जाबालि का श्रीराम को परामर्श

By: Feb 4th, 2017 12:05 am

इस धरा पर ऐसा कौन होगा, जो एक नीम के पेड़ को फलने देगा। वो नीम जिसके पत्ते और फल कड़वे होते हैं। नीम के पेड़ को अगर दूध से भी सींचा जाए, तब भी वह मीठा नहीं हो जाएगा।  निस्संदेह में तुम्हारा यह कृत्य वैसा ही है, जैसा कि तुम्हारी मां का था। यह सूक्ति संसार में बहुधा कही जाती है कि नीम के पेड़ से शहद नहीं टपक सकता। दुर्जनों के बताए हुए मार्ग पर चलते हुए और चहुं ओर बुराई को देखते हुए, तुम भी उसी तरह राजा को लालसा के कारण कुमार्ग पर चलने के लिए कह रही हो। बुरे लोगों के उकसाने पर भी अपने पति को, जो पति होने के साथ इस विश्व का सरंक्षक भी है और शान शौकत में इंद्र के समान है, गलत मार्ग पर चलने के लिए मत कहो। श्रीराम जो सभी भाइयों में सबसे बड़े हैं, जो अत्यंत उदार, बलशाली होने के साथ धर्म का पालन भी करते हैं और क्षत्रिय के तौर पर न सिर्फ अपना कर्त्तव्य भली भांति निभाते हैं बल्कि सभी जीवित प्राणियों का सरंक्षण करने में भी समर्थ हैं, उन्हें ही अयोध्या की राजगद्दी पर बैठना चाहिए। ऐ शाही औरत अगर श्रीराम अपने पिता श्री को छोड़ कर वन को प्रस्थान कर गए, तो एक अत्यंत  बुरी घटना तुम्हारे साथ घट जाएगी। जाबालि का श्रीराम को परामर्श जाबालि को समस्त ब्राह्मणों में एक अनमोल रत्न मना जाता है। जब श्रीराम वन को प्रस्थान कर चुके और वहां रहने लगे। तब भरत वशिष्ठ मुनि अन्य जाने- माने गणों के साथ उन्हें मनाने के लिए उनके पास पहुंचे। जाबालि भी उन के साथ थे और श्री राम को मनाने के लिए उन्होंने भी भरपूर प्रयास किया। जाबालि एक नास्तिक थे और जीवन दर्शन के प्रति उनका दृष्टिकोण दूसरों से अलग होने के बावजूद उनके ज्ञान और बुद्धिमता पर किसी को भी किसी प्रकार का संदेह नहीं था। जीवन के प्रति उनका अपना एक अलग तरह का दृष्टिकोण था और उन्होंने उसी दृष्टिकोण को सामने रखते हुए श्रीराम के सम्मुख अपने तर्क रखे। यह वो समय था, जब श्री राम अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार सुन कर अत्यंत उदास व दुखी हो गए थे। भरत का वन में आने का एकमात्र ही लक्ष्य था कि वह किसी प्रकार से श्रीराम को मना कर अपने साथ अयोध्या वापस ले चलें। श्रीराम की मनःस्थिति को भली भांति समझते हुए जाबालि ने न सिर्फ  उन्हें पूर्णतया सांत्वाना दी, बल्कि जीवन तथा  मृत्यु के बारे में उन्हें सांसारिक व्याख्या भी देने की भी कोशिश की। जाबालि ने श्रीराम को यह बात भी समझाने का यत्न किया कि श्रीराम को रीति रिवाज निभाने में अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए और एक राजकुमार की भांति अपने कर्त्तव्य पूरा करने हेतु वापस अयोध्या चल कर राजपाट संभालना चाहिए। जाबालि और श्रीराम के बीच काफी समय तक वाद-विवाद हुआ। जाबालि ने श्रीराम को जो कुछ भी बताया श्रीराम ने उनके सभी तर्क मानने से इनकार कर दिया। जाबालि नें श्री राम को क्या परामर्श दिए, उसे इस तरह से वाल्मीकि रामायण में बताया गया है।


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