आलोचना से पहले मतदान भी तो करें
( किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर )
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक अत्यंत दिलचस्प केस में विचार व्यक्त किया है कि जो नागरिक मतदान में भाग नहीं लेता, वह न तो सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकारी है और न ही वह सरकार से किसी प्रकार की सुविधा या छूट का पात्र। वास्तव में मताधिकार एक वह शक्ति है, जिससे वह अपने लिए सही सरकार के चयन में हिस्सेदार होता है। जो व्यक्ति अपने मताधिकार का विवेकपूर्ण उपयोग करता है, वही सरकार से सभी तरह की सहूलियतों की मांग या सरकार के अनुचित कानूनों की आलोचना का हकदार होता है, क्योंकि उसका सरकार के गठन में योगदान होता है। आज अधिकतर लोग सरकार की हर बात के लिए उल्टी-सीधी आलोचना तो पानी पी-पी कर करते हैं और मतदान नहीं करते। वास्तव में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है, लेकिन कर्त्तव्यों का पालन करना भी नागरिक की जिम्मेदारी बनती है। लोग केवल अधिकारों के प्रति बेहद सतर्क हैं और कर्त्तव्य पालन के प्रति बड़े लापरवाह होते हैं। हर बात के लिए सरकार को ही दोष दिया जाता है। सरकार की अच्छे कार्य के लिए पीठ भी थपथपानी जरूरी है, लेकिन ऐसा सदैव नहीं होता। हर बात में राजनीतिक पहलू तलाशे जाते हैं। एक बार भी यदि सरकार गठन में सहायता और उसके अच्छे कार्यों की सराहना हो, तो अच्छा होगा। होना तो यह चाहिए कि किस नागरिक ने मताधिकार का उपयोग किया और किस ने नहीं, इसका अभिलेख पंचायतों में रखा जाए। उसके अनुसार ही सुविधाओं का आबंटन होना चाहिए।
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