सैलानियों के स्वागत को कितना तैयार हिमाचल
प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब हिमाचल में और निखार लाने के लिए जरा से मेकअप की ही जरूरत है। मसलन ऐसे प्रोजेक्ट हों, जिनमें पर्यटक दिलचस्पी लें और उनका ठहराव दो दिन से बढ़कर हफ्ते तक खर्च जाए। तभी हिमाचल में पर्यटन उद्योग को पंख लग सकते हैं…
पर्यटक अभी तक वीकेंड मनाने ही शिमला या अन्य पर्यटक स्थलों में पहुंचते हैं। स्तरीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है कि बड़े प्रोजेक्ट शुरू हों। बड़ी होटल शृंखलाएं आकर्षित की जा सकें। पिछले दस वर्षों से रोप-वे प्रोजेक्ट्स को लेकर घोषणाएं हो रही थीं, मगर नयनादेवी व टिंबर ट्रेल को छोड़कर प्रदेश में अन्य और कोई भी रोप-वे शुरू ही नहीं हो सका। ये दोनों ही निजी क्षेत्र के हैं। अब मौजूदा सरकार ने धर्मशाला-मकलोडगंज, टुटीकंडी-मालरोड, पलचान-कोठी-रोहतांग के लिए कार्य शुरू किया है। पलचान-कोठी के लिए तैयारियां चली हैं। बिजली-महादेव का कार्य भी शुरू किया जा रहा है। इसका टेंडर अवार्ड हो चुका है। जाखू रोप-वे नए वर्ष में शुरू होने की उम्मीद है। लिहाजा आने वाले वर्षों में पर्यटकों के लिए नया आकर्षण ये प्रोजेक्ट बन सकते हैं। पर्यटन विशेषज्ञों की राय में जब तक प्रदेश में पार्किंग की सुविधाओं के साथ-साथ पर्यटन स्थलों में आधारभूत ढांचे को मजबूत नहीं कर लिया जाता, तब तक दिक्कतें पेश आती रहेंगी। हालांकि पर्यटन विभाग ने पिछले कुछ अरसे से खूब मेहनत की है। एडीबी के 400 करोड़ के प्रोजेक्ट के जरिए पर्यटन स्थलों की दशा सुधारने की मुहिम जारी है। मगर व्यवसायियों का कहना है कि जब तक एयर कनेक्टिविटी, रेल कनेक्टिविटी नहीं बढ़ेगी, तब तक निखार अधूरा ही रहेगा। हैरानी की बात है कि इतने वर्षों के बाद भी प्रदेश में हैल्थ टूरिज्म व साहसिक पर्यटन को लेकर कोई बड़े प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सके हैं, जबकि यहां संभावनाएं मौजूद हैं। मनोरंजन पार्क के लिए 1977 से घोषणाएं हो रही हैं। अब मौजूदा वीरभद्र सरकार ने इसे सिरे चढ़ाने की कवायद शुरू की है। प्रदेश के पौंग, चमेरा और भाखड़ा में वाटर स्पोर्ट्स की बड़ी क्षमताएं हैं। कुल्लू में ब्यास से लेकर तत्तापानी-सतलुज में भी व्यापक संभावनाएं हैं। इन सबका बड़े स्तर पर दोहन करने की आवश्यकता है। निजी निवेशकों के लिए सकारात्मक माहौल मिले, इसे सुनिश्चित बनाना जरूरी होगा। वरना सरकारी स्तर पर अरबों रुपए के निवेश के रास्ते सरल नहीं हो सकते हैं।
प्रदेश बन रहा सैलानियों की पहली पसंद
हिमाचल विदेशी मेहमानों के लिए खास पसंदीदा स्थल बनता जा रहा है। यही नहीं, प्रदेश ने पड़ोसी राज्य तो पीछे धकेल ही दिए हैं, पूर्वोत्तर राज्यों में भी विदेशी पर्यटकों की आमद को लेकर हिमाचल बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है। शांत पहाड़ी राज्य में जब से पर्यावरण संरक्षण व स्तरीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं शुरू की गई हैं, तभी से इस आंकड़े में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। हालांकि प्रदेश नए पर्यटन आकर्षण अभी तक पैदा नहीं कर सका है। इसके लिए मौजूदा सरकार ने रोप-वे प्रोजेक्ट्स का बड़ा नेटवर्क तैयार करने की पहल कर दिखाई है। मगर यदि वर्ष 2004 से तैयार किए जा रहे मेगा टूरिज्म प्रोजेक्ट्स के लिए निजी क्षेत्र को तैयार कर लिया जाए, तो यह आमद और बढ़ सकती है। मगर अब तक पांच बार इन प्रोजेक्ट्स की निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं। बावजूद इसके कोई भी निवेशक आगे नहीं आया। अब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निर्देशों पर एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया है, जो प्रोजेक्ट्स की शर्तों के सरलीकरण के लिए काम कर रही है। उम्मीद होगी कि जल्द ये सिरे चढ़ेंगे।
