घटती ब्याज दरों का युग

By: Jan 11th, 2017 12:05 am

( डा. अश्विनी महाजन लेखक, दिल्ली विश्वविद्यालय के  पीजीडीएवी कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं )

 डा. अश्विनी महाजन हालांकि सभी बैंकों ने ब्याज दरों को नहीं घटाया है, लेकिन आशा की जा रही है कि 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद, पुराने नोटों के बैंकों में भारी मात्रा में जमा होने के कारण बैंकों की उधार देने की क्षमता में भारी वृद्धि हुई है। पिछले काफी समय से बैंकों से उधार के उठाव में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। इसलिए उधार की दरों में कमी से उधार का उठाव बढ़ सकता है, जिससे इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत पूंजी निर्माण की मांग भी बढ़ सकती है और हाउसिंग और उपभोक्ता ऋणों की भी। इससे बैंकों के लाभ बड़ी मात्रा में बढ़ सकते हैं…

देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक द्वारा एक ही बार में उधार देने की मानक, एमसीएलआर (उधार देने की सीमांत लागत दर) में 0.9 प्रतिशत यानी 90 अंकों की गिरावट से अर्थव्यवस्था में एक खुशनुमा माहौल बना है। यह पिछले सालों में एक ही बार में की गई सबसे बड़ी गिरावट है। उधर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने भी एमसीएलआर को 65 से 90 अंक नीचे गिराने का फैसला किया है। इस गिरावट के बाद स्टेट बैंक की एमसीएलआर आठ प्रतिशत, पंजाब नेशनल बैंक की 8.45 प्रतिशत, यूनियन बैंक की 8.65 प्रतिशत और आईडीबीआई की 9.15 प्रतिशत हो गई है। हालांकि सभी बैंकों ने ब्याज दरों को नहीं घटाया है, लेकिन आशा की जा रही है कि 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद, पुराने नोटों के बैंकों में भारी मात्रा में जमा होने के कारण बैंकों की उधार देने की क्षमता में भारी वृद्धि हुई है। पिछले काफी समय से बैंकों से उधार के उठाव में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। इसलिए उधार की दरों में कमी से उधार का उठाव बढ़ सकता है, जिससे इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत पूंजी निर्माण की मांग भी बढ़ सकती है और हाउसिंग और उपभोक्ता ऋणों की भी। इससे बैंकों के लाभ बड़ी मात्रा में बढ़ सकते हैं।

पिछले दिनों बैंकों में पुराने नोटों की भारी आवक ने बैंकों की उधार की लागत को खासा कम कर दिया है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा भी ब्याज दर को 8.8 प्रतिशत से घटा कर 8.65 प्रतिशत कर दिया है। बैंकों ने भी अपनी जमाओं (डिपॉजिट) की ब्यार दरों में खासी कमी की है। भारतीय स्टेट बैंक ने तो पिछले दिनों में एक करोड़ से अधिक की डिपॉजिट ब्याज में 190 अंक की कमी कर दी थी, लेकिन अपने उधार की ब्याज दर में बहुत कम कमी की थी। गौरतलब है कि वर्तमान में बैंकों द्वारा उधार की दर उनकी एमसीएलआर से निर्धारित होती है। प्रत्येक बैंक की एमसीएलआर अलग-अलग है। इसलिए उनकी उधार की दरें अलग-अलग हो सकती हैं। लेकिन सभी बैंकों में बढ़ते डिपॉजिट अब उनकी एमसीएलआर घटाने वाले हैं, क्योंकि ये बैंक जमा राशियों पर भी ब्याज दरें घटाने वाले हैं।

