साहित्यकारों ने जीती दिल्ली

By: Jan 17th, 2017 12:01 am

विश्व पुस्तक मेले में सजे कविता संग्रहों ने खींची भीड़

शिमला –  प्रगति मैदान में रविवार को संपन्न विश्व पुस्तक मेले में पाठकों व साहित्य प्रेमियों ने कविता संग्रहों और खासकर नए कवियों की कृतियों में खूब उत्साह दिखाया। उनके इस उत्साह से यह तो साफ  हो गया है कि कविता अभी भी सहित्य की प्रमुख विधा के रूप में स्थापित है और नई पीढ़ी में अपने समय के कवियों को पढ़ने की उत्सुकता बराबर बनी हुई है। पुस्तक मेले में पहाड़ के कवियों ने अपनी कृतियों के साथ देश के कविता क्षितिज पर अपने खास और चौंध भरी उपस्थिति दर्ज करवाई है। विश्व पुस्तक मेले में जहां लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, लीलाधर मंडलोई सरीखे वरिष्ठ कवियों के कविता संग्रहों को शोधार्थियों व काव्य प्रेमियों ने हाथोंहाथ लिया। वहीं केशव प्रमोद कौंसवाल, गीत चतुर्वेदी, शिरीष कुमार मौर्य, गुरमीत बेदी, ओम नागर, सुरेंद्र रघुवंशी और पवन करण के कविता संग्रह भी पाठकों की पसंद बने। विश्व पुस्तक मेले में सुरेंद्र रघुवंशी का कविता संग्रह ‘स्त्री में समुद्र’ गीत चतुर्वेदी का ‘न्यूनतम मैं’ जारा जकी का ‘रेत की दीवारे’, ‘शीशे के दरख्त’, गुरमीत बेदी की ‘मेरी ही कोई आकृति’, पवन करण का ‘इस तरह मैं’, राकेश रंजन का ‘दिव्य कैदखाने में’, गुरमीत बेदी की ‘मेरी ही कोई आकृति’ जो इसी साल प्रकाशित हुई है ने भी खूब धूम मचाई।

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पुस्तक मेले में हिमाचल के कवियों सुरेश सेन निशांत  और आत्मा रंजन के काव्यसंग्रह भी खास उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल रहे। पहाड़ों में भारी बर्फबारी के बावजूद पहाड़ के उत्साही कवि व साहित्यकार विश्व पुस्तक मेला में पहुंचे और पाठकों के साथ संवाद में मशगूल रहे।


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