खाने में खोट

By: Jan 28th, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

पीड़ा है, दुख-दर्द है, खाने में है खोट,

काला है कुछ दाल में, जले हुए हैं रोट।

अति संवेदनशील है, विषय बड़ा गंभीर,

चमकाते हैं बूर वो, मन में भारी पीर।

सोते हैं हम, क्योंकि वे जाग रहे दिन-रात,

पानी जैसी दाल है, जला हुआ है भात।

नहीं वतन से कुछ बड़ा, हंस-हंस देते जान,

भोजन तो अच्छा मिले, मिले उचित सम्मान।

भेदभाव कुछ तो यहां, जड़ से हो अब दूर,

सुख-सुविधा संपन्न हो, नाश्ता हो भरपूर।

कमियां खोदें मूल से, शीघ्रातिशीघ्र निदान,

छोड़ें घर की चाकरी, नहीं सहे अपमान।

सैनिक कहते कष्ट हैं, हाकिम को सब ठीक,

विस्फोटक स्थिति थमे, त्रुटियों से लें सीख।

बाहर सब सुख-शांति है, अंतर्मन में शोर,

शायद दुबका है कहीं, माल चुराके चोर।

थाली घटिया बंट रहीं, चाहें बढि़या काम,

बेशक आधे पेट ही, जग में फैला नाम।

गूंगे बन सब सह रहे, उनको मिले जुबान,

सैनिक हैं तो क्या हुआ, वो भी हैं इनसान।

सैनिक बिन सब शून्य है, सैनिक से है फौज,

उचित समय छुट्टी मिले, कर लें मस्ती-मौज।

पेटी माध्यम बन गया, गिनवा दें दुख-दर्द,

जहां धूल-धक्कड़ जमी, छंट जाएगी गर्द।

 


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