चुनाव तय करेंगे नोटबंदी पर किसका पलड़ा भारी
नई दिल्ली – मोदी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए यूपी सहित पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव तय करेंगे कि देश की राजनीति को झकझोर देने वाले नोटबंदी के मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में से किसका पलड़ा भारी है। बिहार में विपक्ष के हाथों करारी हार झेल चुकी भाजपा के लिए खासतौर यूपी के नतीजे नया जनादेश साबित हो सकता है। भाजपा को यहां पर जीत के पूरे आसार नजर आ रहे हैं, लेकिन राजनीति की पारखी यूपी की जनता सपा सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बीच बढ़ती नजदीकियों पर नजरें गढ़ाए बैठी है। फिलहाल पारिवारिक अंतरकलह के कारण सपा का चुनाव चिन्ह साइकिल को लेकर दोनों गुटों के दावे प्रतिदावे चुनाव आयोग की अदालत में विचाराधीन हैं। आयोग का इस मुद्दे पर फैसला चुनाव की तस्वीर पलट सकता है। पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक बिसात पर खेल शुरू हो गया है, लेकिन घूम फिर कर यूपी के विधानसभा चुनाव को मोदी सरकार के कामकाज से जोड़कर देखा जा रहा है। भले ही यूपी में पारिवारिक कलह का शिकार हो रही सपा की सरकार है, लेकिन नोटबंदी के मुद्दे ने अखिलेश सरकार के कामकाज के प्रचार प्रसार पर ग्रहण लगा दिया है। यूपी में कांग्रेस 1989 से सत्ता से बाहर है। उसके आखिरी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे। उनके बाद समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे। राजनीति में कभी एक दूसरे कट्टर विरोधी रही समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से नजदीकियां अब किसी से छिपी नहीं रह गईं हैं। बसपा बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में यूपी में स्थापित है। उसकी नेता मायावती पार्टी को फिर से सत्ता सुख दिलाने के लिए जुटी हैं। उनके निशाने पर अखिलेश सरकार और मोदी सरकार दोनों हैं। वह अखिलेश को असफल मुख्यमंत्री बताने के साथ जनता से अपील कर रही हैं कि सपा को वोट देकर अपना वोट खराब नही करें।
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