घूंघट में नरोल देवियां नहीं निकलती बाहर
मंडी – रियासतों से मनाए जा रहे देव समागम शिवरात्रि महोत्सव में रानियों से सखी प्रेम को नरोल देवियां आज भी निभा रही हैं। रानियों की सखियों के नाम से पहचानी जाने वाली नरोल देवियां सदियों से सखी प्रेम की अनूठी इबारत रच रही हैं। देवियां आज भी घूंघट में रहती हैं। रियासतों के समय से छोटी काशी में मनाए जाने वाले महाशिवरात्रि पर्व में नरोल देवियां शिरकत करती हैं। देवियां आती हैं, लेकिन मेले में राजा के बेहड़े से बाहर नहीं निकलती हैं। रानियों के निवास स्थान रूपेश्वरी बेहड़े में देवियां शिवरात्रि महोत्सव के दौरान वास करती हैं। छह नरोल देवियां न तो जलेब में शिरकत करती हैं और न ही पड्डल मैदान में होने वाले देव समागम का हिस्सा बनती हैं। छह नरोल देवियों में श्री देवी बगलामुखी, श्री देवी बूढ़ी भैरवी पंडोह, श्री देवी कश्मीरी माता, श्री देवी धूमावती मां पंडोह, देवी बुशाई माता, राज माता कहनवाल और रूपेश्वरी राजमाता रूपेश्वरी बेहड़े में आज भी शिवरात्रि मेले के दौरान घूंघट में वास करती हैं। श्री देवी बूढ़ी भैरवा माता के पुजारी धनश्याम ने बताया कि छह देवियां रानियों की तरह घूंघट डालकर राजमहल में एकांत वास करती हैं। ये देवियां प्राचीन समय से शिवरात्रि मेले में आ रही हैं। राजमहल में ही रानियों के बेहड़े में वास कर देवियां रानियों से सखियों की तरह बातें करती थीं। सखी प्रेम की रीत को नरोल देवियां अभी भी निभा रही हैं। श्री देवी बगलामुखी के पुजारी सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि रियासतों से रानियां देवियों से सखियों की तरह बात करती थीं। रानियों को मेले में जाने की इजाजत नहीं होती थी। रानियां राजा रूपेश्वरी बेहड़े में ही घूंघट में रहती हैं। रानियों के लिए राजा ने नरोल देवियों को शिवरात्रि महोत्सव में आमंत्रण दिया। उसके बाद से देवियां मेले मेंं शिरकत कर रही हैं। राजाओं की रियासतें नहीं रहीं, लेकिन देवियां सदियों बाद भी महोत्सव में छोटी काशी मंडी में आती हैं।
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