पद्म से विभूषित जग्गी वासुदेव

By: Feb 1st, 2017 12:07 am

प्रारंभिक जीवन

cereerसद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 3 सितंबर, 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में हुआ। उनके पिता एक डाक्टर थे। बालक जग्गी को कुदरत से खूब लगाव था। अकसर ऐसा होता था कि वह कुछ दिनों के लिए जंगल से गायब हो जाते थे, जहां वह पेड़ की ऊंची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते  और अनायास ही गहरे ध्यान में चले जाते थे। जब वह घर लौटते, तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी, जिनको पकड़ने में उन्हें महारत हासिल है। इनके योग शिक्षक राघवेंद्र राव थे। मैसूर विश्वविद्यालय से जग्गी वासुदेव ने अंग्रेजी भाषा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1916 में हुई।

आध्यात्मिक अनुभव

25 वर्ष की उम्र में अनायास ही बड़े विचित्र रूप से इनको गहन आत्मानुभूति हुई, जिसने इनके जीवन की दिशा ही बदल दी। एक दोपहर जग्गी वासुदेव मैसूर में चामुंडी पहाडि़यों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए। तब उनकी आंखें पूरी तरह खुली हुई थीं। अचानक उन्हें शरीर से परे का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए है। चट्टानों में, पेड़ों में और पृथ्वी में। अगले कुछ दिनों में उन्हें यह अनुभव कई बार हुआ और हर बार यह उन्हें परमानंद की स्थिति में छोड़ जाता।  इस घटना ने उनकी जीवन शैली को पूरी तरह से बदल दिया। जग्गी वासुदेव ने उन अनुभवों को बांटने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का फैसला किया। ईशा फाउंडेशन की स्थापना और ईशा योग कार्यक्रमों की शुरुआत इसी उद्देश्य को लेकर की गई ताकि यह संभावना विश्व को अर्पित की जा सके। ईशा फाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमरीका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और आस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाती है। यह फाउंडेशन कई सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं पर भी काम करती है। इन्हें संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद में विशेष सलाहकार की पदवी प्राप्त है। उन्होंने 8 भाषाओं में 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। अभी हाल ही में इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया है।


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