विचार ही जीवन का निर्माण करते हैं

By: Jan 14th, 2017 12:15 am

श्रीराम शर्मा

संसार एक शीशा है। इस पर हमारे विचारों की जैसी छाया पड़ेगी, वैसा ही प्रतिबिंब दिखाई देगा। विचारों के आधार पर ही संसार सुखमय अथवा दुखमय अनुभव होता है। पुरोगामी उत्कृष्ट उत्तम विचार जीवन को ऊपर उठाते हैं। मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिंब है। सफलता-असफलता, उन्नति, अवनति, तुच्छता, महानता, सुख-दुःख, शांति-अशांति आदि सभी पहलू मनुष्य के विचारों पर निर्भर करते हैं। किसी भी व्यक्ति के विचार जानकर उसके जीवन का नक्शा सहज ही मालूम किया जा सकता है। मनुष्य को कायर, वीर, स्वस्थ-अस्वस्थ, प्रसन्न- अप्रसन्न कुछ भी बनाने में उसके विचारों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। तात्पर्य यह है कि अपने विचारों के अनुरूप ही मनुष्य का जीवन बनता बिगड़ता है। अच्छे विचार उसे उन्नत बनाएंगे, तो हीन विचार मनुष्य को गिराएंगे। स्वामी रामतीर्थ ने कहा है, मनुष्य के जैसे विचार होते हैं, वैसा ही उसका जीवन बनता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, स्वर्ग और नरक कहीं अन्यत्र नहीं, इनका निवास हमारे विचारों में ही है। भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कहा था, भिक्षुओं! वर्तमान में हम जो कुछ हैं अपने विचारों के कारण। शेक्सपीयर ने लिखा है, कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। अच्छाई-बुराई का आधार हमारे विचार ही हैं। ईसा मसीह ने कहा था, मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही वह बन जाता है। संसार के समस्त विचारकों ने एक स्वर से विचारों की शक्ति और उसके असाधारण महत्त्व को स्वीकार किया है। संक्षेप में जीवन की विभिन्न गतिविधियों का संचालन करने में हमारे विचारों का ही प्रमुख हाथ रहता है। हम जो कुछ भी करते हैं, विचारों की प्रेरणा से ही करते हैं। संसार में दिखाई देने वाली विभिन्नताएं, विचित्रताएं भी हमारे विचारों का प्रतिबिंब ही हैं। संसार मनुष्य के विचारों की ही छाया है। किसी के लिए संसार स्वर्ग है तो किसी के लिए नरक। किसी के लिए संसार अशांति, क्लेश, पीड़ा आदि का आगार है तो किसी के लिए सुख-सुविधा संपन्न उपवन।  एक सी परिस्थितियों में एक सी सुख-सुविधा, समृद्धि में युक्त दो व्यक्तियों में भी अपने विचारों की भिन्नता के कारण असाधारण अंतर पड़ जाता है। एक जीवन में प्रतिक्षण सुख-सुविधा प्रसन्नता, खुशी, शांति, संतोष का अनुभव करता है, तो दूसरा पीड़ा, शोक, क्लेशमय जीवन बिताता है। इतना ही नहीं, कई व्यक्ति कठिनाई का अभावग्रस्त जीवन बिताते हुए भी प्रसन्न रहते हैं तो कई समृद्ध होकर जीवन को नारकीय यंत्रणा समझते हैं। एक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों में संतुष्ट रहकर जीवन के लिए भगवान को धन्यवाद देता है, तो दूसरा अनेक सुख-सुविधाएं पाकर भी असंतुष्ट रहता है। दूसरों को कोसता है, महज अपने विचारों के ही कारण।


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