कैदियों ने कमाए 75 लाख
हिमाचल प्रदेश की जेलों में कैदी सीख रहे हैं जीने का हुनर
शिमला— हिमाचल की जेलें अब सजा देने की नहीं बल्कि हुनर सीखाने की जगह बन गई है। जेलों में कैदी विभिन्न उत्पाद तैयार करने के साथ-साथ बाहर भी काम पर जाने लगे हैं। इससे कैदी अब परिवार का पालन पोषण करने लगे हैं। शिमला के कैथू सब-जेल में डीजीपी जेल सोमेश गोयल ने जेलों में सिखाए जा रहे हुनर और अन्य रोजगारपरक साधनों के बारे में मीडिया को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 में कैदियों को अब तक जेल विभाग 75 लाख का मेहनताना दे चुका है और आने वाले समय में इसमें और भी इजाफा होगा। सोमेश गोयल ने कहा कि हिमाचल की जेलों में कैदी सूती व ऊनी जैकेट, शालें, मफलर, जुराबें, स्टॉल्स, कंबल, दरियां बनाने का हुनर सिखाया जा रहा है और जेलों में ये उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। इससे कैदी कमाई भी कर रहे हैं। हिमाचल ही एकमात्र देश का ऐसा राज्य है जहां जेलों में दो शिफ्टों में हैंडलूम फैक्टरियां दो शिफ्टों में काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि इससे कैदी अब चार से छह हजार प्रति माह कमा कर अपने परिवारों को हर माह भेज रहे हैं। केंद्रीय जेलों नाहन और कंडा के अलावा धर्मशाला की जेल में डेयरी फार्मिंग कर कमाई की जा रही है। कंडा, नाहन की सेंट्रल जेलों के अलावा सब जेल कैथू शिमला और धर्मशाला में भी बेकरी के उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोबाइल कैंटीनों के जरिए भी भी रोजगार दिया जा रहा है। सब जेल कैथू शिमला, कंडा व नाहन जेल और धर्मशाला जेल में मोबाइल कैंटीन चलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि नाहन में खुले नए मेडिकल कालेज के बाहर भी मोबाइल कैंटीन चलाई जा रही है।
जेल के बाहर भी रोजगार
डीजीपी सोमेश गोयल ने कहा कि अभी तक जेल विभाग ने तीन कैदियों को फैक्टरियों में काम दिलाया है। वहीं एक आईआईटी के स्टूडेंट रहे युवा कैदी को शिमला में एक निजी स्कूल में शिक्षक के तौर पर रोजगार दिलाया गया है। उन्होंने कहा कि जेलों में बने उत्पादों के लिए की बिक्री के लिए पहल नामक बिक्री केंद्र शिमला, धर्मशाला और नाहन में खोले गए हैं। जेलों में सुधारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं, इससे कैदियों की जिंदगी में गुणात्मक सुधार आ रहा है।
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