एक हिल स्टेशन विकसित नहीं कर पाया हिमाचल
पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष मेजर विजय सिंह मनकोटिया का कहना है कि पड़ोसी राज्यों से तो सैलानी वीकेंड पर हिमाचल बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। जरूरत है स्तरीय पर्यटकों को आकर्षित करने की। उनका कहना है कि हिमाचल के ट्राइबल क्षेत्रों में लाहुल-स्पीति, किन्नौर, भरमौर और पांगी में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यदि इनका सही मायने में प्रचार हो, तो इन क्षेत्रों की तरफ सैलानी बड़ी संख्या में आ सकते हैं। हिमालय का 71 फीसदी क्षेत्र हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम में पड़ता है। विदेशी सैलानी इसी के आकर्षण में बंधते हैं, जरूरत है तो बस उन्हें बताने की कि हिमाचल में है क्या। मेजर मनकोटिया का कहना है कि आजादी के बाद हिमाचल में एक भी नया हिल स्टेशन हम विकसित नहीं कर पाए। जो अंग्रेज छोड़ गए थे, उन्हीं पर आगे बढ़ रहे हैं। प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में नए क्षेत्र विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि पुराने स्थल उबाऊ हो चुके हैं, उनमें आबादी बढ़ने के साथ-साथ बुनियादी सुविधाएं दम तोड़ रही हैं। मेजर मनकोटिया का कहना है कि सड़कों में सुधार की आवश्यकता है। रेल व एयर कनेक्टिविटी में ज्यादा से ज्यादा सुधार होना चाहिए। हिमाचल में पौंग, गोबिंदसागर और चमेरा जैसे बेहद आकर्षक जलाशय व कई बड़ी झीलें हैं। इनमें डल लेक की तरह हाउस बोट व शिकारे चलाए जा सकते हैं।
दो दिन ही रुकते हैं मेहमान
हिमाचल में आबादी से अढ़ाई गुना ज्यादा पर्यटक आते हैं। पर्यटन आमद की विकास दर छह फीसदी है। पर्यटन हिमाचल के राजस्व में यानी जीडीपी में पर्यटन क्षेत्र का योगदान नौ फीसदी के करीब है। प्रदेश में पर्यटन ठहराव औसतन दो दिन का है। स्तरीय पर्यटक अभी भी ज्यादा संख्या में यहां नहीं पहुंच पा रहे हैं, जबकि विदेशी पर्यटकों की आमद में साल-दर-साल बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।
सीएम ने दिखाई रुचि
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने त्रियूंड, नयनादेवी, शाहतलाई, रोप-वे प्रोजेक्ट्स को सिरे चढ़ाने के भी निर्देश दिए हैं। ये प्रोजेक्ट पिछले 10 वर्षों से भी ज्यादा समय से लटके हैं। हालांकि पलचान से कोठी रोप-वे का जो सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कुल्लू में सिरे चढ़ना था, उसे टैक्सी आपरेटरों के विरोध के चलते रद्द किया गया था। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों पर फिर से इसे शुरू करना होगा। टाटा कंपनी ने इसका सर्वेक्षण कार्य पूरा करवा दिया है। अब अनापत्ति प्रमाण पत्र लिए जा रहे हैं।
72 ईको टूरिज्म प्रोजेक्ट का विस्तार
वन विभाग व वन निगम द्वारा हिमाचल में 72 के लगभग ईको टूरिज्म प्रोजेक्ट विकसित किए जा रहे हैं। इनकी निविदाएं जल्द ही आमंत्रित करने की तैयारी है। इस कदम से प्रदेश में नए पर्यटन स्थल विकसित करने में मदद मिलेगी। जाहिर तौर पर हिमाचल में इन प्रयासों से टूरिस्ट्स का स्टे व आमद भी बढ़ेगी।
विंटर कार्निवाल की पहल लाजवाब
