बच्चे की प्रतिभा को पल्लवित होने दें

By: Jan 28th, 2017 12:05 am

दुख के समय बालकों के सान्निध्य से दुख कटता है, सुख में उन पर हल्का उत्तरदायित्व छोड़ने से उनका स्वाभिमान, आत्मीयता की भावना और उदारता की वृत्ति का परिष्कार होता है। इन दोनों अवसरों पर अपनी मानसिक स्थिति को बच्चों के सामने खुली हुई रखनी चाहिए…

बच्चों में पूर्वजन्म की प्रतिभा छिपी होती है। किन्हीं-किन्हीं में तो यह मात्रा वयस्कों से भी अधिक होती है। सुयोग्य-सहयोग के लिए हर माता-पिता को उस प्रतिभा से काम भी लेना चाहिए और उसको विकसित करने का प्रयत्न भी करना चाहिए। मित्रों से एक अपेक्षा यह की जाती है कि वे सुख-दुख में सच्चे आत्मीय की तरह हमारे साथ रहें। हम नहीं कह सकते कि इस नियम का व्यवहार में कितना पालन होता है, पर बच्चों से अधिक संवेदनशीलता बड़ों में नहीं होती। माता-पिता को दुखी देखकर बच्चों के चेहरे पहले मुरझा जाते हैं। प्रसन्नता के समय घर को उल्लास से भर देते हैं। इन दोनों समय में बच्चों की आत्मीयता प्राप्त कर सच्चे आत्म-संतोष का अनुभव किया जा सकता है। दुख के समय बालकों के सान्निध्य से दुख कटता है, सुख में उन पर हल्का उत्तरदायित्व छोड़ने से उनका स्वाभिमान, आत्मीयता की भावना और उदारता की वृत्ति का परिष्कार होता है। इन दोनों अवसरों पर अपनी मानसिक स्थिति को बच्चों के सामने खुली हुई रखनी चाहिए। कभी-कभी मित्रों के गुण-सौंदर्य बहुत प्रभावित करते हैं। किसी में आत्मीयता अधिक होती है, किसी में मनोविनोद होता है, कोई प्राणवान होते हैं, तो कोई कर्त्तव्य पालन और व्यवहार में श्रेष्ठ होते हैं। बच्चों में इस प्रकार के अनेक सद्गुणों और सद्भावों का सम्मिलित एकीकरण देखा जा सकता है, पर उसे पुत्र होने की अधिकार भावना से न देखकर मैत्रीपूर्ण भावनाओं से देखिए,    एक-दूसरे पर समान अधिकार का आश्वासन देकर ही एक-दूसरे के गुणों का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सरलता बालकों का स्वाभाविक गुण है। यदि उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती न की जाए या अनावश्यक दबाव न डाला जाए, तो उनमें प्रति क्षण सरलता के भाव देखे जा सकते हैं। प्रतिदिन ऐसे मनमोहक दृश्य उपस्थित करते रहते हैं। कभी बच्चा कपड़ों और देह में मिट्टी लपेटकर आपके समक्ष आ खड़ा होगा, ठीक बाल-शिव की तरह उसे देखकर आप मुस्कराए बिना रहीं रहेंगे। उसके कपड़ा पहनने के लिए कहेंगे, तो उल्टी कमीज पहनकर आ जाएगा, अपनी किताबों को सारे कमरे में बिखेर देगा, उन्हें इस तरह खोलेगा, मानों किसी विशेष संदर्भ की तलाश हो। बड़ों को हाथ-मुंह धोता देखकर यह भी वैसा ही अनुकरण करता है, पर हाथ में लिया हुआ पानी कभी एक गाल के लिए ही पर्याप्त होगा। कभी मुंह में अंगुली डालकर दांत साफ करने की क्रिया करेगा, यह सब वह अपनी बाल सरलता से करता है। गलत-सही का उसे जरा भी अंदाज नहीं होता। आपको भी उसकी इन क्रियाओं से मनोविनोद करना चाहिए, पर यदि उसे इन कौतुकों के फलस्वरूप अपनी डांट-डपट, मार-झिड़क मिली, तो कुछ ही दिनों में उसकी सारी सरलता कठोरता में बदलने लगेगी। यदि आप इन आदतों से किसी को सुधारना चाहते हैं, तो उसका सही नमूना बार-बार उसके आगे प्रदर्शित कीजिए। बच्चा अपने आप उसका अनुसरण कर लेगा। समझाएं भी तो हंसते हुए, कुछ कहीं भी तो आत्मीयता के साथ। नन्हें मुन्ने! ऐसे नहीं, कंघा यों पकड़ना चाहिए और ऐसे बाल ठीक करने चाहिए। इस प्रकार कहते हुए आप उसे बात समझाइए। चिल्लाकर-चौंकाकर आप कोई बात कहेंगे, तो बच्चा डर जाएगा और आपके प्रति उसकी भावनाओं में कठोरता आने लगेगी। यह दबाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कुटिल परिणाम उपस्थित करने वाला होता है। बच्चे बड़े निष्कपट होते हैं, पर गलत उदाहरण देकर ही उनकी निष्कपटता नष्ट कर दी जाती है। घर में कुछ आता है, आप उसे छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, एक सा व्यवहार नहीं करते। इन तमाम बातों को आधार मानकर बच्चा भी उन्हें आवश्यक समझने लगता है और खुद भी उसी तरह का छलपूर्ण व्यवहार सीखने लगता है। कोई वस्तु घर में आए तो भले ही वह बच्चे के उपयोग की वस्तु न हो, पर उसे दिखाइए अवश्य। सो रहा हो या विद्यालय गया हो, तो उसके घर आते ही आप सारी वस्तुओं को बाहर निकालिए और उसे बताइए कि यह वस्तु अमुक के लिए है, यह इतने पैसे में आई, वहां से खरीदी गई। उसे यथासंभव सारी बातें बता दीजिए, ताकि उसके मन में किसी भी प्रकार की गलतफहमी पैदा न हो।

 


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