क्योंकि हम शर्मिंदा हैं

By: Feb 3rd, 2017 12:02 am

अदालत के जरिए न्याय के प्रति अटूट विश्वास का होना हमारे भीतर राष्ट्र और लोकतंत्र की मजबूती है। आस्था की जिस मजबूती से समाज कानून को देखता है, वहां न्यायाधीश का पद और गरिमा किसी अवतार से कम नहीं। मानवीय चरित्र के मायने और राष्ट्रीय कर्त्तव्य का उत्तरदायित्व, अदालती निर्णयों की फेहरिस्त में सम्मानित हो तो हम राष्ट्र और समाज का बेहतर निर्माण कर सकते हैं। विडंबना यह कि हिमाचल की एक अदालत को इसलिए शर्मिंदगी उठानी पड़ी, क्योंकि  वहां उपस्थित एक जज ने खुद को बेच दिया चंद सिक्कों के बदले। इससे मनहूस व शर्मनाक स्थिति में कानून ने अपनी पलकें खोलकर किसी जज की गिरफ्तारी नहीं देखी होगी और न ही ऐसी गिरावट की वजह पहले देखी होगी। कानून की हिफाजत में बिकता जमीर और न्याय की कलम पर रिश्वत की चांदी का आवरण एक साथ कई प्रश्न उठाता है। अमूमन ऐसी शब्दावली किसी मीडिया के पास नहीं और प्रशासन व सरकार के पास भी ऐसी हिम्मत नहीं कि किसी जज के कैबिन में भ्रष्टाचार के सबूत ढूंढे। हर व्यक्ति अदालत के सामने जिस मुद्रा में खड़ा होता है, उस लिहाज से न्यायाधीश का ओहदा, सम्मान व शब्द ही एक तरह से कानून की आवाज बन जाते हैं। आश्चर्य यह कि इसी परिपाटी में व्यक्तित्व का दोष इस कद्र समाहित हो गया कि रिश्वत कांड की गूंज से कानून की जमीन खिसक गई। यह पद और गरिमा का ऐसा अपमान है, जो पूरी कानूनी प्रक्रिया को कलंकित करता है। अगर न्याय की आत्मा में ऐसे छेद पैदा करने वाले पैदा हो गए, तो हमारा वजूद अस्थिर हो सकता है। न्याय की कलम पर रिश्वत या किसी अन्य प्रभाव की चांदी चढ़ती है, तो कानून की परिभाषा ही खंडित होगी। हम नहीं जानते किन परिस्थितियों में एक जज की इज्जत दांव पर लग गई या इस मामले की तहों में किस हद तक गुनाह छिपा है, लेकिन प्रश्न यह आवश्यक हो जाता है कि ऐसी हस्तियों के नियंत्रण में फैसलों की सियाही ने न जाने कितने निर्दोष लोगों को कानून से महरूम रखा होगा। अदालती फैसलों की न तो समीक्षा संभव है और न ही स्वतंत्र टिप्पणी का अधिकार मिलता है। कानूनी प्रक्रिया के दांव-पेंच के बीच हर जोखिम उठाती जनता अंततः न्यायिक अधिकारी को अपना पैगंबर मानती है,ताकि अन्याय के खिलाफ उसे कानूनी प्रश्रय मिले, लेकिन यहां तो रिश्वत का आगोश ही अदालत तक पसर गया। न्याय के प्रति लोगों की आस्था के कारण ही जज की भूमिका सर्वश्रेष्ठ हो जाती है और इस पर कोई किंतु-परंतु नहीं रहता, लेकिन अदालती माहौल में भयाक्रांत होती पीडि़त व दुखी जनता की आहें दब रही हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए भी कि जनता के सामने कानून के पहलुओं में आदर्श निरंतर चोट खा रहे हैं और अब तो खुसर-फुसर भी प्रमाणित होकर अगर रिश्वत कांड की तफतीश तक पहुंच चुकी है, तो एक बड़े सुधार की आवश्यकता है। न्यायिक सेवाओं की चयन प्रक्रिया और कानून की पढ़ाई का स्तर अगर बिखरता रहेगा, तो जज के बजाय कोई शख्स, हसरत या पूर्वाग्रह अदालतों में अपनी पैठ बनाता रहेगा। कानूनी सुधारों और पूरी न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव की गुंजाइश देखने वालों का मत भी इस बिंदु पर खरा उतरता है कि जजों की भूमिका को पुष्ट व प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता बढ़ गई है। नागरिक इतिहास के अनसुलझे पन्नों और कानून के सामने परिभाषित होते न्याय की परिपाटी केवल एक जज की ईमानदारी और काबिलीयत का दर्पण है। संविधान की रक्षा, कानून की परिभाषा, नागरिक सम्मान और समानता, नेक सलाह तथा कानून को परिमार्जित करते प्रशासकीय कार्यों की बदौलत न्यायपालिका में न खोट ढूंढा जाता है और न ही विश्वास छोड़ा जा सकता है। हिमाचल में न्यायपालिका का इतिहास हमेशा उज्ज्वल तथा प्रेरणास्रोत की तरह समाज को कानून के दायरे में उन्नत रखता रहा है और इस लिहाज से कथित भ्रष्टाचार के प्रकरण को अत्यधिक गंभीरता से लेना होगा। ऐसे में विभिन्न अदालती फैसले की समीक्षा तथा कार्यपद्धति की जांच का एक नियमित आधार माननीय उच्च न्यायालय को स्थापित करना होगा।


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