कशमकश के बीच तमिलनाडु

By: Feb 13th, 2017 12:05 am

कुलदीप नैयर कुलदीप नैयर

( कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं )

तमिलनाडु की राजनीति में चले मौजूदा ड्रामे का अंतिम परिणाम क्या रहता है, इस पर अभी से कुछ कह पाना मुश्किल है। लेकिन एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि शशिकला एक उल्लेखनीय चेहरा बन चुकी हैं और पन्नीरसेल्वम के बारे में भी यही कहा जा सकता है। पन्नीरसेल्वम का यह सौभाग्य ही माना जाएगा कि जनता उनके साथ है। कम से कम वर्तमान में तो यही कहा जा सकता है। शशिकला का भविष्य बहुत कुछ न्यायालय के फैसले पर निर्भर करेगा…

दक्षिण भारत की राजनीति, उत्तर भारत की राजनीति से बिलकुल भिन्न नहीं है। व्यक्ति पूजा दोनों ही क्षेत्रों में हावी रही है। लोग जिन नेताओं को अपना मान लेते हैं, फिर उनके लिए उन्माद में बहते हुए आत्म बलिदान की हद तक पहुंच जाते हैं। सरकार ने इस तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध घोषित कर रखा है, इसके बावजूद इन पर अब तक पूर्ण विराम नहीं लग सका है। वीके शशिकला भी आज एक ऐसी ही शख्सियत बन चुकी हैं, जो राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री की काफी करीबी रही हैं। आज वह पार्टी सचिव हैं और पार्टी ने उन्हें विधायक दल का नेता भी चुन लिया है। इसी बीच सेवामुक्त ओ पन्नीरसेल्वम को इस्तीफा देने के लिए कहा गया। हालांकि पार्टी में जब यह निर्णय लिया गया, उस वक्त ओ. पन्नीरसेल्वम खुद वहां मौजूद ही नहीं थे। लेकिन इस सियासी घटनाक्रम ने एकदम से ऐसी करवट ली कि राज्य की जनता सकते में आ गई। दिवंगत मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र रहे ओ. पन्नीरसेल्वम मजबूती के साथ शशिकला के खिलाफ उठ खड़े हुए और उन पर आरोप लगाया कि वह राज्य की सत्ता हड़पने की फिराक में हैं। इसके बावजूद राज्य में नेतृत्व को बदलने के संदर्भ में यह सही वक्त नहीं माना जा सकता, क्योंकि शशिकला के खिलाफ फिलहाल आय से अधिक संपत्ति का मामला न्यायालय में विचाराधीन है। सर्वोच्च न्यायालय पहले ही संकेत दे चुका है कि इस संदर्भ में एक सप्ताह के भीतर ही फैसला सुनाया जा सकता है। अब न्यायालय का फैसला शशिकला के पक्ष में आता है या खिलाफ, वह  दूसरी बात है, लेकिन इस मामले से उनकी विश्वसनीयता पहले ही दांव पर लग चुकी है।

जहां तक शशिकला की बात है, तो वह पूर्व मुख्यमंत्री की लंबे अरसे से करीबी मित्र रही हैं। संभवतः यही वजह रही होगी कि जयललिता के निधन के पश्चात उनकी समृद्ध विरासत को संभालने की उनकी इच्छा जागी होगी, लेकिन उन्हें कभी भी इस विरासत का वारिस घोषित नहीं किया गया था। मन्नारगुडी माफिया के पक्ष में जाने वाला उनका रुख जन भावनाआें का विरोधी माना जाता है। शशिकला ने जो कुछ भी किया, उसके पीछे उनके पति एम. नटराजन का हाथ था और इसके लिए अंततः जयललिता और फिर बाद में शशिकला ने भी उन्हें किनारे लगा दिया था। यह एक खुला रहस्य है कि जयललिता के साथ-साथ बेशुमार संपत्ति जोड़ लेने वाली शशिकला पर एक विशेष अदालत में मामला चला हुआ है। जयललिता जब जेल में थीं या न्यायालयी मामलों में बुरी तरह से उलझी हुई थीं, तो उन विपरीत हालात में वह पन्नीरसेल्वम पर निर्भर थीं और इस दौरान मुख्यमंत्री पद पर भी उन्हें ही बिठाया। एक वफादार पार्टी कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने उस पद पर बैठकर उसके साथ न्याय किया और जब जयललिता जेल से बाहर आईं, तो अपने आप पद छोड़ भी दिया था। इतना ही नहीं, पन्नीरसेल्वम के लिए जयललिता इतनी श्रद्धेय थीं कि जब उन्होंने कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री पद संभाला, तो वह जयललिता की कुर्सी पर नहीं बैठे। उस कुर्सी का सम्मान करते हुए उन्होंने अपने लिए एक अलग कुर्सी की व्यवस्था की। उन्होंने अपने कमरे में जयललिता की फोटो लगाई हुई थी और उनके प्रति अपनी वफादारी की अभिव्यक्ति के लिए हर वक्त उनकी एक फोटो अपनी जेब में रखते थे। पन्नीरसेल्वम पर उनकी निर्भरता इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि जयललिता जब कभी भी मुश्किलों से घिरीं, तो उन्होंने पन्नीरसेल्वम को राज्य का कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाना पसंद किया। वास्तव में जयललिता का सियासी कद इतना ऊंचा हो चुका था कि कोई दूसरा शख्स उनके आसपास भी नहीं पहुंच सका। जवाहर लाल नेहरू की ही तरह जयललिता भी उस बरगद के पेड़ की तरह फैल चुकी थीं, जिसके नीचे कोई दूसरा पौधा अस्तित्व में आ ही नहीं सका। जयललिता ने पार्टी और सत्ता की डोर अकेले अपने हाथों में थामी रखी, जबकि विपक्ष में डीएमके पार्टी के एम. करुणानिधि सरीखे कद्दावर नेता अपनी सियासी सक्रियता को जारी रखे हुए हैं।

