अब नहीं सुनाई देते ‘सुंदर-मुंदरिए’ के बोल

By: Jan 13th, 2017 12:05 am

नालागढ़ —  आधुनिक युग, इंटरनेट संस्कृति पर्वों पर भारी नजर पड़ती आ रही है। लोहड़ी पर्व पर जहां सुंदर-मुंदरिए जैसे गीतों का प्रचलन होता था और लोहड़ी पर्व से एक पखवाड़े पूर्व इसकी तैयारियां शुरू हो जाती थीं, वहीं आज के दौर में यह सब अब सपना बनकर रह गया है। सोशल साइट्स पर तो एक-दूसरे को खूब संदेशों का आदान-प्रदान होता है, लेकिन धरातल पर आज यह प्रचलन कम हो गया है। लोहड़ी पर्व पर लोहड़ी मांगते हुए बच्चों की आवाजें भी आधुनिकता की चकाचौंध में गुम नजर आती हैं। जानकारी के अनुसार लोहड़ी पर्व पर जहां करीब 300 सालों से मनाए जाने वाले ऐतिहासिक पीरस्थान लोहड़ी मेले की आस्था आज भी बरकरार है, वहीं लोहड़ी पर्व पर वैसी चकाचौंध नजर नहीं आती, जो कुछ सालों पहले हुआ करती थी। कुछ सालों पहले लोहड़ी पर्व का अपना ही एक विशेष क्रेज होता था और इसकी तैयारियों को लेकर लोगों सहित बच्चों में भी खासा उत्साह होता था। लोहड़ी पर्व पर जलाए जाने वाले अलाव के लिए जहां प्रत्येक घर से एक-एक लकड़ी एकत्रित की जाती थी, वहीं गोबर के उपले भी जलाने के लिए इकट्ठे किए जाते थे। इन सभी की पूजा-अर्चना की जाती थी और लोग एक स्थान पर एकत्रित होते थे। एकत्रित की गई लकडि़यों व गोबर के उपले जलाए जाते थे और महिलाएं सुंदर मुंदरिए का गीत गाती थी, जिससे पर्व की एक अपनी ही शान होती थी, लेकिन आधुनिकता की दौड़, इंटरनेट का बोलबाला है, वहीं पर्वों की अहमियत धीरे-धीरे कम होने लगी है। आज की पीढ़ी प्राचीन विरासतों, धरोहरों व पर्वों की अहमियत को भूलती जा रही है। आज की पीढ़ी आधुनिक दौर में चल रहे प्रचलनों की ओर अधिक आकर्षित हो रही है। नालागढ़ शहर के वरिष्ठ नागरिक एवं समाजसेवी सुरजीत डंडोरा के मुताबिक पहले यह दौर होता कि सभी घरों के लोग एकत्रित होकर लोहड़ी का पर्व मनाते थे। इसके लिए बाकायदा प्रत्येक घर से लकड़ी और गोबर के उपले एकत्रित किए जाते थे, जिनकी पूजा-अर्चना के बाद महिला सुंदर मुंदरिए का गीत गुनगुनाती थी, लेकिन आज के दौर में यह प्रचलन धीरे-धीरे कम होने लगा है। सुरजीत डंडोरा ने कहा कि लोगों को अपनी सभ्यता को नहीं भूलना चाहिए और अपनी संस्कृति को कायम रखना चाहिए।

आजकल कम हो गया लोहड़ी का क्रेज

नौणी —  आजकल टेक्नोलॉजी की तरफ रुख करते लोग अपनी प्राचीन परंपरांओं और तीज त्योहारों को भूलते जा रहे हैं। करीब दस वर्ष पूर्व गली-मोहल्लों में शाम के समय नवयुवकों की टोलियां लोगों के घर-घर जाकर लोहड़ी मांग कर पारंपरिक लोहड़ी के गीत गाया करते थे, लेकिन अब यह सब परंपरापराएं समय के साथ गायब होती नजर आ रही है। इस वर्ष लोहड़ी के त्योहार को लेकर पंचायत में न कोई विशेष रौनक देखने को मिल रही, न ही बच्चों की टोलियां लोहड़ी के गीत गाते दिखाई दे रहे हैं। पंचायत में रहने वाले दिनेश, वीरेंद्र, रिंकू, सुनीता, निशा, नरेंद्र, सुरेश व अन्य लोगों ने बताया कि वे भी घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाकर पैसे इकट्ठे किया करते थे, लेकिन आजकल के बच्चों को शायद लोहड़ी के गीत पूरे याद नहीं है व त्योहार मात्र औपचाकिता बनकर रह गए हैं। युवा जीत का कहना है कि उन्हें लोहड़ी के गीत थोड़ा बहुत याद है व बचपन में वे गीत भी इन्हें गाया करते थे। वर्तमान के दौर में यह सब युवा भूलते जा रहे हैं, जो कि हमारी पुरानी संस्कृति के खिलाफ है। वहीं राधा का कहना है कि लोहड़ी के त्योहार पर घर की सभी महिलाएं मिलकर तिल व गुड़ के लड्डू बनाती हैं व आपस में अंताक्षरी खेलती है। अध्यापक सोनू का कहना है कि बच्चों को संस्कार व परंपराओं का ज्ञान नहीं है। स्कूल में बच्चों को त्योहारों के बारे में जानकारी देननी चाहिए। रोहित का कहना है कि हमें परंपरा को नहीं भूलना चाहिए।


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