नीले और लाल रंग के गुण

By: Feb 11th, 2017 12:05 am

प्लेग की बीमारी में नीले रंग का पानी पिलाना और गिल्टी पर उसी से भीगा हुआ कपड़ा रखना चाहिए। पित्त ज्वर में नीला पानी बहुत ठीक है। आंखें दुखने को आ गई हों या रोड़े पड़ गए हों तो नीले पानी की बूंदें दवा की तरह डालना उचित है। सिर तथा आंखों पर नीले कांच द्वारा प्रकाश डालना चाहिए, मोतीझरा या चेचक में भी नीला रंग उपयोगी है। यदि मोतीझरा या चेचक अच्छी तरह न निकली हो तो उसे बाहर निकालने के लिए लाल पानी दिया जा सकता है…

हल्का नीला रंग, जिसे आसमानी भी कहते हैं, शांतिप्रद आकर्षक और चुंबकीय शक्ति लिए हुए होता है। साथ ही यह अग्नि को मंद करता है। समस्त शरीर में या उसके किसी भाग में गर्मी बढ़ गई हो, तो उसे शांत करने में नीला रंग अपना अद्भुत असर दिखाता है। यदि व्यक्ति ज्वर की गर्मी से जला जा रहा हो, बार-बार पानी मांग रहा हो, प्यास न बुझती हो, उसके लिए नीला रंग बड़ा उपकारी है, सिर में चक्कर आ रहे हों, दर्द हो रहा हो, माथा भन्नाता हो, भ्रम या मूर्छा के लक्षण प्रतीत हों, तब नीले रंग का प्रयोग बड़ा लाभदायक सिद्ध होगा। गर्मी के दिनों में नीले रंग से प्रभावित किया हुआ पानी बड़ी शीतलता प्रदान करता है। जिन मनुष्यों को गर्मी अधिक सताती है, उन्हें नीले रंग का पानी बहुत फायदा पहुंचाएगा। इस पानी को कुत्तों को पिलाने से उनके पागल होने का भय नहीं रहता। आग से जले हुए या पागल कुत्ते अथवा सियार के काटे हुए स्थान पर आसमानी पानी का भीगा हुआ कपड़ा रखना चाहिए और संभव हो तो उस स्थान को इसी रंग  के पानी में कुछ देर रखना चाहिए।   ऐसे रोगियों को नीला जल दो-दो घंटे बाद आधी-आधी छटांक की मात्रा में औषधि की तरह पिलाया जा सकता है। दस्त की बीमारी (हैजा) में नीला रंग बहुत मुफीद है। बीमारी फैल रही हो तो स्वस्थ मनुष्यों को इसका प्रयोग करना चाहिए। हैजा जब बहुत उग्र अवस्था में पहुंच जाता है, तब रोगी के शरीर में लाल रंग की कमी हो जाती है और शरीर ठंडा पड़ने लगता है, तब नीले रंग के साथ लाल रंग भी देना हितकर होता है। पेट पर इसी जल के भीगे हुए कपड़े की गद्दी रखने से दस्तों में रुकावट होती है और कै होना रुक जाता है। अतः सात-आठ घंटे में रोगी को खतरे से बाहर किया जा सकता है। पेचिश ऐंठन के साथ दस्त होना, पांव या लहू आना, नीले रंग की पानी की खुराकों से रुक जाता है। तीन   चार दिन में ही बिलकुल आराम हो जाता है। इस रोग में गर्म चीजें हानिकारक हैं, इसलिए हल्का और सुपाच्य भोजन खिलाना अच्छा होता है। ऐसी स्थिति नीले रंग की पानी की कुछ खुराकों से ही संभल जाती है। तीन-चार दिन में ही बिलकुल आराम हो जाता है। इस रोग में गर्म चीजें हानिकारक हैं। इसलिए हल्का और सुपाच्य भोजन खिलाना अच्छा है। यदि नीले रंग की बोतल में दूध भरकर कुछ मिनट धूप में रखा जाए, तो औषधि और पथ्य दोनों का काम दे सकता है। अरंडी का तेल जिन बोतलों में आता है, वे नीले रंग और कुछ सुर्खी की झलक लिए होती हैं, उनमें तैयार किया हुआ पानी निमोनिया की बीमारी में बहुत फायदा पहुंचाता है। इससे फेफड़ों को मदद मिलती है। प्लेग की बीमारी में नीले रंग का पानी पिलाना और गिल्टी पर उसी से भीगा हुआ कपड़ा रखना चाहिए। पित्त ज्वर में नीला पानी बहुत ठीक है। आंखें दुखने को आ गई हों या रोड़े पड़ गए हों तो नीले पानी की बूंदें दवा की तरह डालना उचित है। सिर तथा आंखों पर नीले कांच द्वारा प्रकाश डालना चाहिए, मोतीझरा या चेचक में भी नीला रंग उपयोगी है। हां, यदि मोतीझरा या चेचक अच्छी तरह न निकली हो तो उसे बाहर निकालने के लिए लाल पानी दिया जा सकता है। तिल्ली, पांडु, जिगर बढ़ना नीले रंग के प्रभाव से शांत हो सकते हैं।  बिच्छू, बर्र, ततैया, मधुमक्खी, कनखजूरा, कांतर, चींटी आदि के काट लेने पर इसी के पानी की गद्दी काटे हुए स्थान पर रखनी चाहिए। जननेंद्रिय संबंधी रोगों में नीला रंग अद्भुत गुण दिखाता है। प्रमेह, स्वप्नदोष, सुजाक, गर्मी, रक्त-प्रदर, मासिक धर्म की खराबी, जल्दी रजस्वला हो जाना, रक्त अधिक जाना आदि में नीले रंग का प्रयोग सदैव हितकर होगा। सिर के बाल झड़ना, मुंह के छाले, हाथ पैर फटना, मसूड़े, जलन, हड़फूटन, अनिद्रा में भी यह रंग गुणकारी है। क्षय, रक्त-पित्त नीले रंग से बहुत शीघ्र अच्छे होते हैं। बूढ़ों के लिए तो यह रंग अमृत तुल्य है। नीले रंगे के विपरीत लाल रंग का धर्म गर्म है। शरीर को इससे बल और उत्तेजना मिलती है। जो अंग किसी कारणवश शिथिल हो गए हैं, ठीक प्रकार अपना काम नहीं करते, वे लाल रंग से उत्तेजित होकर अपने काम में प्रवृत्त हो जाते हैं। ठंड के कारण जो अंग सिकुड़ गया है, या सूज गया है, वह इस रंग के प्रभाव से अच्छा हो जाता है। सुस्ती, आलस्य, निर्बलता, रक्त की गति न्यून हो जाना आदि के लिए भी उपयोगी है। शरीर में कोई रोग भीतर छुपा हुआ हो तो उसे उखाड़ने के लिए यह रंग उत्तम है। लकवा, गठिया, जोड़ों का दर्द तथा वात की पीड़ा में इसका प्रयोग आश्चर्यजनक फल दिखाता है।


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