प्रतिबिम्ब

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी 37वीं किस्त… सपना नेगी मो.-9354258143 किन्नौर की पुरातन संस्कृति को संजोए रखने में यहां के ग्राम देवताओं की अहम भूमिका रही है। अगर यहां के ग्राम

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित विमर्श के बिंदु हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -36 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास

बोलियों में हिमाचल को अभिव्यक्त करने के प्रयास में, फिर ‘भाषा’ मुखर हो रही है, तो कहीं प्रकाशनों में चिन्हित जज्बा अपनी उपस्थिति का उद्गार कर रहा है। बागीचे में जैसे कोई कोयल कुलांच भरती या डाली-डाली शरारत से भरी और भीतर सारी खनक लिए, पहाड़ी में ़गज़ल पूरे शृंगार के साथ पेश हो रही

चंचल सरोलवी,  मो.-8580758925 चंबयाल़ी लोकसाहित्य जहां अपनी विभिन्न विधाओं से ओत-प्रोत एवं समृद्ध है, वहीं यह अपने आंचल में समेटे व्यंग्यात्मक उपमाओं के रसास्वादन से भी लबरेज है। व्यंग्य का एक तीखा बाण लोगों को अलौकिक ऊर्जा प्रदान कर जीवन में नवसंचार कर, दुख-चिंताओं के भंवर में उलझे व्यक्ति को कुछ क्षणों के लिए सब

बल्लभ डोभाल, मो.-8826908116 -गतांक से आगे… वास्तव में धर्म की परिभाषा जितनी कठिन है, उतनी ही आवश्यक भी है। मनु, याज्ञवल्क्य आदि ने धर्मशास्त्र जरूर लिख दिए, पर उतने से काम चलने वाला नहीं। व्यवस्था और स्थितियों के अनुसार हमें स्वयं भी कई निर्णय लेने पड़ते हैं। इसलिए धर्म को किसी सांचे में नहीं रखा

अतिथि संपादक:  डा. गौतम शर्मा व्यथित मो.- 9418130860 विमर्श के बिंदु हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -35 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली

बल्लभ डोभाल, मो.-8826908116 भारतीय मनीषा में देवता शब्द अनेक असाधारण क्षमताओं की प्रतीति कराने वाला है। देवता शब्द के अर्थ बहुत व्यापक हैं, किंतु व्यवहार में उसका उपयोग कुछ इस तरह से हुआ है कि उसे समझ पाने की स्थिति में बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में किसी समाष्ठि में काम

डा. मनोरमा शर्मा ,  मो.-9816534512 लोकसाहित्य बहुआयामी शब्द है। किसी राष्ट्र के बौद्धिक विकास का साक्ष्य उसका साहित्य ही होता है। कहा भी गया है कि साहित्य संस्कृति का दर्पण है। लोकसाहित्य का अपना स्वतंत्र महत्व और अस्तित्व होता है। जन समाज के साहित्य को लोकसाहित्य कहा जाता है क्योंकि इसमें लोक जीवन अभिव्यक्ति पाता

एक सौ चौंतीस कविताओं का एक नया संग्रह ‘काव्य विविधा’ के नाम से प्रकाशित हुआ है। इसके संपादक शक्ति चंद राणा ‘शक्ति’ तथा रवि कमार गोंड़ हैं। इस संग्रह में 28 कवियों की कविताओं को संकलित किया गया है। शगुन पब्लिकेशंस दिल्ली से प्रकाशित इस काव्य संग्रह का मूल्य 295 रुपए है। काव्य संग्रह की