नारद भक्‍ति सूत्र

By: Jan 14th, 2017 12:17 am

Aasthaतल्लक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात्।।

अब नाना मतों के अनुसार उस भक्ति के लक्षण कहते हैं।

पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्यः।।

पराशरनंदन श्रीव्यासजी के मतानुसार भगवान की पूजा आदि में अनुराग होना भक्ति है।

कथादिष्विति गर्गः।

श्रीगर्गाचार्य के मत से भगवान की कथा आदि में अनुराग होना ही भक्ति है।

आत्मरत्यविरोधेनेति शाण्डिल्यः।।

शांडिल्य ऋषि के मत में आत्मरति के अविरोधी विषय में अनुराग होना ही भक्ति है।

नारदस्तु तदर्पिताखिलाचारता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति।।

परंतु देवर्षि नारद के (हमारे) मत में अपने सब कर्मों को भगवान के अर्पण करना और भगवान का थोड़ा-सा भी विस्मरण होने में परम व्याकुल होना ही भक्ति है।

अस्तेवमेवम्।।

ठीक ऐसा ही है।

यथा व्रजगोपिकानाम्।।

जैसे व्रजगोपियोंकी (भक्ति)।


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