गणेश पुराण

By: Jan 14th, 2017 12:15 am

जो भी व्यक्ति धर्म-मार्ग को छोड़कर विपरीत मार्ग पर चलता है,वेदज्ञ विद्वानों का कथन है कि  उसका विनाश निश्चित हो जाता है। आपके नगर में हो रहे उत्पात इसी विनाश के सूचक लक्षण हैं। भगवान शंकर सभी देवों के श्रेष्ठ अंशों द्वारा निर्मित रथ पर आरुढ़ होकर आपके इस त्रिपुर के विध्वंस और दानवों के विनाश के लिए आ रहे हैं। इस प्रकार आप दानवों के समक्ष इस समय भारी संकट उपस्थित है। यह सब बताकर नारद जी हरिगुणगान करने में लग गए। मयदानव ने तुरंत अपने शूरवीर योद्धा दानवों को बुलाकर उन्हें देवों के साथ युद्ध के लिए उद्यत होने को कहा। अपने सैनिकों का उत्साहवर्धन करते हुए मयदानव के प्राणपण से त्रिपुर दुर्ग की रक्षा करने के लिए अपने सभी सैनिकों का आह्वान किया। अपने सैनिकों को इंद्र सहित सभी देवों को जीतकर स्वर्ग के सभी सुख भोगों को भोगने के लिए प्रोत्साहित करके मयदानव अपने दुर्ग में प्रविष्ट हुआ। मयदानव ने श्रद्धापूर्वक भगवान शंकर का आराधन किया और पुनः निश्चित भाव से विश्राम करने लगा। अल्पकाल के बाद ही श्री शिवजी के नेतृत्व में देवसेना त्रिपुर में आ पहुंची और देवों तथा दानवों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। सुंदर, स्वरूप दानव, विकृतानन, शिवगणों, पार्षदों तथा भूत-प्रेतादि को देखकर हंसने लगे। देवसेना के सैनिकों को आक्रमण न करने का परामर्श देते हुए दानव उन्हें युद्ध क्षेत्र से चले जाने को कहने लगे, परंतु अपनी चेतावनी का कुछ प्रभाव न देखकर क्षण भर में ही दानवों ने अपने तीखे बाणों की झड़ी लगा दी। इधर देवता भी पक्षधारी पर्वतों के समान दानवों पर बाण-वर्षा करने लगे। विधुंमाली ने नंदिकेश्वर पर अपने भयंकर बरछे से प्रहार किया तो नंदिकेश्वर ने उस पर वज्र का प्रहार किया। वज्र के तीव्र आघात को न सह सकने से विधुंमाली भयंकर ध्वनि करता हुआ धरती पर गिरा पड़ा। उसके भयंकर रथ से गाणपत्य (गणपति के सैनिक) विचलित हो गए। इधर मयदानव ने गाणपत्यों  पर उपल वृष्टि करनी प्रारंभ कर दी। अपने सैनिकों को त्रस्त देखकर गणेश जी ने मयदानव की दानवी माया को क्षण भर में ही निरस्त कर दिया। जिस दानव की शक्ति, क्रूरता और युद्ध निपुणता से इंद्र सदा भयग्रस्त रहता था, उसके मरते ही देवों का उत्साह बढ़ गया और यह सब कुछ गणेश जी की कृपा से हुआ। मयदानव ने एक-एक ऐसी बापी (बावड़ी), जिसमें फेंका हुआ मृत व्यक्ति जीवित हो उठता था। मयदानव ने ज्यों ही विधुंमाली के शव को उस बापी में डाला त्यों ही वह जीवित हो उठा और कहने लगा कि वह गीदड़ नंदी कहां भाग गया है, मैं उसका वध करके उसे निर्वश करूंगा। विधुंमाली को जीवित देखकर दानव उत्साहित हो उठे और देवसेना पर पुनः टूट पड़े। गर्जन करते हुए दानव द्रुमों के समान विशाल, सिंह के समान भयंकर, सूर्य के समान प्रचंड और सागर के समान धीर-गंभीर दिखलाई दे रहे थे। दानवों में भयंकर प्रहारों से देवता संत्रस्त होकर इधर-उधर भागने, छिपने और अपनी जान बचाने लगे। उधर देवों द्वारा हताश दानवों को मयदानव अपने द्वारा बनाई बापी में डालकर पुनर्जीवित करने लगा।

 


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