नारद भक्तिसू्त्र
Feb 11th, 2017 12:08 am
तत्प्राप्य तदेवावलोकयति, तदेव शृणोति, तदेव भाषयति, तदेव चिन्तयति।।
इस प्रेम को पाकर प्रेमी इस प्रेम को ही देखता है, प्रेम को ही सुनता है, प्रेम का ही वर्णन करता है और प्रेम का ही चिंतन करता है।
गौणी त्रिधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा।।
गौणी भक्ति गुणभेद से अथवा आर्तादिभेद से तीन प्रकार की होती है।
उत्तरस्मादुत्तरस्मात्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति।।
उत्तर-उत्तर क्रम से पूर्व-पूर्व-क्रम की भक्ति कल्याणकारिणी होती है।
अन्यस्मात् सौलभ्यं भक्तौ।।
अन्य सबकी अपेक्षा भक्ति सुलभ है।
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App