मजदूरों पर पड़ रही नोटबंदी की मार
शिमला — नोटबंदी से मजदूरों की रोटी बंद हो गई है। केंद्र सरकारा के उक्त फैसले के बाद मजदूर वर्ग त्रस्त है। यह आरोप आम आदमी पार्टी के सदस्य डीआर कश्यप ने लगाया है। उनका कहना है कि सरकार की घोषणा के तहत 50 दिन पूरे होने पर कोई चमतकारिक बदलाव की जनता ने उम्मीद लगाई थी, लेकिन ऐसा कुछ न होने से निराशा हुई। दैनिक वेतन/ मजदूरी पर काम करने वाला श्रमिक रोज जो कमाता है उससे ही परिवार का गुजारा करता है। नोटबंदी इससे पहले भी एक बार हुई थी। उस समय इसकी सार्वजनिक घोषणा होने से जनता को कोई कठिनाई नई हुई थी, मगर इस बार की घोषणा से ऐसा लगा कि भारत में लोकतंत्र के स्थान मौजूदा सरकार राजतंत्र लागू कर रही है। केंद्र सरकार ने जनता की आर्थिक व्यक्तिगत जरूरत को पूरा करने का कोई प्रावधान नहीं रखा हुआ है। दूसरी तरफ बैंक में अपने जमाधन निकालने पर सीमा निश्चित कर दी। व्यक्तिगत कुछ ऐसी धन के बारे जरूरतें होती हैं, जिनको स्थगित नहीं किया जा सकता है। जैसे की अचानक बीमार होने पर इलाज के लिए पैसे की जरूरत और पूर्व निर्धारित सामाजिक और धार्मिक कार्य। उनका आरोप है कि राजनेताओं और अधिकारियों के खाने व रहने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है। इस लिए उनको कैशलैस होने पर पैदा होने की कठिनाई का अनुभव नहीं होता है। पुराने 500 व 1000 के बंद नोट रखने वालों को कैद भी हो सकती है साफ जाहिर है कि वास्तव में भारत में लोकतंत्र का पतन हो रहा है। सरकार की नोटबंदी घोषणा में नोट रखने वालों को आर्थिक हानी तो हो ही रही फिर और सजा किस लिए? एक जुर्म की एक ही सजा होती है।
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