गांव-देहात के अच्छे दिनों की आहट

By: Jan 9th, 2017 12:05 am

( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं )

महात्मा गांधी भी कहते थे कि हिंदोस्तान गांवों का देश है। यही कारण है कि पहली स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार में गांव से आए बाबू राजेंद्र प्रसाद को कृषि मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में सरकारों ने खेती और किसानों के बारे में फिर उस तरह नहीं सोचा गया, जैसे कि सोचा जाना चाहिए था। गरीबों के उत्थान की सारी योजनाएं उल्टी हो गईं, जिसका परिणाम आज पूरा देश भोग रहा है। आजादी के 70 सालों में हम भले ही चंद्रमा और मंगल तक पहुंच गए हों, लेकिन देश के 6 लाख 38 हजार गांव तो आज तक वहीं के वहीं खड़े हैं…

भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर नकेल कसने के उद्देश्य से की गई नोटबंदी के पचास दिनों के चुनौती एवं ंसंघर्ष भरे दौर की संपन्नता को हम बीते वर्ष की उपलब्धि के रूप में देख सकते हैं। नोटबंदी की अवधि की संपन्नता एवं नववर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम विशेष उद्बोधन को लेकर जनता में एक आशंका थी कि वह कहीं फिर कोई फरमान जारी न कर दें, जो आम जनता के लिए तकलीफ का सबब बन जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और प्रधानमंत्री ने भविष्य के शक्तिशाली भारत की तस्वीर को ही अपने इस उद्बोधन में उकेरा। उन्होंने गांव और गरीब को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने पर जोर दिया और कुछ महत्त्वपूर्ण घोषणाएं तोहफे के रूप में कीं, जिनसे गरीबी की समस्या पर नियंत्रण एवं गांवों के समुचित विकास की दिशा में ठोस कार्य हो सकेगा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक नवीन एवं शुभ शुरुआत के रूप में गरीबों के नाम पर नारेबाजी ही नहीं, बल्कि बुनियादी बदलाव की पहल होती दिख रही है। इन तोहफों को प्रलोभन ही नहीं, बल्कि संतुलित एवं आदर्श समाज निर्माण की दिशा में सार्थक उपक्रम कहा जा सकता है। सचमुच जन-धन योजना ऐसी पुख्ता योजना है, जिसके मार्फत गरीबों का विकास, उन्हें गरीबी से मुक्ति दिलाने की कुंजी साबित हो सकती है। इस योजना के तहत मोदी ने गरीबों, बुजुर्गों आदि के अलावा महिलाओं को जो विशेष छूट दी है, उससे उन्हें आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी। यह आत्मनिर्भरता लगातार सक्रिय रहते हुए कार्य करने के साथ ही मिलेगी। इस संबोधन में हर बार की तरह गांव, गरीब और किसान की बात थी। साथ ही पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार और काले धन पर भी आगे और कार्रवाई करने की बात कही। चूंकि हमारा देश गांवों का देश है, भारत की आत्मा गांवों में बसती है। लगातार गांवों की उपेक्षा ने एक चिंताजनक स्थिति निर्मित कर दी थी। मोदी ने गांवों के समग्र विकास एवं उनकी समृद्धि की परियोजना प्रस्तुत कर सहज ही संपूर्ण राष्ट्र को शक्तिसंपन्न बनाने की दिशा में प्रस्थान कर दिया है। महात्मा गांधी भी कहते थे कि हिंदोस्तान गांवों का देश है।

यही कारण है कि पहली स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार में गांव से आए बाबू राजेंद्र प्रसाद को कृषि मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में सरकारों ने खेती और किसानों के बारे में फिर उस तरह नहीं सोचा गया, जैसे कि सोचा जाना चाहिए था। गरीबों के उत्थान की सारी योजनाएं उल्टी हो गईं, जिसका परिणाम आज पूरा देश भोग रहा है। आजादी के 70 सालों में हम भले ही चंद्रमा और मंगल तक पहुंच गए हों, लेकिन देश के 6 लाख 38 हजार गांव तो आज तक वहीं के वहीं खड़े हैं। किसानों के क्रेडिट कार्ड एवं उनको प्रदत्त अन्य सुविधाओं से कृषि को प्रोत्साहन मिलेगा। के्रडिट कार्ड नकद में तबदील होने पर कृषि क्षेत्र में रोकड़ा की कमी को दूर किया जा सकेगा और किसान सीधे बैंकों की मार्फत अपनी लेन-देन की जरूरतों को पूरा कर सकेंगे। उनकी दैनिक आवश्यकताओं के लिए रोकड़ा का संकट समाप्त होगा और वे सूदखोरों के चंगुल में नहीं फंसेंगे। यह कृषि प्रधान देश भारत में ऐसा कदम है, जिसे बहुत पहले उठाया जाना चाहिए था। जब कोई व्यापारी, उद्यमी अथवा अन्य कोई पेशेवर अपने व्यवसाय के आधार पर बैंकों या वित्तीय संस्थाओं से निजी ऋण ले सकता है और अपनी नकद राशि की जरूरतों को पूरा कर सकता है, तो आम जनता का पेट अनाज से पालने वाला किसान अपनी कृषि पूंजी के आधार पर यह सुविधा क्यों नहीं पा सकता? किसान का श्रम और पूंजी उसकी जमीन व फसल होती है। इसके आधार पर उसे क्यों नहीं निजी ऋण की छिटपुट छूट मिलनी चाहिए। फिर यह कोई ऐसी सुविधा नहीं है, जिसके तहत दी गई रकम के डूबने का खतरा हो। यह तो किसान का अधिकार है। मोदी ने किसानों को हक देने का फैसला करके एक उन्नत भारत बनाने की दिशा में उल्लेखनीय उपक्रम किया है। इसके साथ ही किसानों द्वारा रबी व खरीफ की फसलों के लिए लिए गए कर्ज पर दो माह का ब्याज सरकार भरेगी। मोदी ने गांवों में मकान बनाने और उनमें सुधार के लिए ग्रामीणों को आवास ऋण में चार से लेकर तीन प्रतिशत ब्याज में छूट देने की घोषणा भी की है। आवास ऋणों का लाभ अभी तक शहरी व अर्द्धशहरी क्षेत्रों तक सीमित रहा है। इसका एक कारण तो यह रहा है कि शहरी जनता बैंकों के तंत्र से जुड़ी हुई रही है अथवा इसे बैंकों में खाते खोलने में खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है।

