गणेश पुराण

By: Jan 28th, 2017 12:05 am

विधुंमाली ने नंदीश्वर को घेर लिया और दोनों वीरों में तुमुल युद्ध होने लगा। इस पर नंदीश्वर ने विधुंमाली की छाती में एक ऐसी भयंकर शक्ति से ऐसा तीव्र प्रहार किया कि उसके वक्ष से रक्त की एक धारा बह निकली। जिससे क्रुद्ध होकर उसने हाथ से एक वृक्ष उखाड़ कर नंदीश्वर पर दे फेंका। नंदीश्वर ने क्षण में ही उस वृक्ष को खंड-खंड कर दिया। नंदीश्वर ने विधुंमाली के संपूर्ण शरीर को अपने शस्त्रास्त्रों से बींध डाला। नंदीश्वर के प्रचंड और निरंतर हो रहे प्रहार को न सहन करता हुआ विधुंमाली देखते ही देखते धरती पर गिर पड़ा। विधुंमाली के धरती पर गिरते ही जहां सिद्ध, चारथ और किन्नर आदि नंदीश्वर की प्रशंसा करने लगे, वहां मयदानव उन्मत्त के समान देवों, नंदीश्वर, षण्मुख और शिवजी आदि पर घातक प्रहार करने लगा। अंततः शिवजी ने सोचा कि इन दानवों को अब तक बहुत छूट दी जा चुकी है, अब इनका विध्वंस कर ही देना चाहिए। यह सब सोचकर भगवान शंकर ने श्रद्धा भाव रखने के कारण उनके वचनों का पालन किया। मय दानव द्वारा त्रिपुर को भस्म कर दे, परंतु जब अग्नि त्रिपुर को दग्ध करने को उद्यत हुआ तो मयदानव की माता शतप्रवाक्षी आंखों में आंसू भरकर हाथ जोड़े हुए आकर शिवजी के चरणों में गिर पड़ी और उनसे अपने पुत्र और त्रिपुर की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगी। आशुतोष भगवान शंकर ने अबला की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए इस शर्त पर मयदानव को जीवन और दुर्ग प्रदान कर दिया कि वह भविष्य में कभी धर्म विरुद्ध आचरण नहीं करेगा, अकारण देव द्वेष नहीं करेगा। न्याय और औचित्य की रक्षा करते हुए प्रजापालन तथा यज्ञ याज्ञादि करेगा। भगवान शंकर के आदेश को शिरोधार्य करते हुए दानवों ने पूर्ण निष्ठा से भगवान शंकर की आराधना की। देवता अपनी विजय से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी और शंकर भगवान को प्रणाम करके और उनकी अनुमति लेकर अपने-अपने लोकों को चले गए। ब्रह्माजी और शिवजी भी एक-दूसरे से प्रेमालाप करके अपने-अपने निवास को चल दिए। मय ने विद्युंमाली की मृत्य को सहज रूप में स्वीकार किया और देवताओं के विरोध में अपनी माया को फैलाने लगा। वह अत्यंत शक्तिशाली होकर चारों तरफ लड़ने लगा और देवताओं को तंग करने लगा। इसके बाद युद्ध की भयंकरता बढ़ गई। उधर देवताओं ने पृथ्वी, आकाश और दिशाओं को अपनी बाणों से भर दिया। कुबेर ने जब राक्षस की सेनाओं को नष्ट करना शुरू किया, जिसके विरोध में जंबासुर ने अपने सोने के मुद्गर से कुबेर की सेना पर प्रहार किया। इस प्रकार के कुबेर के सैनिक हाहाकार कर उठे। जंबासुर ने इसके बाद फर्शा लेकर कुबेर के रथ टुकड़े-टुकड़े कर दिए। रथ के नष्ट हो जाने के बाद कुबेर पैदल ही युद्ध करने लगा। उसने गुस्से में भरकर जंब के ऊपर अपनी लोहे की गदा को रोकने के लिए अनेक शास्त्रों का प्रयोग किया, लेकिन उसके सारे अस्त्र-शस्त्र बेकार हो गए और वह गदा उसके वक्ष में लगी। गदा के लगते ही उसके मुख से खून की धारा बह निकली। यह देखते ही जंबासुर को मरा हुआ समझकर कुजंब ने कुबेर को घेर लिया और कुजंब के आक्रमण को ही कुबेर ने विफल कर दिया।


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