दो वर्षों से क्रिसमस व नववर्ष की पूर्व संध्या पर हिमाचल आने वाले सैलानियों को नए आकर्षण में बांधने के लिए मनाली के साथ-साथ शिमला में भी विंटर कार्निवाल सरीखे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें जहां लोकल कलाकारों को मौका मिल रहा है। वहीं, प्रदेश के ही नामी लोक गायकों भी मंच सजा रहे हैं। दोपहर- शाम को शिमला आने वाले सैलानी इस कार्निवाल का लुत्फ उठाते देखे जा सकते हैं। सैलानियों को रिझाने के लिए प्रशासन व पर्यटन विभाग की तरफ से यह खास आयोजन है। इसके अतिरिक्त एचपीटीडीसी के होटलों में इस बार मुगलई फूड फेस्टिवल चल रहा है। पिछली बार अवध फूड फेस्टिवल का आयोजन किया गया था। इसके अलावा सैलानियों के टूअर को और मनोरंजक बनाने के लिए निजी व सरकारी होटलों में रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित हो रहे हैं, जिसमें विभिन्न तरह की प्रतियोगिताएं भी शामिल हैं। हनीमून कपल्स के लिए यह खास आकर्षण है।
नए प्वाइंट विकसित करने की जरूरत
प्रदेश के शिमला, कुल्लू-मनाली, सोलन, सिरमौर, किन्नौर, लाहुल-स्पीति और चंबा के साथ-साथ मंडी में पर्यटन के नए क्षेत्र विकसित करने की भी जरूरत है। क्योंकि पुराने स्थल अब उबाऊ साबित होने लगे हैं।
यह मुहिम नहीं चढ़ी सिरे
क्रेगनेनो शिमला में मनोरंजन व बोटेनिकल पार्क बनना था। पर्यटन व वन विभाग इसे एडीबी के सहयोग से सिरे चढ़ाने के प्रयास में थे, मगर सिरे नहीं चढ़ सका।
एडीबी की पहल
अब एडीबी की सहायता से नालदेहरा में जरूर ईको टूरिज्म प्रोजेक्ट स्थापित किया जा रहा है, जो अत्याधुनिक ढर्रे का होगा। वहीं, एडीबी प्रोजेक्ट के जरिए हिमाचल पर्यटन विभाग शिमला के ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च, जो कि रिज पर स्थित है, कैथोलिक चर्च जो पश्चिमी कमांड के नजदीक है, का फेस लिफ्ट किया जा रहा है। शिमला, मालरोड, रिज व फोरेस्ट रोड को भी ब्यूटीफाई किया जा रहा है।
नहीं मिल पाते विशेष ऑफर
पर्यटन सीजन में न तो एचपीटीडीसी, न ही निजी व्यवसायी किसी तरह का पैकेज पेश करते हैं। क्योंकि सभी होटलों में ऑक्यूपेंसी करीबन फुल रहती है। हालांकि क्रिसमस से लेकर नववर्ष की पूर्व संध्या तक होटलों में फूड फेस्टिवल व सांस्कृतिक कार्यक्रम बड़े स्तर पर आयोजित किए जाते हैं, जो हिमाचल आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते हैं।
टूरिस्ट स्टे बढ़ाने की जरूरत
हिमाचल में पर्यटकों का ठहराव औसतन दो व तीन दिन का रहता है। स्तरीय पर्यटन के अभाव में यह ठहराव बढ़ नहीं पा रहा है। एयर कनेक्टिविटी नाममात्र की है। रेल कनेक्टिविटी भी ज्यादा नहीं है। बड़े पैकेज टूअर में आने वाले पर्यटक ऐसी सुविधाएं चाहते हैं, जिससे उनके समय की बचत हो सके।
हिमाचल में भगवान भरोसे सैलानी
पुलिस-टूरिस्ट गाइड कहीं नहीं आते नजर
हिमाचल की आर्थिकी में पर्यटन का विशेष योगदान है। पर्यटन क्षेत्र हिमाचल में रोजगार का एक बड़ा साधन है। इससे हजारों परिवारों की जीविका चलती है, लेकिन हिमाचल में सैलानियों की सुरक्षा और इनकी गाइड्स की सुविधा की बात करें तो यह नगण्य है। खासकर पुलिस द्वारा सैलानियों की गाइडेंस के लिए कोई इंतजाम नहीं है यानी पर्यटन स्थलों पर सैलानी भगवान भरोसे ही रहते हैं। हिमाचल में हर साल लाखों की तादाद में सैलानी पर्यटन स्थलों पर पहुंचते हैं, लेकिन इस सैलानियों को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया जाता है। पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों के लिए पुलिस गाइड तैनात नहीं रहता। हालांकि सरकार ने पुलिस विभाग में अलग से ही टीटीआर यानी ट्रैफिक, रेलवे और टूरिस्ट विंग बना रखा है, लेकिन यह विंग केवल ट्रैफिक के काम तक ही सीमित है। जानकारी के अनुसार टीटीआर के पास अलग से पर्यटन पुलिस नहीं है। यह जिलों में पुलिस अधीक्षकों पर ही निर्भर करता है कि वे अपने अधीन आने वाले पर्यटन स्थलों पर सैलानियों के लिए पुलिस गाइड तैनात करते हैं या नहीं। वहीं, जिला पुलिस भी पुलिस गाइड्स तैनात करने में कोई रुचि नहीं दिखाती। राजधानी शिमला में ही टूरिस्ट गाइड्स नहीं हैं। ऐसे में सैलानी निजी टूरिस्ट गाइडों पर ही निर्भर रहते हैं। ये निजी गाइड सैलानियों को सही तरीके से गाइड नहीं करते और इन सैलानियों को गाइडेंस के नाम पर लूटते हैं। ऐसे में यहां आने वाले सैलानी अपने आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं। शिमला के आसपास के पर्यटन स्थल कुफरी, चायल और नारकंडा में भी सैलानियों के लिए पुलिस गाइड नहीं रहता।
