सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर मंदिर लौटीं कामाक्षा

By: Jan 12th, 2017 12:01 am

ठियोग  —  तहसील ठियोग की क्यार पंचायत के बारह बीश में तीन दिन तक चले ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ का विधिवत रूप से समापन हो गया। बारह बीश के गांव कलाहर, सांबर, बांदली, वीरगढ़, निवड़ी, कडे़ड, धानौ, रैणा  व रिहाण में खासतौर से इस भूंडे का आयोजन किया गया था। देवता कमेटी माता कामाक्षा के कारदार बताते हैं कि भूंडे का आयोजन लगभग 50 वर्षों के बाद किया गया है। माता कामाक्षा के आदेश पर सभी देवलुओं की सहमति से इस ऐतिहासिक पौराणिक परंपरा को दोबारा से शुरू किया गया है। तीन दिन तक चले इस ऐतिहासिक भूंडे में देवी कामाक्षा अपने स्थान कलाहर से देवठी के प्रमुख कारदारों के साथ मतरूढ़ तथा कलाहर में विशेष पूजा-अर्चना के दौरान इस ऐतिहासिक यज्ञ को पूरा किया गया। इसमें हजारों की संख्या में देवलुओं ने भाग लिया। इस दिन सुबह करीब 11 बजे कलाहर तथा माता के मूल स्थान मतरूढ़ में माता कामाक्षा के पुजारी द्वारा शिखा व टिले का पूजन किया गया तथा भूंडे की परंपरा को पूरा किया गया। इस दौरान पुरानी दैविक परंपरा के अनुसार माता कामाक्षा के पुजारियों ने दोनों जगह पूजा की, यह पूजा और त्योहारों से खास है। इस दौरान देवी के पुजारी मंदिरों के कुरढ़ पर जाकर पूजा करते हैं, जो कि बेहद ही जोखिम भरा काम है। यहां पर माता कामाक्षा के एक बुजुर्ग कारदार गंगाराम बताते हैं कि बारह बीश ने कुछ समय तक भूंडे का आयोजन बंद कर दिया था, क्योंकि इसमें बलि प्रथा जैसी बुराइयों को बल मिलता है, लेकिन माता कामाक्षा की नाराजगी व उनके आदेश पर इसे दोबारा से शुरू करना पड़ा। यहां पर माता के पुजारी शिवदत व देवा हेतराम शर्मा, नारायण दत्त शर्मा ने बताया कि पुरानी परंपराओं को बंद नहीं किया जा सकता। बारह बीश में इस भूंडे का आयोजन करीब 50 वर्षों बाद हुआ है। इस यज्ञ के बाद माता कामाक्षा ब्यौण में बारह बीश के सभी देवलुओं को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर अपने स्थान कलाहर में मंदिर में प्रवेश कर गई हैं। देवी कामाक्षा के प्रमुख लोगों में देवता कमेटी के चेयरमैन सुरेश चौहान व सचिव प्रकाश शर्मा आदि ने कहा कि बारह बीश में भूंडे का सफल आयोजन पूर्ण हुआ है।

कुछ बलि प्रथा के खिलाफ

कुछ लोग बलि प्रथा के खिलाफ  भी हैं, लेकिन भूंडे को इसी दृष्टि से देखा जाता है। इसमें शराब व मास का खुलकर सेवन किया जाता है।

महायज्ञ में करोड़ों का खर्चा

भूंडे में देवलुओं का काफी अधिक खर्चा आ जाता है, जिसे वहन करना आम आदमी के लिए मुश्किल है। इस बार हुए भूंडे में करोड़ों रुपए का खर्चा हुआ है।


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