कश्मीर की पहचान
( चिर आंनद, नाहन, सिरमौर )
‘कश्मीरियत को मिलती अभिनव पहचान’ शीर्षक से प्रकाशित डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी का लेख न केवल कश्मीरियों, बल्कि संपूर्ण भारत के लोगों की आंखे खोलने वाला है। लेखक ने बड़ी बारीकी से विश्लेषण किया है कि किस तरह से गिलानी-खुसरानी आदि बाहरी लोग घाटी के लोगों में भ्रम पैदा करके अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। कश्मीर भारत का एक अहम हिस्सा रहा है और महान दार्शनिक अभिनव गुप्त, लल्लेश्वरी, नुंद ऋषि आदि को समझने के लिए कश्मीरी दृष्टि चाहिए, न कि गिलानी दर्शन। कहना न होगा कि इन्हीं गिलानियों ने एक सुनियोजित योजना के तहत वहीं के मूल वासियों यानी कश्मीरी पंडितों को घाटी से बड़ी बेरहमी से निकाल दिया। अहिंसा व अन्याय का खेल खेलने वाले ये लोग आखिर कश्मीरियत के प्रतिनिधि कैसे हो सकते हैं? एक वह भी वक्त था, जब ललितादित्य सम्राट के शासन काल में कश्मीरियत खूब फल-फूल रही थी, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे इन लोगों का कभी कश्मीरियत से कोई लेना-देना ही नहीं रहा है। ऐसे में ये लोग अपने स्वार्थों को साधने के लिए कई तरह के दुष्प्रचार कर रहे हैं। इसी क्रम में वे लोग कश्मीरी युवाओं को भी भ्रमित करके गलत दिशा में धकेल रहे हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि कश्मीरी युवा समझदारी दिखाते हुए स्वयं ही अपने वास्तविक इतिहास को समझकर सही मार्ग पर आगे बढ़ें।
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