नशाखोरी की कातिल राहें

By: Jan 21st, 2017 12:02 am

( धीरज राणा ‘शाश्वत’ लेखक, नूरपुर, कांगड़ा से हैं )

शराब, सिगरेट, भांग, चरस, हेरोइन, तंबाकू, चिट्टा इत्यादि हमारी युवा पीढ़ी की नसों में जहर घोल रहा है। नशा माफिया पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा अन्य रास्तों से लगातार हिमाचल प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है, जिसकी पुष्टि पुलिस विभाग खुद करता आया है…

कोई भी समाज तभी समृद्ध बन सकता है, जब इसकी युवा पीढ़ी स्वस्थ एवं सुंदर हो। यह स्वस्थता एवं सुंदरता केवल शरीर से ही नहीं, अपितु विचारों में भी झलकनी चाहिए। यह युवा शक्ति ही किसी प्रदेश या देश का आने वाला कल निर्धारित करती है। जिस तरह एक बीज में पूरे पौधे अथवा पेड़ की संरचना, रंग-रूप, फल इत्यादि सब निहित होता है, उसी तरह युवा पीढ़ी समाज का बीज है। बीज अच्छा हो और उसका रोपण एवं पालन-पोषण अच्छा हो, तभी वह फलदार वृक्ष बनता है। इसी तरह यदि हमारी युवा पीढ़ी अच्छे वातावरण में पले-बढ़े, तो हम एक समृद्ध प्रदेश एवं खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं। हिमाचल प्रदेश एक दुर्गम पहाड़ी प्रदेश है, जहां पर लोगों का जीवनयापन कठिन परिस्थितियों में संपन्न होता है। आर्थिक एवं औद्योगिक रूप से भी अभी हमारा प्रदेश इतना समृद्ध नहीं है। भौगोलिक परिस्थितियां भी हमारे प्रदेश के जनजीवन को अधिक श्रमपूर्ण एवं कठोर बनाती हैं। इसके बावजूद हम आजकल एक भयाभह बीमारी के रूप में सुनते, पढ़ते और देखते हैं और वह है, मादक पदार्थों का प्रचलन। यह प्रदेश की सुखमयी एवं शांत सामाजिक व्यवस्था पर सर्पदंश की तरह हमला कर रहा है, जिसके परिणाम बहुत ही भयानक तथा नुकसानदेह हो सकते हैं। हिमाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेषतः कांगड़ा, चंबा और ऊना एवं सोलन में तो निश्चित तौर पर हालात बहुत ही चिंताजनक हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे, तो 21वीं शताब्दी के हिमाचल का क्या होगा? नशाखोरी केवल कानून व्यवस्था का ही विषय नहीं है, वरन शिक्षा व्यवस्था, रहन-सहन, पारिवारिक वातावरण, बच्चों की परवरिश एवं अन्य मनोरंजन सुविधाएं आदि इसको प्रभावित करते हैं। शराब, सिगरेट, भांग, चरस, हेरोइन, तंबाकू, चिट्टा इत्यादि हमारी युवा पीढ़ी की नसों में जहर घोल रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के करीब 45 फीसदी नौजवानों को नशे की लत लग गई है।

इनमें से भी ज्यादातर युवा 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग से संबंधित हैं। हिमाचल के लिए भी ये आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। नशा माफिया पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा अन्य रास्तों से लगातार हिमाचल प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है, जिसकी पुष्टि पुलिस विभाग खुद करता आया है। एक सम्मेलन में बोलते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भी माना था कि आज के युग में नशा एक प्रमुख चुनौती है, जो कि नौजवान पीढ़ी को बर्बाद करने पर तुला है। यह भी कि नशा सौदागरों और इसे खत्म करने वालों के मध्य निरंतर संघर्ष चल रहा है और हम हर हालत में इसे समाप्त कर देंगे। इसी बात से हम इस भयानक परिस्थिति का आकलन कर सकते हैं। माननीय न्यायालय ने भी अपने एक निर्णय में आईजीएमसी के एक अध्ययन का हवाला देते हुए माना था कि हिमाचल के 40 फीसदी युवा नशे से ग्रस्त हैं। नशे के बढ़ते चलन के पीछे जो तर्क दिख रहे हैं, वे सतही हैं। इसके पीछे छिपे रहस्यों को जानना जरूरी है। इन रहस्यों को अगर हम जान पाएंगे तो दूसरी आधुनिक बीमारियों के मूल तक पहुंचने में भी हमें आसानी होगी। एक तो आज की युवा पीढ़ी कुछ पथ भ्रष्ट लोगों के संपर्क में आकर इन बुरी आदतों की तरफ बढ़ रही है। दूसरा उनके हाथ में मां-बाप की दरियादिली की वजह से पैसा ज्यादा आ रहा है, जिससे वे आसानी से सिगरेट, शराब, चरस, भांग इत्यादि खरीद पा रहे हैं। तीसरा ज्यादातर माता-पिता भी अपने बच्चों पर समुचित ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। यह भी कि हमारा नौजवान, चाहे वह लड़के हों या लड़कियां, तनावग्रस्त एवं स्पर्धायुक्त वातावरण में जी रहे हैं। ऐसे में वे नशे को ही अपना एकमात्र त्राणदाता (संतुष्टिदाता) मान रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि भौतिक विकास की दौड़ में पागल हुआ हमारा समाज बिलकुल नकलची बनता जा रहा है।

वह कहता है कि हर मामले में पश्चिम की नकल करो। अपना दिमाग गिरवी रख कर अपने मूल्यों, आदर्शों, परंपराओं को त्याग दो। शराब पीने, अन्य नशे करने या मांस खाने के लिए कर्ज भी लेना पड़े तो भी पश्चिमी समाज बुरा नहीं मानता। आज उसी राह पर हम भी चल पड़े हैं। यही आदतें युवाओं को नर्क में धकेल रही हैं तथा समाज को खोखला कर रही हैं। अब इस समस्या को जड़ से नष्ट करने के लिए न केवल सरकार और माननीय न्यायालयों के प्रयासों की जरूरत है, बल्कि समाज के हर नागरिक को इस बीमारी को खत्म करने के पुण्य कार्य में आहुति डालनी होगी। पारिवारिक सतह पर घर में तनावमुक्त माहौल रखना चाहिए, माता-पिता को बच्चों के साथ घुलना-मिलना चाहिए, उनके खर्च पर ध्यान रखना चाहिए, बच्चों के पढ़ने का साहित्य, टीवी तथा मोबाइल से संबंधित प्रोग्राम अच्छे एवं सुसंस्कृत हों तथा बच्चों की संगति अच्छी हो। युवाओं को मादक पदार्थ लाकर देने वाले अपराधियों पर कड़ी नजर रखनी होगी। इस पवित्र कार्य में स्वास्थ्य विभाग, पंचायती राज विभाग, खेलकूद विभाग, शिक्षा विभाग आदि को भी बढ़-चढ़ कर योगदान देना होगा। पिछले वर्ष हिमाचल में एक आंदोलन रूपी कार्यक्रम के तहत 1.89 करोड़ कानाविस पौधों को उखाड़ा गया। यह बहुत ही अच्छी बात है, परंतु बारे न्यारे तभी होंगे, जब हम नशे के प्रति रुझान की जड़ों को नौजवानों के दिमाग से उखाड़ फेंकने में कामयाब हो पाएंगे।


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