पर्यटकों का आंकड़ा (लाखों में)
वर्ष भारतीय विदेशी कुल
2005 69.28 2.08 71.36
2006 76.72 2.81 79.53
2007 84.82 3.39 88.21
2008 93.73 3.77 97.50
2009 110.37 4.01 114.38
2010 128.12 4.54 132.56
2011 146.05 4.84 150.89
2012 156.46 5.00 161.46
2013 147.17 4.14 151.30
2014 159.25 3.90 163.14
2015 171.25 4.08 175.31
वृंदावन-गोल्डन टेंपल जैसा नजारा नहीं
धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मंदिरों में आयोजित होने वाले उत्सव कारगर साबित हो सकते हैं, लेकिन मंदिर प्रबंधन की मायूसी की वजह से उत्साह खत्म होता जा रहा है और इन उत्सवों पर भीड़ भी पिछले वर्षों में लगातार कम हुई है। माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर व बैजनाथ के शिव मंदिर में घृत मंडल पर्व हो या फिर माता की जयंती व मिंजर पर्व हो, ऐसे उत्सवों को मंदिर प्रबंधन की उदासीनता की वजह से समेट कर रख दिया गया है। कृष्ण नगरी वृंदावन में रोजाना कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है। परिणामस्वरूप वहां रोज उत्सव का माहौल होता है। देवी तालाब मंदिर जालंधर में आए दिन उत्सव जैसा माहौल होता है। गोल्डन टेंपल अमृतसर में 24 घंटे आनंदमय वातावरण है। यही वजह है कि यहां धार्मिक पर्यटकों की भीड़ बढ़ी है। चिंतपूर्णी मंदिर और बगलामुखी मंदिरों में इस तरह के कार्यक्रमों को तवज्जो दी गई है, लेकिन यहां ऐसी कोशिशें न होने की वजह से अधिकांश मां के श्रद्धालु चिंतपूर्णी, ज्वालाजी के बाद बगलामुखी दर्शन के बाद वापस लौट जाते हैं। कांगड़ा में घृत मंडल पर्व पर वर्षों पूर्व एमिल जागरण के आयाजनों से टीवी चैनलों के माध्यम से विश्व में प्रसिद्धि मिली थी। दीगर है उसके बाद यहां चढ़ावे और कारोबार में भी वृद्धि हुई, लेकिन उसके बाद एमिल परिवार सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित करने वाली पार्टियों ने मुंह फेर लिया है। दरअसल मंदिर प्रबंधन व प्रशासन आयोजकों को जटिल औपचारिकताओं में बांध देता है और वे झंझटों में पड़ने के बजाय उससे किनारा करना बेहतर समझते हैं। सरकारी अधिग्रहण के बाद लोगों की भागीदारी ऐसे उत्सवों के प्रति कम हुई है तो माहौल निराशाजनक है। वैसे ऐसे उत्सवों के बहाने धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है, लेकिन मंदिर प्रबंधन ने कोशिश करना तो दूर ऐसे आयोजन करने वालों के प्रति असहयोग पूर्ण रवैया अपनाया है। एमिल जागरण में यहां हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी थी तो कांगड़ा में कारोबारियों को भी इसका लाभ मिला था। साल में आधा दर्जन ऐसे उत्सव धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो सकते हैं। कांगड़ा, बैजनाथ व चामुंडा में भी ऐसे उत्सव आयोजित हों,तो धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। इसके लिए मंदिर ट्रस्ट को गंभीर होने की जरूरत है।
यूं घटी आमद
* बज्रेश्वरी-बैजनाथ शिव मंदिर में घृतमंडल भी नहीं खींच पा रहा भीड़
* कांगड़ा में एमिल जागरण कार्यक्रम की मुहिम भी नहीं चढ़ी सिरे
* जयंती व मिंजर पर्व को भी नहीं मिल पाई ख्याति
* बगलामुखी चिंतपूर्णी में भी सैलानियों के लिए कुछ खास नहीं
* मंदिर ट्रस्ट प्रयास करें तो बढ़ सकती है मेहमानों की आमद
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