मैगजीन

मार्कंडेय पुराण आकार में छोटा है। इसके एक सौ सैंतीस अध्यायों में लगभग नौ हजार श्लोक  हैं। मार्कंडेय ऋषि द्वारा इसके कथन से इसका नाम मार्कंडेय पुराण पड़ा। यह पुराण वस्तुतः दुर्गा चरित्र एवं दुर्गा सप्तशति के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए इसे शाक्त संप्रदाय का पुराण कहा जाता है। पुराण के सभी लक्षणों

श्रीश्री रवि शंकर कृपया हमें हनुमान के विषय में कुछ बताएं? श्री श्री रविशंकर-कहा गया है कि रामायण आपके अपने भीतर ही घटित हो रही है । आपकी आत्मा राम है, मन सीता, आपके श्वास या प्राणशक्ति हनुमान है, आपकी चेतना लक्ष्मण और आपका अहं रावण है । जब अहं (रावण) मन (सीता) का हरण

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘सामंजस्य’ पर उनके विचार… -गतांक से आगे… सामंजस्य तब

न स्वेदो च दौर्गंध्यं न जार नेन्द्रियक्षयः। तत्पानात्स्वच्चनसां जनानां तत्र जायते। तीरमृत्तद्रसं प्राप्य सुखवायु विशेषिता। जाम्बूनदाख्यं भवति सुवर्ण सिद्धभूणम्। भद्राश्व पूर्वतो मेरोः केतुमाल च पश्चिमे। वर्षेद्वे तु मुनिश्रेष्ठ तयोर्मध्यमिताबृतः। वनं चैत्ररथं पूर्वे दक्षिणे गन्धमादनम्। बैभ्राजं पश्चिमे तद्वद्वुत्तरे नन्दनं स्मृतम्। अरुणोदं महाभ्रद्रमसितोदं समानसम्। सरास्येतानि चत्वारि देवभोग्यानि सर्वदा। शीतरंभश्च कुमुंदश्च कुररी माल्यावांस्यथा। वैकङ्कप्रमुखा मेराः पूर्वत केसराचललाः। त्रिकुटः

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… संसार के इतिहास से तुम जानते हो कि महापुरुषों ने बड़े-बड़े स्वार्थ त्याग किए और उनके शुभ फल का भोग जनता ने किया। अगर तुम अपनी ही मुक्ति के लिए सब कुछ त्यागना चाहते हो, तो फिर वह त्याग कैसा? क्या तुम संसार के कल्याण के लिए अपनी मुक्ति कामना

ओशो समाधि या साक्षी जीवन, ध्यान का सूत्र है, बाकी की सात बातें तो प्रेम की ही हैं। हम  दूसरों से कैसे संबंधित हों? कैसे हम शीलवान हों। इस सबका तो दूसरों से संबंध है, तथाता का भी दूसरों से ही अधिक संबंध है। सम्यक दृष्टि अगर हमारी होगी तो हम कथामुक्त होंगे। हम दूसरों

जेन कहानियां एक जाने -माने पहलवान को लोग ओ-नामी कहकर पुकारा करते थे। जापानी में ओ-नामी का अर्थ होता है उत्ताल तरंग। ओ-नामी अतुलित बलशाली होने के साथ-साथ कुश्ती लड़ने की कला में भी बड़ा माहिर था। अभ्यास  के दंगल में अकसर वह अपने उस्ताद को  भी पछाड़ दिया करता था, मगर जनता की मौजूदगी

स्वामी रामस्वरूप भाव यह है कि ऐसे श्रद्धारहित पुरुष उस समय जब श्रीकृष्ण महाराज शरीर में थे वह श्रीकृष्ण महाराज के सान्निध्य में नहीं आते थे और उस प्रकार  श्रीकृष्ण महाराज के वैदिक प्रवचनों के अनुसार जो ईश्वर प्राप्ति का रहस्य( वैदिक ज्ञान एवं योग विद्या से ईश्वर के स्वरूप का जानना) है, उसको नहीं

भगवान ने अपनी माया खींच ली। अब नारदजी देखते हैं, तो न वहां राजकुमारी है और न ही लक्ष्मीजी। वे बड़ा पश्चात्ताप करने लगे और ‘त्राहि त्राहि’ कहकर प्रभु के चरणों पर गिर पड़े। भगवान ने भी उन्हें सांत्वना दी और आशीर्वाद दिया कि अब माया तुम्हारे पास न फटकेगी… गतांक से आगे… विष्णुलोक से