जनजाति के नाम पर कब तक ठगे जाएंगे हाटी

By: Jan 22nd, 2017 12:05 am

नाहन — पांच दशकों से जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के लोेग राजनेताओं द्वारा जनजातीय दर्जा दिलाने के नाम पर छले जा रहे हैं। जब भी चुनाव नजदीक आते हैं तो प्रत्येक राजनीतिक दल के चिराग से हाटी कबीले को जनजातीय घोषित करवाने का जिन्न पैदा हो जाता है। आज स्थिति पांच दशक बाद भी जस की तस है। न तो जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के लोगों को अभी तक जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिला है और न ही क्षेत्र के विकास के लिए कोई भी सरकार कोई विशेष परियोजना तैयार कर पाई है। मजेदार बात तो यह है कि चुनाव के दौरान राजनैतिक पार्टियां गिरिपार क्षेत्र की 127 ग्राम पंचायतों को केंद्र सरकार से पिछड़ा क्षेत्र घोषित करवाने के वायदे करते हैं, लेकिन आज तक इस वायदे को अमलीजामा नहीं पहनवा पाए हैं। नतीजतन गिरिपार क्षेत्र की करीब अढ़ाई लाख की आबादी आज भी अपने वर्चस्व की जंग लड़ रही है। भले ही अब गिरिपार क्षेत्र के लोगों को केंद्र सरकार से उम्मीद जगी है कि शायद केंद्र की सत्तारूढ़ एनडीए सरकार अपने कार्यकाल में गिरिपार क्षेत्र के हाटी कबीले को जनजातीय घोषित कर नायाब सौगात देगी। जानकार बताते हैं कि यदि केंद्र से गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाता है तो न केवल गिरिपार क्षेत्र की 127 ग्राम पंचायतों के करीब अढ़ाई लाख लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि विकास के भी नए आयाम स्थापित होंगे। गौर हो कि जिला सिरमौर से अलग हुए उत्तराखंड के जौंसार बावर की 105 पंचायतों को 60 के दशक में जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिल गया था लेकिन गिरिपार के लोग पांच दशक बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री कर चुके हैं वादा

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान नाहन प्रवास पर आए भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं वर्तमान में केंद्र सरकार के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने चौगान मैदान में जनसभा के दौरान ऐलान किया था कि यदि शिमला संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद विजयी होते हैं तथा केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी तो जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित किया जाएगा।

किसे मिलता है जनजातीय दर्जा

जानकारी के मुताबिक जिस क्षेत्र के लोग देश के अन्य हिस्सों से अलग अपना जीवन यापन करते हैं तथा अपनी पारंपरिक विरासत व संस्कृति को संजोए रखते हैं वह लोग जनजातीय कहलाए जाते हैं। जनजातीय के लिए लोगों का रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज व संस्कृति में भिन्नता मायने रखती है। आज भी गिरिपार क्षेत्र में ऐसे पारंपरिक रीति-रिवाज हैं जो देश के अन्य किसी भी हिस्सों में नहीं हैं। खासकर भाइयों का बंटवारा बराबरी पर नहीं बल्कि जेठोंग व कन्छौंग के तौर पर होता है।


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