विधायक प्राथमिकताओं पर घिरेगी सरकार
आउटसोर्सिंग के बाद भी लटकी योजनाएं, नाबार्ड के पास लंबित 200 से ज्यादा केस
शिमला – विधायक प्राथमिकताओं को लेकर एक दफा फिर से विधायक सरकार को घेरेंगे। इस महीने के अंत में संभावित विधायक प्राथमिकता योजना की बैठक में विधायक अपनी प्राथमिक योजनाओं की डीपीआर न बनने का मामला उठाएंगे, जिसके लिए सरकार ने पिछले बजट में आश्वासन दिया था। यही नहीं, बजट में प्रावधान किया गया था कि यदि विभाग डीपीआर नहीं बना पा रहे हैं तो आउटसोर्सिंग के जरिए डीपीआर बनाएं। ऐसा करने के बावजूद 200 से ज्यादा योजनाएं ठंडे बस्ते में हैं। इनमें लोक निर्माण व आईपीएच विभाग की योजनाएं हैं, जिन्हें विधायक अपनी प्राथमिकता योजना में शामिल करते हैं। बताया जाता है कि 100 से ज्यादा योजनाएं तो नाबार्ड के पास ही फंसी हुई हैं, जिनमें अभी तक बजट स्वीकृत नहीं हो पाया है। ऐसी ही कई दूसरी योजनाएं बिना डीपीआर के पड़ी हैं। आईपीएच विभाग ने हाल ही में इसकी समीक्षा की थी और उसमें सामने आया था कि 76 के करीब योजनाओं की डीपीआर बननी अभी लंबित हैं। जल्द ही इस सिलसिले में लोक निर्माण विभाग भी समीक्षा करेगा। इन विभागों के पास इसी वित्त वर्ष का टारगेट है, परंतु ये पूरा हो पाएगा, इस पर संशय है। इससे पहले नए वित्त वर्ष के लिए विधायक अपनी और प्राथमिकताएं देंगे, परंतु पिछले योजनाएं ही पूरी नहीं हो पा रही हैं तो आगामी योजनाओं का क्या होगा। ये सवाल विधायक पहले भी उठाते रहे हैं और एक दफा फिर से यही सवाल खड़ा है। इसी महीने विधायक प्राथमिकता बैठक होनी है, जिसके लिए अधिकारियों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। बताया जाता है कि इस सिलसिले में मुख्य सचिव ने भी संबंधित दोनों विभागों से जानकारी तलब की है। उन्होंने इस संबंध मंे नाबार्ड को भी पिछली बैठक में निर्देश दिए थे कि वे जल्द से जल्द प्राथमिकता योजनाओं के लिए राशि जारी करें, ताकि काम शुरू हो सके।
निशाने पर रहेंगे विभाग
कई योजनाएं बजट के अभाव में रुकी हुई हैं तो कइयों की डीपीआर ही नहीं बन पाई है। ऐसे में विभाग फिर से विधायकों के निशाने पर रहेंगे। यही नहीं, भाजपा के विधायक ये आरोप भी लगाते रहे हैं कि उनके क्षेत्रों की योजनाओं को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है, जबकि कांग्रेस के विधायकों की योजनाएं जल्दी निपटाई जा रही हैंं। इस पर भी बैठक में मामला गरमाने के पूरे आसार हैं।
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