केंद्र की प्राथमिकताओं में कितना हिमाचल

By: Feb 4th, 2017 12:02 am

( कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं )

हिमाचल भारत में छोटे राज्यों की श्रेणी में आता है। शायद इसी कारण केंद्र के बजट में इस पहाड़ी राज्य को कोई बड़ा स्थान नहीं मिल पाता। ऐतिहासिक दृष्टि से हिमाचल कभी भी केंद्रीय बजट का आकर्षण नहीं बना है। इस वर्ष कौन सी नई बात हो सकती थी…

पहली फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चौथा बजट पेश किया। इस वर्ष के बजट पर नवंबर, 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले का प्रभाव दिखना स्वाभाविक ही था। नोटबंदी से कृषि, मझोले उद्योगों तथा आम आदमी को अनेक कष्ट झेलने पड़े थे। इस बजट पर इस वर्ष होने वाले पांच राज्यों के चुनावों के कारण राजनीतिक गलियारों में खासा शोर मचा हुआ था। चुनाव आयोग ने भी अपनी निगाहें गड़ाई हुई थीं। यही कारण रहा कि यह बजट लोकलुभावन कम ही दिखा। इस बजट से सबसे ज्यादा हैरानी उन लोगों को हुई, जो इस बार भी किसी बड़ी परियोजना संबंधी घोषणा के इंतजार में थे। हिमाचल के परिपे्रक्ष्य में बात की जाए, तो बजट कमोबेश ठीक वैसा ही था, जैसा कि अब तक के वर्षों में देखने को मिलता रहा है। हिमाचल भारत में छोटे राज्यों की श्रेणी में आता है। शायद इसी कारण केंद्र के बजट में इस पहाड़ी राज्य को कोई बड़ा स्थान नहीं मिल पाता। ऐतिहासिक दृष्टि से हिमाचल कभी भी केंद्रीय बजट का आकर्षण नहीं रहा। इस वर्ष भी कौन-सी नई बात हो सकती थी। जब लोकसभा चुनावों में हिमाचल ने अपनी सभी सीटें भाजपा की झोली में डाल दी थीं, तो उस दिन इतनी उम्मीद जरूर जगी थी कि अब शायद केंद्र में हिमाचल की उपेक्षा का सिलसिला टूट जाए।

इन चार सांसदों के अलावा हिमाचल से ही एक नेता केंद्रीय मंत्रिमंडल का भी हिस्सा हैं। ऐसे में बजट के बाद ये सभी सोच-विचार करें कि केंद्र के समक्ष इन्होंने पहाड़ी राज्य हिमाचल का पक्ष कितनी मजबूती के साथ रखा। यदि अपनी जरूरतों को केंद्र के समक्ष रखने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, तो फिर केंद्र के समक्ष हमारी अपेक्षाओं का चूरमा क्यों बना? क्यों वित्त मंत्री ने अपने लंबे-चौड़े बजट भाषण में हिमाचल के नाम दो लफ्ज बोलना भी मुनासिब नहीं समझा। बजट में इस घोषणा को एक बार फिर से दोहराया गया है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना किया जाएगा। वहीं दूसरी घोषणा में जम्मू-कश्मीर और पूर्वी राज्यों के लिए मोदी सरकार ने इस वर्ष के बजट में विशेष कृषि पैकेज देने की घोषणा की है। किसान तो हिमाचल में भी बसता है और वह भी उसी मेहनत और शिद्दत के साथ राष्ट्रीय विकास में योगदान के लिए पसीना बहा रहा है। तो फिर विशेष कृषि पैकेज के लिए पूर्वी राज्य या जम्मू-कश्मीर ही क्यों दिखे? इन विरोधाभासों के जरिए किसान, विशेषकर हिमाचली किसान की आय को दोगुना कैसे किया जा सकेगा? हर वर्ष बजट में रेल व्यवस्था ही सुर्खियों में रहती है। अंग्रेजों ने 1864 में शिमला को शीतकालीन राजधानी बनाकर प्रदेश को नई पहचान दी थी। कालका-शिमला नैरोगेज रेलमार्ग के निर्माण पर सर्वप्रथम विचार 1847 ई. में दिल्ली राजपत्र में प्रकाशित किया था। 2008 में यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल होकर इसने विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की थी। दूसरा रेलमार्ग जोगिंद्रनगर-पठानकोट रेल मार्ग 1926 ई. में शानन बिजली घर तक कच्चा माल पहुंचाने के लिए बनाया गया।

तीसरा रेलमार्ग ऊना-नंगल 1991 ई. में तत्कालीन रेल मंत्री जनेश्वर मिश्रा ने प्रदेश को समर्पित किया था, जो कि एकमात्र ब्रॉडगेज रेललाइन है। 1903 से लेकर अब तक प्रदेश के पास महज 242 किलोमीटर रेलमार्ग ही बन पाया है। अंग्रेजों ने प्रदेश में रेललाइन की नींव रखी थी, लेकिन उस विरासत को प्रदेश के कर्णधारों ने सिरे चढ़ाने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। जब भी बजट प्रस्तुत किया जाता, प्रदेश की जनता के हाथ रेललाइन के सर्वेक्षण का झुनझुना ही लगता है। इस वर्ष 92 वर्ष की अलग रेल बजट की परंपरा को आम बजट में समाहित कर दिया गया, फिर भी प्रदेश को अपना हिस्सा ढूंढना मुश्किल ही था। भविष्य में सामरिक महत्त्व की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बिलासपुर-भानुपल्ली-लेह रेललाइन का विस्तार चीन की बढ़ती चुनौती को रोकने के लिए करना ही पड़ेगा। लेकिन हर बार हिमाचली रेल को आगे बढ़ाने का सिलसिला, सर्वेक्षणों पर आकर सिमट जाता है। साल भर इंतजार का सिला यह कि बजट में हिमाचल की झोली फिर खाली रही। रेल सिर्फ सर्वे तक सिमटी और इस बार तो कोई बड़ा संस्थान भी नहीं मिल पाया। केंद्र तो पहले ही जानता है कि हिमाचल को पहले दिए संस्थान तो स्थापित नहीं हो पाए, फिर और संस्थानों को देने का कोई औचित्य ही नहीं है।टैक्स में छूट, कर्मचारियों व पूर्व सैनिकों को बजट में जो मिला, वह तो पूरे देश को ही मिला। अलग से हिमाचल को कोई खास सौगात नहीं दी गई। हिमाचली नेताओं की जनसभाओं में बड़ी-बड़ी डींगे सरेआम हो गईं कि केंद्र हिमाचल को कितना समझता है। वैसे अपने नेता ही केंद्र से हिमाचल के मुद्दे नहीं उठा पाते, तो इसमें केंद्र का भी क्या कसूर। हिमाचली नेताओं की तो आने वाले विधानसभा चुनावों पर नजर है और वे तो अपने आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझे रहते हैं, ऐसे में हिमाचल के लिए केंद्र से पैरवी कौन करेगा। हम यह नहीं कहते कि केंद्र की प्राथमिकताओं से गायब इस प्रदेश ने कोई उन्नति नहीं की है। प्रदेश की मेहनती जनता ने प्राकृतिक संपदा का सदुपयोग करते हुए विकास के कई मुकाम हासिल किए हैं। लेकिन संघीय ढांचे की परिधि में केंद्र हिमाचल से कब तक बेगानों सा सलूक करता रहेगा?

ई-मेल : thakurarunsingh@gmail.com


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