बदलते खूंटे
Jan 31st, 2017 12:02 am
( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
भूले बैठे थे जड़ें, आई अचानक याद,
राजकुंवर ने ध्यान से, सुन ली अब फरियाद।
सिंहासन के मोल पर, बेच दिया ईमान,
हया-शर्म है ताक पर, तब कैसे अपमान।
जनता जाए भाड़ में, रहे पूडि़यां सेंक,
नाक कटाकर हंस रहे, नेता यहां अनेक।
अलख जगाने आ गए, जनसेवक श्रीमान,
जड़ से फेविकोल से जुड़े, आ गया ध्यान।
गद्दी में हीरे जड़े, पाएंगे आराम,
बदल चुके पासे बड़े, आगे जाने राम।
तख्त हिलाने आ गए, उछलेंगे अब ताज,
राजा का वो देखते ख्वाब, मिले यदि राज।
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