हार्मोंस की कमी

By: Jan 21st, 2017 12:05 am

जन्म से 40 की उम्र तक मांसपेशियों के बढ़ने के साथ इनका मजबूत होना स्वाभाविक है, लेकिन 40 वर्ष के बाद मांसपेशियों का विकास धीमा हो जाता है, जिससे व्यक्ति का स्टेमिना घटने लगता है। इस बदलाव को सार्कोपीनिया कहते हैं। नियमित स्ट्रेंथ वर्कआउट से मांसपेशियों की मजबूती को बरकरार रख सकते हैं…

बढ़ती उम्र के प्रभाव को शरीर में थकान, सक्रिय रहना, त्वचा के सिकुड़ने आदि से देखा जा सकता है। जन्म से 40 की उम्र तक मांसपेशियों के बढ़ने के साथ इनका मजबूत होना स्वाभाविक है, लेकिन 40 वर्ष के बाद मांसपेशियों का विकास धीमा हो जाता है, जिससे व्यक्ति का स्टेमिना घटने लगता है। इस बदलाव को सार्कोपीनिया कहते हैं। नियमित स्ट्रेंथ वर्कआउट से मांसपेशियों की मजबूती को बरकरार रख सकते हैं। जानें इसके बारे में।

लक्षण

मांसपेशियों की क्षमता घटने से व्यक्ति में कमजोरी सबसे पहला लक्षण होता है। इसके अलावा दिमाग मांसपेशियों को एक्टिव बने रहने के सिग्नल भेजना कम कर देता है। प्रोटीन का एनर्जी में बदलने की प्रक्रिया धीमी होना व मांसपेशियों का घनत्व घटने लगता है।

कारण

बढ़ती उम्र के दौरान ग्रोथ हार्मोन व अन्य जरूरी हार्मोन बनने की प्रक्रिया धीमी होना, युवावस्था के दौरान कई बार पोषक तत्त्वों की कमी से भी निश्चित उम्र से पहले मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। दिमाग से जुड़ी कोई न्यूरोमस्कुलर डिजीज होने से दिक्कत होती है।

कौन ज्यादा प्रभावित

75 की उम्र के बाद से यह परेशानी तेजी से मांसपेशियों को कमजोर करती है। कुछ मामलों में 65 की उम्र से पहले या 85 की उम्र के बाद भी मांसपेशियों के कार्यक्षमता धीमी हो जाती है।

इलाज

सबसे पहले मरीज को स्ट्रेंथ बढ़ाने वाली एक्सरसाइज करने की सलाह देते हैं ताकि न्यूरोमस्कुलर सिस्टम और हार्मोंस बनने व रिलीज होने में मदद मिलती रहे। इससे प्रोटीन के एनर्जी में तबदील होने की क्षमता बढ़ती है। कुछ मरीजों को हार्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी और दवाएं भी देते हैं।


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