नोटबंदी के बाद चुनाव

By: Jan 6th, 2017 12:01 am

( डा. राजेंद्र प्रसाद शर्मा )

चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के साथ ही पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज गया है। वैसे देखा जाए तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास भी कहा जा सकता है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम शुरू से ही देश की भावी राजनीति को प्रभावित करते आए हैं। साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी चुनाव होंगे। ये चुनाव देश के भविष्य की राजनीति तय करेंगे। कोई कहे या न कहे, पर इस बार के चुनावी नतीजों में केंद्र सरकार द्वारा खेले गए नोटबंदी के जुए का असर साफ दिखाई देगा। देश में राजनीतिक दलों में बढ़ती असहिष्णुता, पेड न्यूज के दबाव में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव आयोजित करवाना चुनाव आयोग के समक्ष एक कठिन चुनौती रहेगी। इसके साथ ही जिस तरह का गतिरोध पिछले लंबे समय से राजनीतिक दलों में बना हुआ है, उसका असर भी साफ तौर से दिखाई देगा। पांच राज्यों में चुनावी बिगुल अब बज गया है। आरोप-प्रत्यारोप अब अधिक पैनापन लेकर आएंगे। सुप्रिम कोर्ट के निर्णय के बावजूद जातिगत आधार पर ही टिकटों का वितरण होगा, व्यक्तिगत छिंटाकशी भी होगी, माहौल को जानबूझ कर गरमाया जाएगा। आपसी खिंचतान होगी। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास होंगे। इस सबके बीच देखा जाए तो नेताओं या दलों की नहीं, बल्कि मतदाताओं की परीक्षा होने जा रही है। फैसला मतदाताओं को ही करना है। यह चुनाव देश की भावी दिशा को तय करने में जा रहे हैं, ऐसे में इन पांच राज्यों के नागरिकों की ओर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।

 


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