इंद्र देव के दरबार में हाजिरी देंगे देवी-देवता

By: Jan 14th, 2017 12:05 am

रामपुर बुशहर – मकर संक्रांति पर आयोजित माघ साजे के पर्व पर ऊपरी हिमाचल के सैकड़ों देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर निकल गए हैं। माघ साजे पर मंदिरों व घरों में ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बाद इन्हें विदाई देते हैं। यह प्रथा चीरकालीन है। जानकारी के मुताबिक मकर संक्रांति पर देवता स्वर्ग में वर्ष भर का लेखा-जोखा तैयार करते हैं। इसी कार्रवाई को लेकर देवी-देवता अब एक महीने बाद ही वापस अपने स्थलों की ओर लौटेंगे। करीब एक महीने तक देवी-देवता स्वर्ग प्रवास में इंद्र देव की सभा में शरीक होंगे। इस सभा में समस्त देवी-देवता वर्ष भर होने वाली घटनाओं की भी जानकारी लेंगे तथा अपने-अपने क्षेत्र के लिए सुख-समृद्धि व खुशहाली का वरदान लेकर वापस लौटेंगे। अपर हिमाचल में मकर संक्रांति के अवसर पर माघ साजा पर्व आयोजित किया जाता है और लोग इस पर्व को नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं। माघ महीने के आगाज पर मनाए जाने वाले इस पर्व का इतिहास सदियों से देवी-देवताओं से जुड़ा है। मान्यता अनुसार पर्व के दौरान लोग सुबह चार बजे अपने घरों में उठते हैं और अच्छे-अच्छे पकवान तैयार कर पूजा-अर्चना के साथ देवी-देवताओं की विदाई करते हैं। देवताओं की विदाई के बाद एक महीना तक मंदिर में कोई भी धार्मिक समारोह आयोजित नहीं किया जाएगा। इसके साथ-साथ घरों में भी विवाह समारोह एवं धार्मिक समारोह आयोजित नहीं किए जाएंगे। अपर हिमाचल के सैकड़ों देवी-देवता एक महीना बाद ही स्वर्ग प्रवास से वापस लौटेंगे। इंद्रदेव की सभा में सभी देवी-देवता अपने-अपने क्षेत्र के लिए खुशहाली का वरदान मांगंेगे तथा वर्ष भर होने वाली घटनाओं की जानकारी लेंगे। पृथ्वी लोक में पहंुचने पर प्रत्येक मंदिरों में समारोह आयोजित किए जाएंगे तथा गूर में दैवीय शक्ति लाई जाएगी। इस दौरान देवी-देवता अपने गूर के माध्यम से भविष्यवाणी करेंगे। देवी-देवता फसलों व फलों के उत्पादन के अलावा प्राकृतिक आपदाओं व क्षेत्रीय लोगों से जुड़ी तमाम घटनाओं की जानकारी गूर के माध्यम से देंगे। माघ साजा के पर्व पर छोटे बच्चे अपने बुजुर्गों का आदर करते हैं, ताकि वर्ष भर नौनिहाल अपने माता-पिता व रिश्तेदारों का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें। इसके लिए बच्चे व बूढ़े अपने से बड़ी उम्र के लोगों को पाजा के विशेष पत्ते देकर उन्हें अर्पित करते हैं। पूरे दिन भर यही प्रक्रिया चलती रहती है और अपने रिश्तेदारों को पकवान भी बांटते हैं। लोग अपने घरों में पोल्डू, बाबरू, बड़े व चूड़े सहित अन्य पकवान बनाते हैं। इस पर्व के दौरान हर गांव से बाहर ब्याही गई बेटियों को परिजन उपहार स्वरूप स्वयं निर्मित पकवान ले जाते हैं। बेटियां भी अपने परिजनों की खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ती। ऐसे में ये पर्व अपनी तरह का एक विशेष पर्व है।


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