ऊंची अपेक्षाओं के बीच बजट

By: Jan 30th, 2017 12:07 am

newsडा. अश्विनी महाजन

लेखक, दिल्ली विश्वविद्यालय के  पीजीडीएवी कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

गत वर्ष का बजट लगभग 20 लाख करोड़ रुपए का था। विमुद्रीकरण के बाद सफेद अर्थव्यवस्था को मिल रहे प्रोत्साहन के बाद कहा जा रहा है कि सरकारी राजस्व में खासी वृद्धि होगी। हालांकि चालू वर्ष में विमुद्रीकरण के कारण छोटे-बड़े उद्योगों में कुछ नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन अपेक्षा की जा रही है कि आने वाले वर्ष में देश विमुद्रीकरण के कारण आने वाली समस्याओं से निजात पा लेगा। ऐसे में वित्त मंत्री वर्ष 2017-18 में बेहतर राजस्व की अपेक्षा कर सकते हैं, जिसके चलते बजट का आकार 10 से 15 प्रतिशत बढ़कर 22-23 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है…

केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोटों के विमुद्रीकरण के एक बड़े निर्णय के बाद पहली फरवरी, 2017 को प्रस्तुत होने वाले बजट पर सबकी निगाहें टिकी हैं। केंद्र सरकार का बजट कई मायनों में महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह आगामी वर्ष में सरकार की आर्थिक नीति का एक दर्पण भी होता है। विमुद्रीकरण के फैसले के बाद आम जनता का सरकार को बिना शर्त समर्थन और प्रधानमंत्री द्वारा बार-बार दोहराया जाना कि विमुद्रीकरण का फैसला गरीबों के हित को ध्यान में रखते हुए ही लिया गया है, लोगों की अपेक्षाओं को बढ़ाने का काम कर रहा है। मध्यम वर्ग को यह आशा है कि सरकार आयकर में छूट देगी। गरीबों को आशा है कि पहले से बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। किसान को आशा है कि सिंचाई, बीज, भंडारण आदि की सुविधाओं में सुधार होगा। आर्थिक क्षेत्र के जानकार यह अपेक्षा कर रहे हैं कि कंपनियों के लिए टैक्स कम होगा और रोजगार निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। शोध एवं विकास कार्यों पर खर्च बढ़ेगा और टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत सभी क्षेत्रों में सरकार पहले से ज्यादा खर्च करेगी।

वर्ष 2016-17 का बजट लगभग 20 लाख करोड़ रुपए का था। इस बार विमुद्रीकरण के बाद सफेद अर्थव्यवस्था को मिल रहे प्रोत्साहन के बाद ऐसा कहा जा रहा है कि सरकारी राजस्व में खासी वृद्धि होगी। हालांकि चालू वर्ष में विमुद्रीकरण के कारण छोटे-बड़े उद्योगों और व्यापार में कुछ नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन अपेक्षा की जा रही है कि आने वाले वर्ष में देश विमुद्रीकरण के कारण आने वाली समस्याओं से निजात पा लेगा और जीडीपी में ग्रोथ पहले से बेहतर हो जाएगी। ऐसे में वित्त मंत्री वर्ष 2017-18 में बेहतर राजस्व की अपेक्षा कर सकते हैं, जिसके चलते बजट का आकार 10 से 15 प्रतिशत बढ़कर 22-23 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। बजट का आकार तय करेगा कि सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सामाजिक सुविधाओं पर कितना खर्च कर पाएगी। बजट के आकार से ही तय होगा कि क्या शोध एवं विकास कार्यों पर पहले से बेहतर खर्च हो पाएगा या इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास पहले से और बेहतर हो सकेगा। इसी वर्ष फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में इसरो द्वारा 103 उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने की योजना है। अगले साल इस गति को और बढ़ाया जाना है। इस संदर्भ में प्रगति भी सरकार के बजट के आकार से ही तय होगी। आज हमारा गरीब ही नहीं, बल्कि मध्यम वर्ग भी स्वास्थ्य सुविधाओं की महंगे होने से संकट में है। पिछले 10 सालों में अस्पताल में भर्ती होने का खर्च तीन से चार गुना बढ़ चुका है। दवाइयां भी दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही हैं। आज भारत में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में सरकार का हिस्सा घटता जा रहा है और निजी खर्च बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य सुविधाएं गरीब आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। ऐसे में सरकार का स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाया जाना, समय की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्पेंसरी खोलने से लेकर बड़े अस्पतालों में सुधार और नए अस्पताल खोलने की दरकार है। पिछले कुछ समय से संसाधनों की कमी सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार से रोकती रही है। इस वर्ष राजस्व की बेहतर स्थिति की आशा से स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बढ़ने की उम्मीद जरूर जागी है। पिछले बजट में जन-औषधि केंद्रों के लिए बजट प्रावधानों में वृद्धि की गई थी। इस योजना को और आगे बढ़ाने की जरूरत होगी। हमें समझना होगा कि गरीब के स्वास्थ्य की रक्षा बीमा से नहीं हो सकती, इसके लिए सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतरी की जरूरत होगी।

