे निकली गाद को फैंकने के लिये कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनाई, ये प्रश्न हिमाचल के अस्तित्व से लेकर आज तक सब के ऊपर हैं और रहेंगे। हम सब इस विकास की परिपाटी के दोषी हैं।

लेकिन वर्तमान आपदा की आहट के ध्यान में आने के बाद भी हिमाचल सरकार क्यों सोई रही। जब 6 जुलाई को मालूम चल गया था कि पश्चिमी विक्षोभ कराची (सिंध) से होता हुआ पंजाब के रास्ते हिमाचल के विभिन्न स्थानों में बारिश करेगा, वहीं बिपरजोय तूफान के कारण पूर्वी और पश्चिमी मानसून उसी दौरान हिमाचल में अति सक्रिय होगा तो सरकार सोई क्यों रही? क्या मुख्यमंत्री को नादौन में उनके घर में कोई जानकारी विभाग ने नहीं दी या हिमाचल में मौसम पर नजर रखने के लिये समर्पित अधिकारियों की टीम ही नहीं है। उधर गुजरात में बिपरजोय तूफान को देखते हुए वहां की सरकार ने युद्धस्तर की तैयारियां की थी। वहां 150 किलोमीटर की रफ्तार से बारिश के साथ तूफान आया, लेकिन जान का नुकसान हुआ ही नहीं। वहां गुजरात में भी तीन दिन पहले हालात मालूम हो गए थे, यहां हिमाचल में भी 6 जुलाई को सबको अंदेशा था सिवाए सरकार के। आपदा से पहले प्रबंधन शून्य था और आपदा के बाद आप सबके सामने है। श्रेय लेना, फोटोशूट, वीडियो शूट करना आपके लिए आवश्यक होगा, लेकिन जिनका आशियाना बिछड़ा है, जिनके रोजगार छिन गए हैं, वो आपदा से पहले के शून्य प्रबंधन के लिये वर्तमान सरकार को ही दोषी मान रहे हैं। बिपरजोय से लडऩे की गुजरात जैसी जिजीविषा होती तो हिमाचल आज सामान्य हो जाता। मानसून से पहले नदियों के तटों पर आवश्यक उपाय वैज्ञानिक ठंग से हर वर्ष होने चाहिए। आपदा से पहले पर्यटकों व स्थानीय वासियों के लिए सुरक्षित स्थान, भोजन सामग्री व अन्य जरूरी प्रबन्ध पहले करने चाहिए। आपदा में सबसे अधिक क्षति पानी के स्रोतों को होती है। वैकल्पिक प्रबंधन के बारे में गहनता से सोचना चाहिए। वर्तमान सरकार को इस हेतु वित्तीय प्रबंधन जल जीवन मिशन से हो सकता है, परंतु इसके लिए राजनीतिक कारणों से जल जीवन मिशन को कोसना बंद कर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बना कर केंद्र से करोड़ों रुपये का धन केवल इसी परियोजना से मिल जाएगा। इसके साथ ही पालमपुर और बिलासपुर में दो गांव हैं- बन्दला यानी बारिश की बूंदें लाने वाला दर्रा, क्या यहां पर मौसम वेधशाला नहीं खोली जा सकती। क्या सुरक्षा की दृष्टि से जो राडार लगे हैं, वैसे ही राडार पश्चिमी विक्षोभ को मापने, उसकी तीव्रता को समझने के लिए हिमाचल में नहीं लग सकते? नदियों के रखरखाव का वार्षिक कैलेंडर नहीं बनाया जा सकता?

डैम के गेट खोलने की कवायद के लिये गाइडलाइंस रिव्यू कर उसे सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए। बिपरजोय तूफान के प्रबंधन से सबक लेना चाहिए था, लेकिन हिमाचल सरकार पुख्ता चेतावनी के बाद भी सोई रही, पूर्व योजना के अभाव में आपदा में जान-माल का नुकसान ज्यादा हुआ। आपदा के बाद सक्रियता फोटो शूट व छवि प्रबंधन की अधिक रही और उसके बाद केंद्र सरकार से मिली 400 करोड़ की राहत राशि का शुक्रिया करने से भी सरकार कतराती रही। लेकिन हद तो तब हुई जब चहेतों को 1 लाख रुपये नकद राहत राशि राहत मैन्युअल के खिलाफ बांटी गई। राहत राशि में बन्दरबांट अगले लेख में चर्चा करूंगा। लेकिन आपदा ने यह बता दिया कि हिमाचल में व्यवस्था परिवर्तन नहीं, अव्यवस्था परिस्थापन हो रहा है।

त्रिलोक कपूर

भाजपा नेता


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