राजनीतिक हाजिरी के युद्ध

By: Jan 21st, 2017 12:02 am

भाजपा संगठन का परिचय हमेशा बेहतर ढंग से होता है और इसी अंदाज में चंबी मैदान का भगवा धरातल काफी विस्तृत व्याख्या करता रहा। हिमाचली चुनाव में भाजपा का आगाज हालांकि पहले ही हो चुका है, लेकिन कांगड़ा परिक्रमा में अरुण जेटली का सान्निध्य मिला, तो नारे अवश्य ही शीतकालीन प्रवास पर आई सरकार के कान तक भी पहुंचे होंगे। इसलिए चंबी मैदान का मूड सरकार की नीयत व नीतियों को कोस कर भी अशांत रहा तथा सारी तोपें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के अस्तित्व के खिलाफ शोले उगलती रहीं। भाजपा की जीत का मूलमंत्र भी यही है कि कांग्रेस वीरभद्र विहीन हो जाए और कमोबेश यही सियासी युद्ध पिछले एक दशक की राजनीतिक पैरवी माना जाएगा। जाहिर है हिमाचल में भाजपा के सांस्कारिक उदय का एक लंबा इतिहास है और इसके साथ ही चार सरकारों का रिपोर्ट कार्ड भी नत्थी है, अतः पांचवें फलक पर परीक्षण की जटिलताएं भी कम नहीं हैं। इसे हम एक इत्तफाक नहीं मान सकते कि जब भाजपा का त्रिदेव हुंकारा सुनिश्चित हुआ, तभी कांगड़ा के प्रवास पर मुख्यमंत्री पहुंचे, अलबत्ता यह मानना पड़ेगा कि इस समय प्रदेश राजनीति की सबसे बड़ी हाजिरी यहीं लग रही है। त्रिदेव सम्मेलन की हिमाचली परिपाटी में भाजपा अपने कुनबे को एकत्रित व संगठित कर रही है और यह एक तरह से आंतरिक शक्ति और आत्म विश्लेषण की खुरदरी जमीन भी है। बेशक अपने आधार पर भाजपा की मौलिकता में, केंद्र के रुतबे का प्रसार चंबी मैदान पर देखा गया और यह भी कि देश के वित्त मंत्री पार्टी की माटी और पार्टी की धरती पर खड़े हुए। ऐसे में हिमाचल की निगाहें आने वाले केंद्रीय बजट पर रहेंगी और यह एक सत्य है कि प्रदेश सियासत करता  है, लेकिन आर्थिक संसाधन केंद्र देता है। हालांकि त्रिदेव सम्मेलन में हिमाचल की भावी आशाओं का अलख नहीं सुना गया, फिर भी सांसद शांता कुमार द्वारा चंबा के सीमेंट प्लांट का जिक्र एक फरियाद की मानिंद प्रदेश के जज्बे का इजहार है। देखना यह होगा कि जब चंबी रैली का आक्रोश लूट कर मुख्यमंत्री वीरभद्र अपने कार्यक्रमों में उदारता की चांदी बांटते रहे, तब केंद्र के वित्त मंत्री के पास इसके जवाब के लिए कितना विशाल बजट और हिमाचल का हिसाब होता है। हम भाजपा की दृष्टि में कहां खड़े हैं, यह आने वाला केंद्रीय बजट बताएगा। फिलहाल मुख्यमंत्री की घोषणाओं से उपजी आशा-आशंका और राजनीतिक कयास व किस्सों के बीच मुकाबला जारी है। इसलिए त्रिदेव की परिक्रमा में सजे पंडाल सबसे अधिक एक व्यक्ति को ललकारते रहे और यहीं से निकली चुनावी कसरतें सीधे वीरभद्र सिंह के अखाड़े से मुखाबित हैं। वीरभद्र सिंह के खिलाफ आरोपों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि हर वक्ता को कोई न कोई निशाना साधना था, लेकिन कांगड़ा की सरकारी घोषणाएं राजनीति की सबसे बड़ी जंग निर्धारित कर रही हैं। अतीत और भविष्य के बीच चंबी का सम्मेलन भाजपा के सामर्थ्य और समर्थन की तस्वीर जैसा रहा और जहां हर तकरीर के साथ रणनीतिक कौशल भी शामिल रहा। खास तौर पर कार्यकर्ताओं के लिहाज से पंजाब के साथ लगते इस हिमाचल में भाजपा की शक्ति का परिचय और दस्तूर स्पष्ट हुआ। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती के मुताबिक अगर जीत-हार का अंतर चार फीसदी मतों का ही है, तो पार्टी की मेहनत का संगठनात्मक जोश काफी कुछ कर सकता है। कांग्रेस के भीतर अपने दबाव और अशांति हो सकती है, लेकिन भाजपा की रणनीति में वीरभद्र सिंह से टकराना सबसे बड़ी चुनौती है। चुनाव से पूर्व कांगड़ा क्षेत्र में वीरभद्र सिंह सरकार के मायने वर्तमान शीतकालीन प्रवास में निरंतर बढ़े हैं और अब जबकि बात दूसरी राजधानी तक पहुंच गई, तो इसके सियासी बिंदुओं को भाजपा नजरअंदाज नहीं कर सकती, क्योंकि सबसे बड़ा चुनावी महाभारत यहीं होगा।


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