आज जरूरत इस बात की है कि न केवल खाद्यान्नों और अन्य खाद्य पदार्थों जैसे दालों, तिलहनों इत्यादि में आत्मनिर्भरता बढ़े, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हो। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन हो। इसके लिए बजट में ग्रामीण विकास के लिए बेहतर बजट प्रावधानों की जरूरत है। कृषकों के लिए सिंचाई (खास तौर पर सौर ऊर्जा चालित सिंचाई और ड्रिप सिंचाई), भंडारण एवं कोल्ड स्टोरेज, बीज और विपणन सभी क्षेत्रों में सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत होगी। पिछले साल इनमें से अधिकांश मदों पर खर्च बढ़ाया गया था, उस काम को और आगे बढ़ाने की जरूरत है। नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद ऊर्जा क्षेत्र में खासी उपलब्धियां हासिल हुई हैं। ऊर्जा उत्पादन बढ़ा है और देश पहली बार ऊर्जा सरप्लस की स्थिति में आया है। लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि अभी भी बिजली या तो सभी स्थानों पर पहुंची नहीं है या जहां पहुंची भी है, वहां भी पूरे समय उपलब्ध नहीं है। ऊर्जा सरप्लस इस कारण से भी है कि गरीब आदमी महंगी बिजली खरीदने की क्षमता भी नहीं रखता है। इसलिए बिजली का और उत्पादन और उसे सस्ता करने की भी जरूरत है। आज सरकार का काफी ध्यान सौर ऊर्जा क्षमता के निर्माण की ओर है, लेकिन हम अपने अधिकांश सौर ऊर्जा उपकरणों की जरूरत के लिए विदेशों पर निर्भर करते हैं, क्योंकि हमारे देश में सौर ऊर्जा उपकरणों का निर्माण बहुत कम होता है। इसके लिए भारी निवेश की जरूरत होगी। देश में ऊर्जा के विकास हेतु सरकार को इस क्षमता निर्माण के लिए बजट में पर्याप्त प्रावधान करने चाहिए।

लोगों की कठिनाइयों के अलावा विमुद्रीकरण के फैसले की आलोचना यह कहकर की जा रही है कि इससे ग्रोथ को एक बड़ा धक्का लगेगा। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने तो यहां तक कहा कि इससे इस वर्ष जीडीपी ग्रोथ में दो प्रतिशत की कमी आ सकती है। इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए सबसे बड़ी चुनौती ग्रोथ को बढ़ाने की है। हालांकि वैश्विक एजेंसियों समेत तमाम अनुमान यह कह रहे हैं कि जीडीपी ग्रोथ अगले साल 7.5 प्रतिशत से ज्यादा होगी, लेकिन इसके बावजूद हमें ध्यान रखना होगा कि चालू वर्ष में निवेश मांग पहले से 0.2 प्रतिशत कम होने की आशंका है। यह सही है कि घटती ब्याज दरों के चलते निजी क्षेत्र में ही नहीं, सार्वजनिक निवेश भी बढ़ सकता है। लेकिन अर्थव्यवस्था को एक बड़ी छलांग लगाने के लिए जरूरी है कि सार्वजनिक निवेश में भी खासी वृद्धि की जाए। ऐसे में वित्त मंत्री का पिछले साल का यह संकल्प कि 2017-18 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के तीन प्रतिशत तक लेकर आना है, इस काम में बाधा बन सकता है। इसलिए ग्रोथ को प्रोत्साहन देने हेतु सड़क, रेल, ऊर्जा समेत अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी निवेश को बढ़ाने हेतु सरकार को बड़े प्रयास करने होंगे।

आगामी वर्ष में राजकोष में कितनी वृद्धि होगी, इसमें असमंजस बना हुआ है। इसलिए इस वर्ष यदि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के आसपास रखा जाता है तो वित्त मंत्री को खर्च के लिए लगभग 65 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त मिल जाएंगे। उम्मीदों और अपेक्षाओं के मद्देनजर बजट 2017-18 कितना खड़ा उतरेगा, यह तो बजट आने पर ही पता चलेगा, लेकिन विमुद्रीकरण के बाद उभरी आकांक्षाओं के चलते गरीब से अमीर तक, गांव से शहर तक सबको इस बजट से बहुत उम्मीदें हैं।

ई-मेल : ashwanimahajan@rediffmail.com


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