काला धन के विरोधाभास
दरअसल अब नोटबंदी और उससे जुड़े सवालों, आशंकाओं, तकलीफों पर बहस बंद होनी चाहिए, क्योंकि उसके पीछे जो बुनियादी मकसद था, उसमें काफी कामयाबी मिली है, लेकिन राजनीतिक दल इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकृत सूत्रों के हवाले से एक निष्कर्ष सामने आया है कि 14 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा धन वापस बैंकों में जमा हो चुका है। सिर्फ 75 हजार करोड़ के करीब वापस नहीं आया है। हालांकि आठ नवंबर को जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी, तब करीब 50 हजार करोड़ रुपए बैंकों के पास जमा थे। 500 और 1000 रुपए के जो नोट अमान्य घोषित किए गए थे, वह कुल राशि 15.45 लाख करोड़ रुपए के करीब थी। यानी करीब 97 फीसदी पैसा बैंकों में वापस जमा करा दिया गया। इसके मायने होने चाहिए कि मात्र तीन फीसदी धन ही ऐसा रहा, जो बेहिसाबी और अघोषित है। इसे काला धन भी माना जा सकता है, लेकिन भारत सरकार के आयकर विभाग का नया खुलासा है कि तीन-चार लाख करोड़ रुपए का काला धन हो सकता है। उसकी तह तक जाने के लिए आयकर विभाग ने नोटिस भेजना तय किया है। उसके जरिए बैंक खातों को खंगालने की प्रक्रिया भी गति पकड़ेगी। रिजर्व बैंक और आयकर विभाग के दोनों खुलासों में स्पष्ट विरोधाभास है। यदि 97 फीसदी पैसा बैंकों में लौट आया है, तो उसे काला धन कैसे कह सकते हैं? जो पैसा बैंकों तक वापस नहीं आया है, वह काला धन हो सकता है, लेकिन वह तीन-चार लाख करोड़ रुपए नहीं है। सरकार चाहे तो छह-आठ लाख करोड़ कह दे, उसे कौन चुनौती देने जा रहा है। आयकर विभाग का मानना है कि चार लाख करोड़ रुपए (40 खरब) दस नवंबर से 30 दिसंबर के बीच 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों के रूप में जमा कराए गए। इस राशि पर कर चोरी का संदेह है। प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से आयकर विभाग को पता चला है कि नोटबंदी के बाद 60 लाख से अधिक बैंक खातों में दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा की गई थी। क्या ये आंकड़े रिजर्व बैंक की जानकारी में नहीं हैं? ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों, वर्षों से निष्क्रिय पड़े बैंक खातों में, कर्ज के नकदी भुगतान के रूप में कितने हजार करोड़ रुपए जमा कराए गए, आयकर वालों ने इसका पूरा ब्यौरा दिया है, लेकिन रिजर्व बैंक ने चार लाख करोड़ की इस राशि पर कोई टिप्पणी नहीं की है। यदि 14 लाख करोड़ रुपए बैंकों में वापस आ चुके हैं, तो फिर काला धन कौन-सा है? जमा राशि और संभावित काला धन को मिला दें तो कुल धन इतना बनता है, जितना प्रचलन में ही नहीं था। रिजर्व बैंक और आयकर के विश्लेषणों में ऐसा विरोधाभास क्यों है? यदि एक पक्ष सच बोल रहा है, तो दूसरा पक्ष जाहिर तौर पर असत्य है और यह स्थिति देश में अनिश्चितता पैदा करती है। दरअसल मोदी सरकार को साप्ताहिक या मासिक रपट देश के सामने पेश करनी चाहिए कि काला धन वाकई में कितना पकड़ा गया और जो चिन्हित किया गया है, क्या उसे हासिल कर लिया जाएगा? यह रपट खुद प्रधानमंत्री दें या वित्त मंत्री से जारी कराएं, ताकि कोई विरोधाभास न रहे। अब नोटबंदी को एक राजनीतिक मुद्दा बना लिया गया है। खासकर कांग्रेस ने इसे लेकर आंदोलन सा छेड़ दिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी से नोटबंदी पर कई सवाल किए हैं, जो किसान, गरीब व मजदूर से जुड़े हैं। वह नोटबंदी को नाकाम मानते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का मानना है कि देश की जीडीपी विकास दर 6.5 फीसदी तक लुढ़क जाएगी। देश के हालात अभी और खराब होंगे। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि मोदी सरकार के अंत की शुरुआत हो चुकी है। एक प्रख्यात अर्थशास्त्री के तौर पर डा. सिंह के विश्लेषण को गंभीरता से ग्रहण किया जा सकता है, लेकिन सरकार के अंत की शुरुआत सरीखा राजनीतिक आकलन बुनियादी तौर पर गलत है, क्योंकि सभी सर्वे दिखा रहे हैं कि आम जनता तकलीफों के बावजूद नोटबंदी पर मोदी सरकार से अभी नाराज नहीं है। हालिया चुनाव नतीजे इसकी पुष्टि भी करते हैं। फरवरी-मार्च में पांच राज्यों के जनादेशों से और भी स्पष्ट हो जाएगा।
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