महासमाधि क्या है

By: Jan 7th, 2017 12:15 am

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि आप जब अलग-अलग तरह के विचारों और भावनाओं से गुजरते हैं, तो आपकी सांस की बनावट अलग-अलग तरह की होती है। जब आप क्रोधित होते हैं, तो आप एक तरीके से सांस लेते हैं। अगर आप शांत होते हैं, तो दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। अगर आप बहुत खुश होते हैं, तो दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। अगर आप दुखी होते हैं, तो आप दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। आप जिस तरीके से भी सांस लेते हैं, उसी तरीके से सोचते हैं। आप जिस तरीके से सोचते हैं, उसी तरीके से सांस लेते हैं। इस सांस को कई रूपों में शरीर और मन के साथ दूसरी चीजें करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। शांभवी में हम सांस की एक बहुत सरल प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसका संबंध सांस से नहीं है। सांस सिर्फ एक माध्यम है, वह सिर्फ एक आरंभ है। जो घटता है, वह सांस से संबंधित नहीं है। प्राणायाम वह विज्ञान है, जहां सजग होकर एक खास तरीके से सांस लेने पर, आपके सोचने, महसूस करने, समझने और जीवन का अनुभव करने का तरीका बदला जा सकता है। अगर मैं आपसे अपनी सांस पर नजर रखने को कहूं, जो इन दिनों लोगों द्वारा की जाने वाली सबसे सामान्य क्रिया है, तो आपको लगेगा कि आप सांस पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं होता। आप सिर्फ हवा की आवाजाही से उत्पन्न संवेदनों पर ध्यान दे पाते हैं। अगर मैं आपकी सांस को बाहर निकाल लूं, तो आप और आपका शरीर अलग-अलग हो जाएंगे क्योंकि जीव और शरीर कूरमा नाड़ी से बंधे हैं। यह एक बड़ा छल है। यह उसी तरह है कि अगर कोई आपके हाथ का स्पर्श करे, तो आपको लगता है कि आप उस व्यक्ति के स्पर्श को जानते हैं, लेकिन असल में आप सिर्फ अपने शरीर के अंदर उत्पन्न संवेदनों को जानते हैं, आप नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति कैसा महसूस करता है। सांस ईश्वर के हाथ की तरह है। आप उसे महसूस नहीं करते। जब कोई अपनी इच्छा से पूरी तरह शरीर को छोड़ता है, तो हम उसे महासमाधि कहते हैं। इसे आम तौर पर मुक्ति या मोक्ष के रूप में जाना जाता है। यह ऐसी चीज है, जिसकी चाह हर योगी को है और यह ऐसी चीज है जिसके लिए हर मनुष्य प्रयास कर रहा है, चाहे जानबूझकर या अनजाने में। आप समभाव के एक असाधारण अनुभव पर पहुंच गए हैं, जहां शरीर के अंदर क्या है और बाहर क्या है, उसमें कोई अंतर नहीं है। खेल खत्म हो चुका है। वे किसी न किसी रूप में अपना विस्तार करना चाहते हैं और यह परम विस्तार है। बस इतना है कि वे ईश्वर की ओर किस्तों में जा रहे हैं, जो एक बहुत लंबी और असंभव प्रक्रिया है। आप कभी अनंत तक नहीं पहुंच पाएंगे।

 


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