कुल्लू में अनोखी परंपरा तपस्या में लीन होंगे कारकून

By: Jan 16th, 2017 12:05 am

कुल्लू  —  देवभूमि कुल्लू की परंपरा अनोखी व अद्भुत है। वहीं,  देवभूमि कुल्लू की परंपरा अलग-अलग हैं। देवभूमि कुल्लू में कुछ देवी-देवता स्वर्ग प्रवास से वापस लौटे, तो कुछ मकर संकं्राति के दिन स्वर्ग प्रवास पर निकल पड़े तथा कुछ देवी-देवता मकर संकं्राति के सातवें दिन स्वर्ग प्रवास पर जाएंगे। तीर्थ और तपोस्थली के नाम से विख्यात मणिकर्ण घाटी के देवी-देवता स्वर्ग  प्रवास के लिए निकल पड़े हैं। फाल्गुन की संकं्राति को देवी-देवता स्वर्ग प्रवास से लौटेंगे। लिहाजा, मकर महीने में जहां देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर जाते हैं, तो वहीं घाटी के कारकूनों को तपस्या में लीन होना पड़ता है। बता दें कि देव परंपानुसार घाटी के देवकारकूनों पर एक माह के लिए नाखून और बाल काटने के लिए प्रतिबंध लगा है। वहीं, देवी-देवताओं के कारकून अब पूरे माह में घर से बाहर भी नहीं रहेंगे। देव  कारकूनों की मानें तो घाटी के अधिकतर देवी-देवता मकर संकं्राति को स्वर्ग प्रवास पर निकले हैं। वहीं, कई देवी-देवता सदियाला पर्व की रिवायत पूरा होते ही स्वर्ग प्रवास पर जाएंगे। मकर महीने में घाटी के देवलु करेंगे तपस्वी का जीवन यापन माता कैलाशना के पुजारी होतम राम, गूर बेली राम का कहना है कि  मकर महीने में घाटी के देवलु तपस्वी का जीवन यापन करेंगे। इस महीने नाखून-बाल काटने पर प्रतिबंध रहता है। मकर महीना जहां देवी-देवताओं के लिए खास रहता है। वहीं, देवलुओं को भी प्रथा का निर्वहन अच्छे तरीके से करना पड़ता है।

मणिकर्ण में मंदिर के कपाट बंद

इस माह धार्मिक नगरी मणिकर्ण में देवकार्य नहीं होंगे। मंदिर के कपाट भी बंद होंगे। ऐसे में देव पूछ भी नहीं डाली जाएगी।

सुरक्षा संभालेंगे रक्षक

घाटी के ऋषि-मुनि सहित अन्य देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर गए हैं। अब मानस रक्षा छोटे देवताओं के पास है, जो ऋषि-मुनियों के रक्षक हैं। यह देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर नहीं रहते हैं। इनके पास मकर महीने का जिम्मा दिया जाता है। क्षेत्र में छोटे देवी-देवताओं की शक्तियां ही घूमती-फिरती रहेंगी।

सुबह चार बजे ही देवधुनें

देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर हैं। अब माह में मंदिरों में देवधुनें चल रही हैं। जब तक देवी-देवता स्वर्ग प्रवास से वापस नहीं आएंगे तब तक देवधुनें बजती रहेंगी। शाम छह से सात और सुबह चार बजे देवधुनें परंपरानुसार बज रही हैं। इन देवधुनों को देव बोली में झूणा कहा जाता है।

 सबसे पहले लौटेंगे नारायण

मणिकर्ण घाटी के कशाधा गांव के अराध्य देवता जौड़ा नारायण स्वर्ग प्रवास से सबसे पहले लौटेंगे। मकर महीने के बीस प्रविष्टे को देवता के आगमन पर कशाधा मंदिर में फागली उत्सव मनाया जाएगा।

माता कैलाशना के लौटने पर फागली उत्सव

फाल्गुन संक्रांति के एक दिन पहले चनालदी गांव की माता कैलाशना स्वर्ग प्रवास से लौटेंगी। यहां से घाटी की फागली उत्सव की आगाज होगा। इसके बाद फाल्गुन की संक्रांति को घाटी के ऋषि-मुनि देवालय लौटेंगे।


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