खुशी या खुशफहमी

By: Feb 2nd, 2017 12:02 am

जाहिर तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली के ऊपर नोटबंदी के बुरे प्रभाव को दरकिनार करने की चुनौती रही है और इसी के परिप्रेक्ष्य में बजट के सुर सुनाई देंगे, हालांकि खुशी और खुशफहमी की ओर सरकने की आशा और आशंका पूरी तरह निरस्त नहीं हो रही है। यह बजट पूरी तरह वित्त मंत्री का होता, तो आर्थिक सुधारों के गहन प्रयोग करने का साहस व सामर्थ्य दिखाई देता, लेकिन यह आदर्शवाद ढोने की प्रक्रिया में सरकार के इरादों को रेखांकित करने की वचनबद्धता तक सिमट गया। बेशक कुछ सराहनीय कदमों की आहट में एक बड़ी मंजिल की ओर प्रस्थान करने की तैयारी तो नोटबंदी के दुर्गम रास्तों पर रही है, लेकिन राष्ट्र के आर्थिक ढांचे पर चुभी कील और जख्मों का पूरी तरह निराकरण नहीं हो रहा है। नोटबंदी के जलजले में जो ढांचे सबसे अधिक हिले या आहत हुए, उन्हें सूचीबद्ध करते हुए जेटली का बजट भाषण, अपना राग अलापने में काफी मेहनत करता है। इसलिए बजट के माध्यम से सरकार अपनी छवि बदलते हुए आम आदमी, गरीब, किसान व मजदूर के साथ खड़ा होने के ढेरों उपाय कर लेती है। यह दीगर है कि नोटबंदी के कारण गरीब की झोंपड़ी में बुझे दीपक इससे जल उठेंगे या दिहाड़ी वापस मिल जाएगी, लेकिन मनरेगा को सशक्त करती हुई सरकार किसानों के लिए कर्ज और फसल बीमा का दायरा एक मुकाम तक पहुंचाने की इच्छाशक्ति भी स्पष्ट कर रही है। किसान की आय को दोगुना करने के ऐलान के साथ सहकारी क्षेत्र की जमीन को सुदृढ़ करने का वादा नत्थी है, तो दुग्ध उत्पादन की दिशा में अधोसंरचना का पुख्ता बंदोबस्त भी हो रहा है। इसके अलावा लघु सिंचाई व बाजार तक कृषि उत्पाद को पहुंचाने से ग्रामीण आर्थिकी के प्रति सद्भावना है, लेकिन असली परीक्षा तो मानव संसाधन को रोजगार के बाजार में खड़ा करने की रहेगी। बेशक सरकार ने कौशल विकास के मजमून को और तरजीह दी है और औद्योगिक रोजगार का संकल्प दोहराया है, लेकिन पारंपरिक दस्तकार, बुनकर या कालीन उद्योग में नोटबंदी के बाद कोई राहत का पैगाम नहीं दिया। युवाओं पर फिदा होते बजट ने यूं तो बजटीय ग्राफ बनाया, लेकिन रोजगार के सीधे अवसर में कोई चमत्कार दिखाई नहीं देता है। यह दीगर है राष्ट्र की कुल अधोसंरचना में पच्चीस फीसदी बढ़ोतरी के रास्ते रोजगार आएगा, लेकिन मांग के सूनेपन पर विशेष दखल नहीं है। भारत के युवा की महत्त्वाकांक्षा जगाने के लिए डिजिटल, स्टार्टअप या स्टैंडअप इंडिया के उद्घोष के बीच बैंकिंग सुधार क्या कर पाते हैं या बजट को सूंघ कर उछला पूंजी बाजार क्या करता है, इस पर अभी कयास ही लगाए जा सकते हैं। लघु उद्योगों को करों में मिल रही पांच फीसदी राहत के पैमाने में कितना शहद है, यह उत्सुकता से चखने का अवसर बजट में अवश्य ही मुहैया कराया है। युवाओं की प्रतिस्पर्धा में देश की अभिलाषा के स्रोत सदा बजट की समीक्षा करते हैं और इस लिहाज से मेडिकल व आईआईटी प्रवेश के लिए नई संस्था का जिक्र काफी आशाजनक संकेत है। बजट में मध्यम वर्ग या नौकरीपेशा लोगों के लिए आयकर उपचार से राहत मिलेगी और इस हिसाब से हिमाचल तक इसका असर एक तपके तक पहुंचेगा। बावजूद इसके हिमाचल जैसे राज्य के लिए केंद्रीय बजट की खामोशी स्पष्ट है। खास तौर पर रेल परियोजनाओं पर छाया सन्नाटा, हिमाचली सपनों को हकीकत में बदलने में नकारात्मक संकेत दे रहा है। बजट में कबायली इलाकों, पांच विशेष पर्यटन क्षेत्र या छोटे शहरों में एयरपोर्ट स्थापित करने के अरमान अगर हिमाचल में भी पूरे होते हैं, तो उपलब्धि होगी, लेकिन इससे पहले हमारे सांसदों को यह स्पष्ट करना होगा कि जो दावे वे करते रहे हैं, क्यों काफूर हुए। बहरहाल बजट की कसौटियों में राजनीतिक दलों की फंडिंग के नैतिक आधार पर, सरकार ने जो बदलाव किया है उसका स्वागत किया जाएगा।


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