दशकों पुराने कार्यकर्ता निकालना कौन सी अकलमंदी

By: Jan 20th, 2017 12:05 am

बैजनाथ —  बैजनाथ भाजपा में पिछले कई वर्षों से चल रही गुटबंदी के चलते जहां आम कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर रहा है, वहीं पार्टी के लिए भी शुभ संकेत नहीं। अगर पार्टी में चल रही अंदरूनी गुटबंदी ऐसे ही चलती रही व सक्रिय रूप में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं को ऐसे ही पार्टी बाहर का रास्ता दिखाती नहीं तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्तासीन होने से कोई नहीं रोक सकता। एक तरफ भाजपा महिलाओं के उत्थान का राग अलापती नहीं थकती है। ऊपर से बिना सोचे-समझे वह भी मकर संक्रांति के पर्व पर जिस तरह भाजपा की 20 सालों से चली आ रही सक्रिय कार्यकर्ता व दलित वर्ग की महिला को जिस तरह से पार्टी से निष्कासित कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। उसके बाद क्या बैजनाथ भाजपा की गुटबंदी पर अंकुश लगेगा। शीला देवी पिछले 20 सालों से भाजपा में कार्य कर रही हैं। दलित वर्ग से संबंधित शील देवी की महिलाओं में अच्छी खासी पैठ है। यही कारण रहे कि धूमल सरकार के कार्यकाल में उन्हें तीन वर्षों के लिए महिला आयोग का सदस्य बनाया गया। शीला देवी दो बार बीड़ पंचायत की प्रधान रहीं। यही नहीं शीला देवी को बलदेव राणा की अगवाई में बने मंडल में महिला मोर्चा का मंडल अध्यक्ष भी बनाया। मगर यहां भी गुटबंदी आगे आई व मात्र तीन माह बाद बिना कुछ कहे उन्हें इस ओहदे से भी हटा दिया, क्योंकि बैजनाथ भाजपा का दूसरा गुट नहीं चाहता कि उनके आगे कोई आए। संगूर गांव के हुए विशाल अधिवेशन में शील देवी का पुनः डंका बजा। उम्मीद से अधिक संगूर में लोगों की भीड़ सुनकर भाजपा के दूसरे गुट के कान खड़े हो गए। तभी से लेकर वह शीला देवी को किसी न किसी तरीके से किनारे लगाने की ताक में थे। अतः जब बलदेव राणा की अगवाई में भाजपा का दूसरा समांतर मंडल बना, जिसमें शीला देवी को कोई ओहदेदारी नहीं दी गई थी बावजूद इसके शीला देवी को छह वर्ष तक पार्टी से निष्कासित करने का फरमान जारी कर दिया। अब तो शीला देवी के निष्कासन रद्द करने के लिए रविदास समाज ने भी संघर्ष का बिगुल बजा दिया है।


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