परी की कहानी

By: Jan 15th, 2017 12:05 am

पहले समय में आर्यावर्त के एक प्रदेश में राजा ब्रह्मदत का शासन था। राजा ब्रह्मदत का एक पुत्र था। उसका नाम था प्रियम। प्रियम एक होनहार युवक था। वह राज काज में अपने पिता को भरपूर सहयोग देता था। बड़ी से बड़ी समस्या सुलझाने में वह अपने पिता का सहायक बन जाता था। उसे शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार राजकुमार ने अपने पिता से वन भ्रमण करने की आज्ञा मांगी। पिता ने उसे सहर्ष आज्ञा दे दी। जाते समय उसने अपने पुत्र से कहा …बेटा ! तुम जहां भी पड़ाव डालो वहां का हाल चाल किसी दूत के साथ मेरे पास जरूर भेजते रहना, ताकि मैं तुम्हारी ओर से निश्चित रह सकूं। राजकुमार ने हामी भर दी और अपने सेवकों को साथ लेकर शिकार करने चल पड़ा। वह शिकार खेलते-खेलते धनुष विद्या में निपुण हो गया था। अनेक जंगलों से होता हुआ एक दिन राजकुमार सुंदर वन में पहुंचा। वह घोड़े पर सवार था और उसके साथ -साथ काफिला चल रहा था।  राजकुमार न जाने  कैसे अपने काफिले से बिछुड़ गया।  वह किसी दूसरी दिशा में भटक गया। राजकुमार ने इधर-उधर घूम कर देखा काफिले के साथियों का कोई आता पता नहीं था। उसे प्यास लग आई ,पर पानी भी उसके साथियों के पास ही रह गया था। कुछ रुकता फिर आगे बढ़ता। धीरे-धीरे आकाश में तारे टिमटिमाने लगे। घोड़ा भी आगे बढ़ने से हिचकिचाने लगा। इतने बड़े जंगल में वही तो उसका सहारा था। कुछ दूर चलने के बाद अब वह खुले स्थान में आ गया। कुछ और दूर चला तो उसको एक नदी दिखाई दी। घोड़ा बहुत थक गया था उसके पैर भी लड़खड़ा रहे थे। वह नदी किनारे पहुंचा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। अति सुंदर श्वेत वस्त्र पहने एक लड़की नदी किनारे बैठी मछलियों से बात कर रही थी। मछलियां भी पानी में उछल -खेल रही थीं।  दूर खड़ा राजकुमार यह सब देखता रहा। फिर वह साहस करके आगे बढ़ा। राजकुमार उसके पास पहुंच कर कहने लगा …पहले अपने बारे में बताओ फिर मैं अपना परिचय दूंगा। इस समय मैं मुसीबत का मारा हूं। लड़की बोली …. आप खड़े क्यों हैं पहले बैठ जाओ। राजकुमार उसके समीप ही बैठ गया। उसके बाद दोनों ने अपने-अपने बारे में बताया। लड़की बोली कभी में भी इन मछलियों की तरह एक मछली थी। एक दिन परियों की रानी अपनी कुछ सहेलियों के साथ पूर्णिमा की रात इस नदी में स्नान करने आई। वह सारी रात गाना गाती रही नृत्य करती रही। सभी मछलियों को उसका नाचना गाना बहुत अच्छा लगा। मुझे भी बहुत आनंद आया। मैं खुशी के मारे नाचने लगी। परियों की रानी मेरा नाच देखकर बहुत खुश हुई। उसने मेरी खूब प्रशसां की। उसने मुझसे परी लोक चलने को कहा। परी रानी ने दो मिनट मौन होकर अपने देवता से मुझे परी बनाने की प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद मैं परी बन गई। उसी दिन से मैं उन सब के साथ रहती हूं। उसने राजकुमार से कहा आज से हम दोनों मित्र बन गए हैं। आप यह फल और मिठाइयां खाकर अपनी भूख मिटाएं। परी और राजकुमार बहुत देर तक बाते करते रहे। भोर होने को थी इस लिए परी अपने लोक में वापस जाने की तैयारी करने लगी। उसे उड़ने के लिए तैयार होता देख राज कुमार ने कहा मुझे भी अपने साथ ले चलो। परी ने कहा ऐसा करना मेरे लिए सभंव नहीं। इसके लिए में आप से माफी मांगती हूं। में तुम्हारा परिचय नदी की सभी छलियों से करा देती हूं। अगर तुम कभी मुझसे मिलना चाहो तो इसी स्थान पर रात्रि के बारह बजे आ जाना। में तुमसे अवश्य मिलूंगी। इसके बाद वह परी तो अपने परी लोग उड़ चली और राजकुमार अपने घोड़े पर बैठ कर अपने साथियों के काफिले की खोज के लिए चल पड़ा। कुछ आगे चलने पर उसे उसका काफिला दिखाई पड़ा। वह अपने काफिले में जा मिला। फिर वे सब अपने नगर को लौट आए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App