उत्तर भारत की पार्टी मानी जाने वाली और केंद्र की सत्ता में आसीन भारतीय जनता पार्टी की तमिलनाडु में अब तक एक सीमित स्वीकार्यता ही रही है। लोकसभा चुनावों में भी एआईडीएमके की 37 सीटों की तुलना में भाजपा एक ही सीट जीत पाई थी। राज्य की वर्तमान सियासी उठापटक में भाजपा के पास यह एक अच्छा अवसर है कि वह तमिलनाडु में भी अपनी दस्तक दे दे, वहीं संसद में किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को पास करवाने के लिए एआईडीएमके के 37 सांसदों की एक अहम भूमिका रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिलहाल यही रणनीति होगी कि इस राजनीतिक उतार-चढ़ाव पर वह करीब से नजर बनाए रखें। हो सकता है कि शशिकला के खिलाफ जाने वाला उच्चतम न्यायालय का फैसला इन तमाम कयासों को खत्म करने वाला साबित हो। हालांकि उनका भी प्रयास रहेगा कि वह राज्य में अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करवा लें। शशिकला के पति नटराजन जहां लगातार कांग्रेसी नेताओं के संपर्क में हैं, वहीं यह स्थिति भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को भी स्थिति का लाभ लेने के लिए सक्रिय कर दे।

हो सकता है कि शाह यहां पर बेहद मिलनसार व्यक्ति पन्नीरसेल्वम का पक्ष लें। भाजपा को आशा है कि पन्नीरसेल्वम के सहारे भविष्य में राज्य में वह अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकती है। बहरहाल जनता का शशिकला के खिलाफ मूड भी पन्नीरसेल्वम के पक्ष में जा सकता है। इसकी वजह यह है कि जब जयललिता बीमार थीं, तो शशिकला ने उनकी भतीजी को उनसे मिलने नहीं दिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग से पार्टी बना ली थी और ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि वह शीघ्र ही इस प्रकरण से जुड़े कुछ बड़े खुलासे कर सकती हैं। इस तरह की परंपराएं उत्तरी भारत की राजनीति में लंबे समय से प्रचलित रही हैं। नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा को ही अपनी सियासी विरासत का वारिस बनाना चाहते थे। लेकिन उस दौर में लाल बहादुर शास्त्री जनता में काफी लोकप्रिय थे और किसी भी सूरत में उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती थी। इसलिए पार्टी अध्यक्ष के. कामराज ने घोषणा की कि पहले शास्त्री जी को मौका मिलेगा और उसके बाद इंदिरा गांधी को। तमिलनाडु की राजनीति में चले ड्रामे का अंतिम परिणाम क्या रहता है, इस पर अभी से कुछ कहना मुश्किल है। एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि शशिकला एक उल्लेखनीय चेहरा बन चुकी हैं और पन्नीरसेल्वम के बारे में भी यही कहा जा सकता है। पन्नीरसेल्वम का यह सौभाग्य ही माना जाएगा कि जनता उनके साथ है। कम से कम वर्तमान में तो यही कहा जा सकता है। शशिकला का भविष्य बहुत कुछ न्यायालय के फैसले पर निर्भर करेगा। यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि शशिकला जयललिता नहीं हैं और डीएमके भी स्थितियों पर पैनी नजर गड़ाए बैठी है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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