31 दिसंबर की शाम को प्रधानमंत्री द्वारा हाउसिंग ऋणों पर तीन प्रतिशत से चार प्रतिशत की सबसिडी की घोषणा से यह स्पष्ट हो गया है कि हाउसिंग ऋणों पर प्रभावी ब्याज दरें कम हो जाएंगी। उधर बैंकों द्वारा भी ब्याज दरें घटाने से यह प्रभावी ब्याज दरें और ज्यादा कम होने वाली हैं। इसका मतलब यह है कि पहले यदि कोई 12 लाख का हाउसिंग ऋण लेता था, तो उसे यदि 10 प्रतिशत ब्याज दर देनी पड़ती थी, तो अब 2017 में उसे नौ प्रतिशत ब्याज पर ऋण मिलेगा और तीन प्रतिशत ब्याज में छूट मिलेगी। यानी उसे प्रभावी रूप से मात्र छह प्रतिशत ही ब्याज देना होगा। छोटे हाउसिंग ऋणों पर तो यह सबसिडी चार प्रतिशत की होगी यानी प्रभावी ब्याज दर मात्र पांच प्रतिशत ही रह जाएगी। गौरतलब है कि यदि उधार की ब्याज दर में एक प्रतिशत की कमी होती है, तो बीस वर्ष की उधारी पर ईएमआई आठ प्रतिशत और दस वर्ष की उधारी पर ईएमआई 6.5 प्रतिशत कम हो जाती है। इसका मतलब है कि 12 लाख के 20 वर्ष के हाउसिंग ऋण पर पूर्व में 10 प्रतिशत की ब्याज दर के चलते 11580 रुपए की ईएमआई देनी पड़ती थी, अब छह प्रतिशत की प्रभावी ब्याज दर के कारण मात्र 8597 की ही ईएमआई देनी पड़ेगी। यानी गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए अब मकान का सपना साकार करना आसान हो जाएगा। ऐसे में हाउसिंग ऋणों की मांग और अधिक बढ़ेगी। कृषि ऋणों पर 60 दिनों की ब्याज माफी और छोटे और मध्यम उद्यमों पर क्रेडिट गारंटी को दोगुना करने से भी उधार के उठाव में भारी वृद्धि की अपेक्षा है। बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े लोगों का भी यह कहना है कि बैंकों द्वारा ब्याज दरें घटाने से इन्फ्रास्ट्रक्चर, खुदरा, हाउसिंग और कृषि ऋणों समेत सभी प्रकार के ऋणों में भारी उठाव आएगा।

अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने के लिए एक आवश्यक शर्त यह है कि उधार की ब्याज दर घटाया जाए। जब ब्याज दर घटती है तो औद्योगिक निवेश, इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश इत्यादि तो बढ़ता ही है, साथ ही साथ घरों, कारों और अन्य चिरकालीन उपभोक्ता वस्तुओं की मांग भी बढ़ती है। इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत अन्य प्रकार का निवेश इसलिए बढ़ता है, क्योंकि ऐसी परियोजनाएं अब आर्थिक रूप से लाभकारी हो जाती हैं, जो पहले ब्याज दर अधिक होने के कारण अलाभकारी होती हैं। उदाहरण के लिए यदि हमें दिल्ली और मेरठ के बीच हाई-वे का निर्माण करना है तो ब्याज दर अधिक होने पर हमें उस पर लागत को वसूलने के लिए उसी अनुपात में टोल टैक्स लगाना होगा। हो सकता है कि उतना टोल लगाना संभव न हो, जिसके चलते दिल्ली-मेरठ हाई-वे का निर्माण ही नहीं होगा। लेकिन यदि ब्याज दर कम हो जाती है, तो उतनी ही लागत को वसूलने के लिए हमें कम टोल लगाना पड़ेगा, जिससे वह इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना अब लाभकारी हो सकेगी। इसी प्रकार किसी उद्योग में निवेश करना यदि ऊंची ब्याज दर के कारण अलाभकारी है, तो ब्याज दर घटने से वह लाभकारी हो जाएगा। हम देखते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल 1998-2004 में ब्याज दरों के घटने का दौर शुरू हुआ और 2006 तक ब्याज दरें नीची बनी रहीं। उसका असर यह हुआ कि वर्ष 2000-01 में घरेलू पूंजी निर्माण की दर जो मात्र 24.5 प्रतिशत थी, 2007-08 तक बढ़ती हुई 38.1 प्रतिशत तक पहुंच गई। उसके बाद बढ़ती ब्याज दरों के चलते वह 2014-15 में मात्र 34.2 प्रतिशत ही रह गई।

अमरीका और यूरोप समेत तमाम विकसित देश अपने-अपने देशों में मंदी से निजात पाने के लिए ब्याज दरों को लगातार घटाने का काम करते रहे हैं। अमरीका में तो लंबे समय तक ब्याज दर शून्य के आसपास बनी रही और वहां के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने उसे बढ़ने नहीं दिया। इसी प्रकार यूरोप और जापान में ब्याज दरें बहुत ही नीचे स्तर पर हैं। लेकिन इसके साथ ही साथ यह भी संभव है कि ब्याज दरें घटने से ऐसे लोग, जिनका जीवन यापन ब्याज की आमदनी के आधार पर ही होता है (जैसे बुजुर्ग इत्यादि), को नुकसान हो सकता है। ऐसे में सरकार उस प्रकार के वर्ग के नुकसान की भरपाई ऊंची ब्याज दर देकर कर सकती है। देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत पूंजी निर्माण के माध्यम से ग्रोथ की दर को ऊंचा रखना ज्यादा जरूरी है और उसके लिए सरकार बुजुर्गों को अच्छी ब्याज की आमदनी सुनिश्चित करने के लिए कुछ सबसिडी देने का काम कर सकती है।

ई-मेल : ashwanimahajan@rediffmail.com


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