जन-धन बैंक खाते खुलने के बाद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों का बहुत बड़ा हिस्सा बैंकिंग तंत्र में शामिल हो चुका है। गरीब, किसान और सामान्यजनों ने नोटबंदी को सफल बनाया, तो उन्हें पारितोषिक तो मिलना ही था, लेकिन यह पारितोषिक भारत को शक्तिशाली बनाने का हिस्सा है, यह विशेष उल्लेखनीय है। इन योजनाओं में ‘सबका साथ और सबका विकास’ समाहित है। यह सशक्त भारत एक भारत की तरफ कदम-दर-कदम यात्रा होगी। मोदी का यह उद्बोधन एवं उनकी घोषणा नेतृत्व की एक नई परिभाषा गढ़ रहा है। इस परिभाषा का अर्थ है, सबको साथ लेकर चलना, निर्णय लेने की क्षमता, समस्या का सही समाधान, कथनी-करनी की समानता, लोगों का विश्वास, दूरदर्शिता, कल्पनाशीलता और सृजनशीलता। अब तक की सरकारों ने इन शब्दों को किताबों में डालकर अलमारियों में रख दिया था। नेतृत्व का आदर्श न पक्ष में है और न प्रतिपक्ष में। एक युग था, जब राजा-महाराजा अपने राज्य और प्रजा की रक्षा अपनी बाजुओं की ताकत से लड़कर करते थे और इस कर्त्तव्य एवं आदर्श के लिए प्राण तक न्यौछावर कर देते थे। आज नारों और नोटों से लड़ाई लड़ी जा रही है, चुनाव लड़े जा रहे हैं-सत्ता प्राप्ति के लिए। अब यह परंपरा बदल रही है। प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन की परंपरा रही है। राष्ट्र स्वयं नहीं बोलता, वह सदैव अपने प्रबुद्ध प्रवक्ता के माध्यम से बोलता है। बोलना, मात्र मुंह खोलना नहीं होता। बोलना यानी कल, आज और कल के लिए जो सही हो, उसकी प्रस्तुति देना होता है। राष्ट्र की धड़कन होता है उसके प्रधानमंत्री का उद्बोधन। जब-जब मोदी ने राष्ट्र को उद््बोधन दिया है, उसमें अनुभव होता है तो प्रबुद्धता भी। भाव होते हैं, तो शब्दावली भी। जोश है, तो सलीका भी। वह परंपरा से जुडे़ होते हैं तो नई परंपरा को भी गढ़ रहे होते हैं। परंपरा को साथ लिए बिना राष्ट्र-समाज को साथ नहीं लिया जा सकता। भला इतिहास, परंपरा, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के अभाव में उपलब्धियों का आधार कहां बनेगा?  बीज अंतरिक्ष में नहीं बोया जाता, उसे धरातल चाहिए और ऐसे ही धरातल पर विकास की नई पौध लगा रहे हैं हमारे प्रधानमंत्री। वे जागृत बुद्धिजीवी एवं कुशल प्रशासक हैं और ऐसा व्यक्ति ही फिल्टर होता है, जो खराब और अच्छे को अलग-अलग कर देता है। नैतिक अंतःदृष्टि उपस्थित कर देता है, जो सच और झूठ के बीच फर्क को प्रकट कर देता है। वह मनुष्यता की पहचान, अस्मिता की रक्षा तथा गुम हो रही प्रामाणिकता और नैतिकता की प्रतिष्ठा के लिए प्रयासरत है और उनके इन प्रयासों को इतिहास सलाम करेगा।


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