चंबा रूमाल में कमला का कमाल

By: Jan 29th, 2017 12:07 am

चंबा रूमाल में कमला का कमालअब जाकर कहीं लग रहा है कि चंबा में भी कुछ ऐसा है कि हमें गर्व हो। सच में यह सपना साकार होने जैसा ही है। मैंने अपना तमाम जीवन चंबा रूमाल की कढ़ाई और नक्काशी में ही लगा दिया’। यह भावुक वाक्य चंबा की उस महिला के हैं, जिन्होंने राजपथ पर इस बार हिमाचल की झांकी का प्रतिनिधित्व किया। कमला नैयर,ऐसा नाम जिसने अपनी उम्र का ज्यादा हिस्सा चंबा रूमाल को जिंदा रखने में ही बिता दिया। ‘अब गौरव करने के क्षण आए हैं,नहीं तो एक टीस सी होती थी कि अगर हमारा(चंबा का) जिक्र होता, तो सिर्फ पिछड़ों में ही होता’। देश की शान, सम्मान और अस्मिता के प्रतीक राजपथ पर हिमाचल की मनमोहक झांकी की शोभा बढ़ाने वाले चंबा रूमाल ने पूरे प्रदेश को गौरवान्वित कर दिया है। अपनी खूबसूरत कला और बेजोड़ नक्काशी के दम पर विश्व विख्यात चंबा रूमाल की पुरोधा रहीं कमला नैयर की वर्षों की मेहनत रंग लाई और इस बार गणतंत्र दिवस परेड में चंबा रूमाल ने प्रदेश की कला को देश के कोने-कोने से रू-ब-रू करवाने के लिए एक मुकम्मल मंच दिया। यह कमला नैयर के संघर्ष और मेहनत का नतीजा रहा कि इस बार राजपथ पर शान से अपना चंबा रूमाल चला और गौरव का प्रतीक बन गया। दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हुई परेड में हिमाचल की झांकी की अगवाई इस बार चंबा की कमला नैयर ने की। राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित और महीन कारीगरी की उस्ताद कमला नैयर ने अब राजपथ पर झांकी के साथ ही कला के क्षेत्र में एक और उपलब्धि हासिल कर ली। चंबा के एक साधारण परिवार में जन्मी कमला नैयर ने अपने हुनर और मेहनत के बूते महीन कारीगरी में महारत हासिल कर सुर्खियां बटोरीं। शहर के सपडी मोहल्ले में स्व. पूर्ण चंद औहरी के घर जन्मी कमला नैयर(74) पिछले 44 वर्षों से इस पारंपरिक हस्तकला के प्रचार- प्रसार में जुटी हुई हैं। इस अवधि में कमला नैयर ने जिला के कई युवाओं को चंबा रूमाल का प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा है। कमला नैयर ने वर्ष 1963 में कटिंग व टेलरिंग का प्रशिक्षण लेने के बाद चंबा रूमाल विषय में डिप्लोमा किया। उन्होंने वर्ष 1972 से लेकर 2001 तक हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट विभाग में बतौर निरीक्षक अपनी सेवाएं देकर इस कला को युवाओं में बांटा। कमला नैयर ने बताया कि चंबा रूमाल का विशुद्ध तौर से निर्माण सिल्क के धागे से मलमल के कपडे़ पर दोहरी टांका एब्रांयडरी से चंबा पद्धति पर किया जाता है। इस पर विशेष तौर से राधाकृष्ण की रासलीला, रामायण व महाभारत के दृश्यों को आकर्षक रंगों के धागे से उकेरा जाता है, जोकि दोनों तरफ  सीधे दिखते हैं। उन्होंने बताया कि चंबा रूमाल जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ दि ट्रेड रिलेटिड इंटएक्चुअल प्रापर्टी राइट एग्रीमेंट 22 जनवरी, 2007 के तहत पंजीकृत व संरक्षण प्राप्त है। कमला नैयर ने बताया कि भारत सरकार ने इसे पेटेंट व ट्रेडमार्क करार दिया है। आकार के हिसाब से चंबा रूमाल सौ रूपए से लेकर पच्चीस हजार रूपए तक बिकता है। उन्होंने बताया कि चंबा रूमाल हस्तकला 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला में विकसित पहाड़ी कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

मुलाकात

चंबा रूमाल में कमला का कमालराजपथ पर चंबा रूमाल ने मेरी साधना सफल कर दी…

राजपथ पर चंबा रूमाल के साथ कैसा महसूस किया?

राजपथ पर चंबा रूमाल के साथ हिमाचल की अगवाई करना एक सुखद अनुभव रहा। इस पल मानो लगा कि चंबा रूमाल के प्रति साधना सफल हो गई

इस साधना को आप क्या नाम देंगीं। और कला के प्रति नजरिया क्या है?

चंबा रूमाल कला न होकर मेरे लिए जनून है। और यह कला चंबा की समृद्ध विधाओं में एक है।

चंबा रूमाल के अलावा हिमाचल की कौन सी कलाएं आपके दिल के करीब हैं?

चंबा रूमाल के अलावा धातु व चित्रकला को अपने दिल के करीब मानती हूं

हिमाचल के किन कलाकारों से प्रभावित हैं?

एक का नाम लेना सही नहीं है। अपने- अपने कार्यक्षेत्र में हरेक कलाकार महारत हासिल कर पहाड़ी लोक संस्कृति के प्रचार- प्रसार में जुटा है।

जब चंबा रूमाल की वजह से आपकी पहचान में कोई नया मोड़ आया?

मैं पहले ही कह चुकी हूं कि यह कला मेरे लिए साधना है। कलाकार की पहचान कला से होती है। और मुझे खुशी है कि मैं कला की परख पर खरी उतरी हूं और मुझे दिल्ली के गणतंत्र दिवस में झांकी की अगवाई का मौका मिला।

इस कला के संरक्षण के प्रति व्यावसायिक दृष्टि में कौन से बदलाव अभिलषित हैं?

चंबा रूमाल की हस्तकला के संरक्षण हेतु सरकारी प्रयास अब तक सराहनीय हैं। चंबा रूमाल की बड़े पैमाने पर मार्केटिंग इस कला से जुड़े कलाकारों की जिदंगी में बदलाव ला सकता है।

क्या हिमाचली पर्यटन में कला व कलाकारों को उपयुक्त स्थान मिल रहा है?

जी बिलकुल। सरकार की ओर से पर्यटन क्षेत्र की अपार संभावनाओं के दोहन में कला व कलाकारों को अधिमान दिया जा रहा है।

कोई ऐसी इच्छा जिसे कला के माध्यम से पूरी करना चाहती हैं?

ऐसी कोई इच्छा नहीं है। इस कला से मुझे जो कुछ चाहिए था, वह मिल चुका है।

देश की किन कलाओं को आप हिमाचल के नजदीक से देखती हैं?

भारत के हरेक राज्य की अपनी लोक संस्कृति के लिए विशेष पहचान है। ऐसे में एक कलाकार को किसी कला विशेष का अधिमान देना न्यायसंगत नहीं है।

दीपक शर्मा चंबा


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