कम बर्फबारी से ग्लेशियरों को खतरा
कुल्लू — जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में कम बर्फबारी हजारों साल पुराने ग्लेशियरों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। हजारों साल पुराने ग्लेशियर कम बर्फबारी के कारण रिचार्ज नहीं हो पा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे कि वैज्ञानिक भी काफी परेशान हैं। पिछले कुछ सालों से शीत रेगिस्तान लाहुल-स्पीति में आशानुकूल बर्फबारी नहीं हो पा रही है, जिससे कि घाटी के किसान-बागबान भी काफी चिंतित है। जनवरी माह भी आधे से ज्यादा बीत गया है। लाहुल की चंद्राबैली में अभी तक मात्र दो से अढ़ाई फुट तक बर्फ जमी हुई है। जबकि यहां पर आठ से दस फुट तक बर्फबारी होती थी। वहीं पट्टन बैली के गाहर और तोद में मात्र एक फुट तक की बर्फ है। जबकि कुछ सालों पहले यहां पर दस से 12 फुट तक की बर्फ जमा होती थी। लोगों का मानना है कि साल दर साल लाहुल में बर्फबारी कम होती जा रही है। पिछले दो वर्षों में जनजातीय जिला की इस घाटी में जनवरी महीने में तीन से चार फुट बर्फबारी हुई थी, लेकिन इस बार बहुत कम बर्फबारी हुई। लोगों की मानें, तो पिछले वर्ष से लाहुल में बर्फबारी कम होती जा रही है। इस बार मनाली में केलांग से ज्यादा बर्फबारी हुई है। ऐसे में साफ जाहिर है कि हिमालय पर भी बहुत कम बर्फबारी हो रही है, जिससे कि सैकड़ों-हजारों साल पुराने बड़े-बड़े ग्लेशियरों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। घाटी के किसान एवं पूर्व बीडीसी सदस्य अनिल सहगल का कहना है कि इस बार लाहुल में काफी कम मात्रा में बर्फबारी हुई है। इससे घाटी के किसान-बागबान नाखुश हैं।
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